लीलावती अंकगणित - अध्याय 02 परिकर्माष्टक
परिकर्माष्टक
मंगलाचरणम्–
लीला-गल-लुलत्-लोल-काल-व्याल-विलासिन् ।
गणेशाय नमस्नील-कमलामल-कान्तय् ॥०१॥
अर्थ:- लीला करके गले में लटकते हुए चंचल सर्प से क्रीडा करनेवाले, चिक्कण नीलकान्तिवाले गणेशजी को नमस्कार है ।१।
संख्यास्थानानि-
एक-दश-शत-सहस्र-अयुत-लक्ष-पृष्ठरयुत-कोटयस्क्रमशस् ।
अर्बुदम् अब्जम् खर्व-निखर्व-महापद्म-शङ्कवस्तस्मात् ॥०२॥
जलधिस्च अन्त्यम् मध्यं पृष्ठअरार्धमिति दश-गुणोत्तरास्संज्ञास् ।
संख्यायास्स्थानानां व्यवहारार्थं कृतास्पूर्वैस् ॥०३॥
अर्थ: एक, दश, शत, सहस्र, अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, अब्ज, खर्व, निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि, अन्त्य, मध्य, और परार्ध- इस प्रकार पूर्वाचार्योंने संख्यांके व्यवहारके वास्ते पूर्वपूर्वकी अपेक्षा उत्तरोत्तर दशगुणी संज्ञा कही हैं । ।२।
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
संख्यात्मक प्रणाली (Numerical System):
यह श्लोक संख्या पद्धतियों के क्रम को प्रदर्शित करता है, जो वर्गीकरण और विस्तार के सिद्धांत पर आधारित है। यह आधुनिक सूत्र और पद्धतियों से बहुत मिलता-जुलता है, जैसे कि Exponential Notation (10^n), जिसे आजकल गणना में प्रयोग किया जाता है।
येषां सुजातिगुणवर्गविभूषिताङ्गी शुद्धाखिल व्यवहृति खलु कण्ठासक्ता।
जिन शिष्यों को जोड़, घटा, गुणन, भाग, वर्ग, घन आदि व्यवहारों, गणित के अवयवों निर्दोषगणित आदि से विभूषित लीलावती ग्रन्थ कण्ठस्थ होता है, उनकी गणित सम्पत्ति सदा वर्धमान होती है।
जोड़-घटा
अथ संकलित-व्यवकलितयोस्करण-सूत्रं वृत्त-अर्धम् । जोड़ और घटाव करने की रीति आधे श्लोक से कहते हैं :-
कार्यस्क्रमातुत्क्रमतसथ वा अङ्क-योगस्यथा-स्थानकमन्तरं वा ।
अर्थ:- क्रमकी रीतिसे अथवा उत्क्रमकी रीतिसे यथास्थानमें अर्थात एक स्थानीय अंकका दशस्थानीय अंक में, दशस्थानीय अंकका तथा शतस्थानीय अंक में शतस्थानीय अंक का रखकर जोड़ अथवा घटाव करना ।०४।
अये बाले लीलावति मति-मति ब्रूहि सहितान् द्वि-पृष्ठअञ्च-द्वात्रिंशत्-त्रिनवति-शत-अष्टादश दश् ।
शतोपेतानेतान् अयुत-वियुतान् च अपि ॰वद मे यदि व्यक्ते युक्ति-व्यवकलन-मार्गे ॰सि कुशला ॥०१॥
हे बाले, बुद्धिमति लीलावती ! यदि पाटीगणित के योग और घटाव को तुम अच्छी तरह जानती हो, तो 2, 5, 32, 193, 18, 10, इनको 100 में जोड़कर योगफल कहो और इस योगफल को 10000 में घटाने पर शेष क्या होगा वह भी बताओ ।०१।
