लोमहर्षणजी द्वारा श्रीविष्णु स्तुति
जो निर्विकार, शुद्ध, नित्य, परमात्मा, सदा एकरूप और सर्वविजयी हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार हैं ।
जो ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप से जगत् की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करनेवाले हैं, जो भक्तों को संसार-सागर से तारनेवाले हैं, उन भगवान् को प्रणाम हैं ।
जो एक होकर भी अनेक रूप धारण करते हैं, स्थूल और सूक्ष्म सब जिनके ही स्वरुप हैं, जो अव्यक्त और व्यक्तरूप तथा मोक्ष के हेतु हैं, उन भगवान्, विष्णु को नमस्कार हैं ।
जो जगतकी उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाले हैं, जरा और मृत्यु जिनका स्पर्श नहीं करतीं, जो सबके मूल कारण हैं, उन परमात्मा विष्णु को नमस्कार हैं ।
जो इस विश्व के आधार हैं, अत्यंत सूक्ष्म से भी सूक्ष्म हैं, सब प्राणियों के भीतर विराजमान हैं, क्षर और अक्षर पुरुष से उत्तम तथा अविनाशी हैं, उन भगवान् विष्णु को प्रणाम करता हूँ ।
जो वास्तवमें अत्यंत निर्मल ज्ञानस्वरूप हैं, किन्तु अज्ञानवश नाना पदार्थो के रूपमें प्रतीत हो रहे हैं, जो विश्व की सृष्टि और पालन में समर्थ एवं उसका संहार करनेवाले हैं, सर्वज्ञ हैं, जगतके अधीश्वर हैं, जिनके जन्म और विनाश नहीं होते, जो अव्यय, आदि, अत्यंत सूक्ष्म तथा विश्वेश्वर हैं, उन श्रीहरि को प्रणाम हैं ।