लीलावती अंकगणित - अध्याय 04 शून्य-परिकर्माष्टक
शून्य-परिकर्माष्टक
अथ ॰शून्य-परिकर्मसु करण-सूत्रमार्या-द्वयम् । शून्य जोड़ गुणा आदि क्रिया करने की रीति दो आर्या छन्दोंमें
योगे ॰खं क्षेप-समं वर्गादौ ॰खम् ॰ख-भाजितस्राशिस् ।
॰ख-हरस्॰स्यात्॰ख-गुणस्॰खम् ॰ख-गुणस्चिन्त्यस्च शेष-विधौ ॥२१॥
॰शून्ये गुणके जाते ॰खं हारस्चेद्पुनर्तदा राशिस् ।
अविकृतसेव ज्ञेयस्तथा एव ॰खेन ऊनितस्च युतस् ॥२२॥
जोड़ में, शून्यजोड़ में जो अन्य राशी है उनके समान हो जाता है, शून्य का वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, करने से शून्य ही लब्धि होती है | राशि में शून्य का भाग देने हर के स्थान में शून्य ही होता है | शून्य से गुणा करने से शून्य ही लब्धि होता है | यदि गुणा करने पर भाग अथवा घटाव करना बाकी रह जाय तब शून्य से गुणित राशि को चिन्तन करे अर्थात वैसे ही लिखी रखे क्योकि शून्य से गुणा करने पर यदि शून्य का भाग देना होता है तब राशि जैसे का तैसा ही रहता है क्योकि गुणक और भाजक सम है अर्थात जिस अंक से गुणा किया जाय, यदि उसी अंक का भाग दो तो राशि यथास्थित रहता है और जहा शून्य से योग करी हुई राशि में शून्य घटाया जाय तब भी राशि अविकृत रहता है |
। अत्र उद्देशकस् । उदाहरण
॰खं पृष्ठअञ्च-युक्॰भवति किम् ॰वद खस्य वर्गं मूलं घनं घन-पदम् ॰ख-गुणास्च पृष्ठअञ्च् ।
॰खेन उद्धृतास्दश च कस्ख-गुणस्निज-अर्ध-युक्तस्त्रिभिस्च गुणितस्स्व-हतस्त्रिषष्टिस् ॥
हे मित्र ! पाँच करके युक्त शून्य क्या होता है और शून्यका वर्ग तथा वर्गमूल और घन तथा घनमूल क्या होता हैं ? शून्यसे गुणा किये हुये पाँच कितने होते है और दश में शून्य का भाग देने से क्या लब्धि होता है और शून्य से गुणा किया तब जो अंक हुआ उसका आधा उसमे जोड़ दिया, फिर तीन से गुणा करके शून्यका भाग दिया तब 63 होता है तो कहो मूल राशि क्या है ?
। न्यासस्० ।
एतत्पृष्ठअञ्च-युतं जातम् ५ । ॰खस्य वर्गस्० । मूलम् ० । घनम् ० । घन-मूलम् ० ॥
न्यासस् ५ ।
एते ॰खेन गुणितास्जातास्० ॥
न्यासस्१० । एते ॰ख-भक्तास्१०_० ॥
अज्ञातस्राशिस्तस्य गुणस्० ।
स्व-अर्धं क्षेपस्१_२ । गुणस्३। हरस्०। दृश्यम् ६३। ततस्वक्ष्यमाणेन विलोम-विधिना इष्ट-कर्मणा वा लब्धस्राशिस्१४॥
अस्य गणितस्य ग्रह-गणिते महानुपयोगस्॥