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: प्रश्न एक प्रेमपूर्ण संवाद के रूप में पूछा गया है, जो विद्यार्थी में डर नहीं, बल्कि उत्सुकता और सहभागिता पैदा करता है — आज की इंटरैक्टिव लर्निंग की तरह।
गुणा
॥ गुणने करण-सूत्रम् स-अर्ध-वृत्त-द्वयम् ॥ गुणा करने की रीति 2-1/2 ढाई-श्लोकमें कहते हैं ।
गुण्य-अन्त्यम् अङ्कम् गुणकेन हन्यात् उत्सारितेन एवम् उपान्तिम-आदीन् ॥
गुण्यस् तु अधस् अधस् गुण-खण्ड-तुल्यस् तैस् खण्डकैस् संगुणितस् युतस् वा ।
भक्तस् गुणस् शुध्यति येन तेन लब्ध्या च गुण्यस् गुणितस् फलम् वा ॥
द्विधा भवेत् रूप-विभागस् एवम् स्थानैस् पृथक् वा गुणितस् समेतस् ।
इष्ट-ऊन-युक्तेन गुणेन निघ्नस् अभीष्ट-घ्न-गुण्य-अन्वित-वर्जितस् वा ॥
# 01:- गुण्यके अंतके अंकको गुणकसे गुणे, फिर उसके समीपके अंकको उसी गुणकको उठाकर उससे गुणे, इसी प्रकार उसी गुणकसे आदिके जितने अंक है सबको क्रमसे गुणे, यह गुणकका जैसा रूप होता है, उसहीसे गुणा किया जाता है, इस कारण रूपगुणा कहाता है ।
# 02 :- गुणकके जितने खण्ड की कल्पना करे, उतने ही जगह गुण्यको धरकर और निचे रखे हुए गुणकके खण्डोंसे गुण्यको अलग-अलग गुणा करके जोड़ देय, तब गुणनफल प्राप्त होता है, इस रीति से करने को खण्डगुणा कहते हैं ।
# 03:- गुणकमें किसी अंकका भाग देनेसे यदि नि:शेष हो जायेतो जिसका भाग दिया उस भाजकसे और उस लब्धिसे गुण्यको गुणा करनेसे भी गुणनफल प्राप्त होता है, इस रीति को विभागगुणा कहते है ।
# 04:- गुणकके पहले एक स्थानी अंकसे फिर दश स्थानी अंकसे इसी प्रकार जितने गुणकमें अंक हो, सबसे क्रमसे अलग-अलग गुणा करके जोड़देय तब गुणनफल प्राप्त होता है यह रीति स्थानगुणा कहाता है ।
# 05:- गुणकमें कोई अंक ऐसा घटाया अथवा जोड़ा कि जिससे गुणाकरने में सरलता हो उससे गुणा करके जो अंक गुणकमें घटाया हो उससे गुण्यको गुणा करके घटाये हुए गुणकसे गुणा करनेमें जो लब्धि प्राप्त हुई थी उसमे जोड़देय और यदि गुणकमें कोई अंक मिलाया हो तो उसी अंकसे गुण्यको गुणा करके जोड़े हुए गुणकसे गुणा करीहुई लब्धि घटा देय शेष गुणनफल होता है, इस रीति को इष्टगुणा कहते है ।
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
Computational Thinking: यह श्लोक गणना को modular, decomposed और simplified रूपों में करने की रणनीति सिखाता है — ठीक उसी तरह जैसे आधुनिक कंप्यूटर एल्गोरिदम में उपयोग होता है।
पाँच प्रकार के गुणा बताया गया हैं ।
01 रूपगुणा, 02 स्थानगुणा, 03 विभागगुणा, 04 खण्डगुणा, 05 इष्टगुणा
अत्र उद्देशकस्।
बाले बाल-कुरङ्ग-लोल-नयने लीलावति ॰प्रोच्यतां पृष्ठअञ्च-त्रि-एक-मितास्॰दिवाकर-गुणासङ्कास्कति ॰स्युस्यदि।
रूप-स्थान-विभाग-खण्ड-गुणने कल्पा ॰सि कल्याणिनि छिन्नास्तेन गुणेन ते च गुणितास्जातास्कति ॰स्युस्॰वद् ।
॥ न्यासस् ॥ गुण्यस् १३५/ गुणकस् १२/
(1) गुण्य-अन्त्यम् अङ्कम् गुणकेन हन्यात् इति कृते जातम् १६२०॥
(2) गुण-रूप-विभागे कृते खण्डे ४/ ८/ आभ्याम् पृथक् गुण्ये गुणिते युते च जातम् तत् एव १६२०॥
(3) गुणकस् त्रिभिस् भक्तस् लब्धम् ४/ एभिस् त्रिभिस् च गुण्ये गुणिते जातम् तत् एव १६२०॥
(4) स्थान-विभागे कृते खण्डे १/ २/ आभ्याम् पृथक् गुण्ये गुणिते यथा-स्थान-युते च जातम् तत् एव १६२०॥
(5) द्वि-ऊनेन गुणकेन १० द्वाभ्याम् २ च पृथक् गुण्ये गुणिते युते च जातम् तत् एव १६२०॥
(6) अष्ट-युतेन गुणकेन २० गुण्ये गुणिते अष्ट-गुणित-गुण्य-हीने च जातम् तत् एव १६२०॥
॥ इति गुणन-प्रकारस् ॥
हे बाले ! हिरणशावकनयनिय! हे चातुर्यकी खानी ! शुभे लीलावती ! यदि रूपकी, स्थानकी, विभागकी और खण्डकी रीतिसे गुणा करना जानती हो तो कहो ।।01।।
135 को 12 से गुणा किया तो कितने होते हैं, यह सब रीतियों से कहो और वही गुणा किये हुए अंक को 12 से भाग देने से कितने होते हैं सो कहो ।।02।।
अत्यंत सुंदर एवं विश्लेषणात्मक रूप में एक ही संख्या (१६२०) की पुष्टि विभिन्न पद्धतियों द्वारा कर रही है — यह वैदिक गणना पद्धति एवं भास्कराचार्य की लीलावती शैली का उत्तम उदाहरण है।
🔢 मूल संख्याएँ:
गुण्यः (Multiplicand) = १३५
गुणकः (Multiplier) = १२
गुणनफल = १६२०
अब यह दिखाया गया है कि यह १६२० विभिन्न तरीकों से कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
न्यास: । गुण्यस्१३५। गुणकस्१२।
गुण्य-अन्त्यम् अङ्कम् गुणकेन हन्यात् इति कृते जातम् १६२० ॥
(1) गुण्य-अन्त्य-अङ्कं गुणकेन हन्यात्
अन्तिम अंक (5) × गुणक (12) =
5 × 12 = 60
अब अगले अंकों पर carry और बाकी अंक गुणा करके जोड़ें —
पूरा 135 × 12 = 1620
🔹 सामान्य गणना विधि — एक साधारण long multiplication।
न्यास: । गुण्यस्१३५।गुणकस्१२।
गुण-रूप-विभागे कृते खण्डे ४। ८। आभ्यां पृथक्गुण्ये गुणिते युते च जातं ततेव १६२०॥
(2) गुणरूप-विभाग: खण्डे 4 और 8
यहाँ गुणक (12) को विभाजित किया गया:
12 = 4 + 8
अब:
135 × 4 = 540
135 × 8 = 1080
दोनों को जोड़ें: 540 + 1080 = 1620
🔹 गुणक को दो भागों में बाँट कर गुणा।
न्यास: । गुण्यस्१३५। गुणकस्१२।
गुणकस्त्रिभिस्भक्तस्लब्धम् ४। एभिस्त्रिभिस्च गुण्ये गुणिते जातं ततेव १६२०॥
(3) गुणकः त्रिभिः भक्तः → लब्धम् 4
12 ÷ 3 = 4
न्यास: । गुण्यस्१३५।गुणकस्१२।
स्थान-विभागे कृतेखण्डे १। २। आभ्यां पृथक्गुण्ये गुणिते यथा-स्थान-युते च जातं ततेव १६२०॥
(4) स्थान-विभाग: खण्डे 1 और 2
यह 135 को उसकी स्थानिक संरचना (Positional Value) में विभाजित करता है:
135 = 100 + 30 + 5
अब इन हिस्सों को स्थानानुसार 12 से गुणा करें:
100 × 12 = 1200
30 × 12 = 360
5 × 12 = 60
जोड़ें: 1200 + 360 + 60 = 1620
🔹 Positional multiplication (अंक × स्थान × गुणक)।
न्यास: । गुण्यस्१३५। गुणकस्१२।
अथवा द्वि-ऊनेनगुणकेन १० द्वाभ्याम् २ च पृथक् गुण्ये गुणिते युते च जातम् तत् एव १६२०॥
(5) द्वि-ऊनेन गुणकेन = 10
गुणक 12 से 2 घटाएँ → 10
अब:
135 × 10 = 1350
135 × 2 = 270
जोड़ें: 1350 + 270 = 1620
🔹 गुणक को घटा-बढ़ाकर दो हिस्सों में गुणा।
न्यास: । गुण्यस्१३५। गुणकस्१२।
अथवा अष्ट-युतेन गुणकेन २० गुण्ये गुणिते अष्ट-गुणित-गुण्य-हीने च जातं ततेव १६२०॥
(6) अष्ट-युत (8 + 12 = 20) गुणक और अष्टगुणित-गुण्य-हीनम्
135 × 20 = 2700
135 × 8 = 1080
2700 − 1080 = 1620
🔹 एक बढ़ा गुणनफल और उसमें से कुछ घटाकर मूलफल प्राप्त करना।
🔭 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
यह वैदिक गणना हमें सिखाती है कि हम बड़ी संख्याओं को विभाजित कर, स्थानिक मानों के आधार पर, या आंशिक उत्पादों के संयोजन द्वारा तेज, मानसिक और कम संसाधनों में गणना कर सकते हैं। यह आधुनिक कंप्यूटर में प्रयुक्त partial products, carry-save methods, और parallel multiplication जैसे सिद्धांतों से मेल खाती है।
भाग
भाग-हारे करण-सूत्रं वृत्तम् । भाग लेनेकी रीतिके विषय में एक श्लोक
जिसमे भाग दिया जाता हैं वह भाज्य कहलाता हैं और जिससे भाग दिया जाता है वह भाजक कहलाता हैं ॥
भाज्याथरस्॰शुध्यति यद्-गुणस्॰स्यातन्त्यात्फलं तत्खलु भाग-हार् ।
समेन केन अपि ॰पवर्त्य हार-भाज्यौ ॰भजेत्वा सति संभवे तु ॥
भाज्याथरः शुध्यति यद् गुणः स्यात् अन्त्यात् फलम् तत् खलु भागहारः ।
जो संख्या (गुणक) भाज्य और हर दोनों को शुद्ध करती है (अर्थात जिससे दोनों विभाजित हो सकते हैं), उससे भाग देने पर जो अन्त में फल आता है — वही सच्चा भागफल होता है।
समेन केन अपि अपवर्त्य हार-भाज्यौ भजेत्वा सति सम्भवे तु ॥
यदि किसी समान संख्या (सामान्य गुणनखंड) से हर और भाज्य को विभाजित किया जा सकता हो, तो पहले दोनों को उससे भाग दो, फिर सरल भाग करो।
न्यासस्। भाज्यस्१६२०। भाजकस्१२। भजनात्लब्धस्गुण्यस्१३५॥
अत्र पूर्वोदाहरणे गुणिताङ्कानां स्व-गुण-छेदानां भाग-हारार्थं
“पूर्व उदाहरण में गुणा के जो विभिन्न खण्ड (स्थानिक गुणनफल) बने थे, उन्हीं का पृथक-पृथक छेदन (विभाजन) करके पुनः मूल गुण्य संख्या (१३५) तक पहुँचा जा सकता है।”
✅ मूल प्रश्न:
भागफल (Quotient) = १३५, क्योंकि
१६२० ÷ १२ = १३५
अब इसे ६ विभिन्न वैदिक पद्धतियों में सिद्ध करते हैं:
(1) सामान्य विधि (Standard Division)
1620 ÷ 12
= 135 (Long Division)
🔹 यह मूलभूत गणना है ।
(2) गुणक को भागों में बाँटकर (12 = 4 + 8)
यहाँ हम यह देखेंगे कि क्या 1620 को दो हिस्सों में बाँट सकते हैं जिन्हें क्रमशः 4 और 8 से विभाजित किया जा सके और फिर उनका योग 135 आए।
आइए इस रूप में देखें: 135 × 4 = 540, 135× 8 = 1080
540÷4=135
1080÷8=135 तो:
540 + 1080 = 1620
दोनों के भागफल भी 135 ही आते हैं।न्यासस्। भाज्यस्१६२०। भाजकस्१२। भजनात्लब्धस्गुण्यस्१३५॥
अथवा भाज्य-हारौ त्रिभिसपवर्तितौ 540/4 चतुर्भिस्वा 405/3 स्व-स्व-हारेण हृते फले तदेव ॥
(3) गुणक को 3 से विभाजित करें: (12 ÷ 3 = 4)
अब: भागफल 4 का मतलब हैं 135 को गुणा करे 4 से तो 540 आया इसको गुना करे 3 से 1620 भागफल प्राप्त हो जाता हैं
135 × 4 = 540
540 ×3 = 1620
🔹 भाग को छोटे-छोटे अंशों में पुनः संगठित कर दिखाया।
(4) स्थानिक विभाजन से (Positional Division)
1620 = 1200 + 360 + 60
अब:
1200/12 = 100
360/12 = 30
60/12 = 5
योग = 100 + 30 + 5 = 135
🔹 संख्या को उसके स्थानिक मानों में विभाजित कर के अलग-अलग भाग करके पुनः जोड़ा गया।
(5) गुणक घटाकर (12 = 10 + 2)
1620 = 1350 + 270
1350/10 = 135
270/2 = 135
भागफल को दो ज्ञात भागों के आधार पर सिद्ध किया गया।
वर्ग
अथ वर्गे करण-सूत्रं वृत्त-द्वयम् । अब वर्ग करने की रीति 2 श्लोकों में कहते हैं ।
सम-द्वि-घातस्कृतिस् उच्यते अथ स्थाप्य सन्त्य-वर्गस् द्वि-गुण अन्त्य-निघ्नस् ।
स्व-स्वोपरिष्टात् च तथा अपरे अङ्कास् त्यक्त्वा अन्त्यम् उत्सार्य पुनः च राशिम् ॥
सूत्र-1 समान दो अंकों का परस्पर गुणा करने से जो फल होता हैं वह वर्ग कहलाता हैं ।
सूत्र-2 अन्तके अंकका वर्ग करके उसी अन्त के ऊपर रख दे और बाकी के अंकको दुगुणित अन्तके अंकसे गुणा करके अपने अपने अंक के ऊपर रख दे, फिर अन्तके अंक को मिटा दे और शेष राशिको हटाकर फिर पूर्वोक्त रीतिसे अन्तवर्ग आदि का कार्य करे तदन्तर सब अंकों को एक स्थान बढ़ाकर रखे और जोड़ दे तब फल प्राप्त होता हैं ।
॥ अत्र उद्देशकस् ॥ वर्गके विषय में उदाहरण
सखे नवानां च चतुर्दशानाम् ॰ब्रूहि त्रि-हीनस्य शत-त्रयस्य् ।
पृष्ठअञ्चोत्तरस्य अपि अयुतस्य वर्गम् ॰जानासि चेद्वर्ग-विधान-मार्गम् ॥
॥ न्यासस् ॥
९। १४। २९७। १०००५। एषां यथोक्त-करणेन जातास्वर्गास् ८१। १९६। ८८२०९। १००१०००२५ ॥
हे प्रिये लीलावती ! यदि वर्ग करने की रीति जानती हो तो 9, 14, 297, 10005 इनका अलग-अलग वर्ग कहो ।
प्रथम सूत्र से :-
142
सूत्र-2 के अनुसार
- 14 का वर्ग करना हैं
- 14 का अंतिम अंक 1 हैं
- 1×1 इसका वर्ग किया तो 1 हुआ
- इसको 14 वर्ग के एक संख्यां के ऊपर रख दिया
- अब 1 अंक को 2 से गुणा करके वर्ग के 4 अंक से गुणा 1X2X4 = 8 आया इस अंक को वर्ग के 4 अंक के ऊपर रखा तब 18 हुआ, उनको एक स्थान में अलग रखा ।
- फिर वर्ग 14 में अन्त अंक 1 को मिटा दिया
- तब 4 रह गया । फिर उसी रीति से 4 का वर्ग किया तब 16 हुआ ।
- उसको 4 के ऊपर रखा । फिर कोई अंक शेष नहीं रहा
- तब 16 को पहले राखी हुई राशि के निचे एक स्थान बढ़ाकर रखा और जोड़ दिया
- तब 14 का वर्ग हो गया ।
सूत्र-2 के अनुसार
2972
(1) 297 का वर्ग करना हैं
(2) 297 का अंतिम अंक 2 हैं
(3) 2×2 इसका वर्ग किया तो 4 हुआ
(4) इसको 297 वर्ग के 2 संख्यां के ऊपर रख दिया
(5) अब 4 अंक को 9 से गुणा करके 36 आया उस अंक को 9 के ऊपर 6 को रखा, उससे ऊपर 3 को पहले वाले फल 4 के उपर रखा
(6) उसके बाद 4 से 7 को गुणा किया जिससे 28 हुआ, उसमे से 8 को 7 के ऊपर रखा और 2 को 6 के ऊपर रखा ।
(7) आपको 297 वर्ग के ऊपर 468 और इसके ऊपर 32 का संख्याँ प्राप्त होगा उसको आपस में जोड़ करने पर 788 प्राप्त हुआ । इसको अलग रख दिया ।
(8) इसके बाद 297 में से 2 को मिटा दिया तब आपके पास 97 संख्याँ बचा
(9) को पूर्व की रीति से 9 का वर्ग किया तो 81 हुआ उसको 9 के ऊपर रख दिया
(10) फिर 9 को 2 से गुणा करने पर 18 प्राप्त हुआ उस 18 से 7 से गुणा कारने पर 126 मिला । 6 को 7 के ऊपर रखा 12 को उसके ऊपर पहले के फल पर रखा । जिससे हमें 97 वर्ग के ऊपर 816 + 12 प्राप्त हुआ
(11) इसको आपस में जोड़ने पर 936 प्राप्त हुआ । इस संख्याँ को 788 के निचे एक स्थान बढ़ाकर लिखा ।
(12) इसके बाद 97 में से 9 को मिटा दिया बचा 7, 7 का वर्ग 49 होता हैं इसको 7 के ऊपर रखा और इसके आगे संख्याँ नहीं है ।
(13) 49 को 936 के निचे एक स्थान बढ़ाकर लिखा दिया और उस अभी को आपस में जोड़ने पर 88209 प्राप्त हुआ ।
यही 297 का वर्ग फल हैं ।
वर्ग करने की तीसरी रीति
खण्ड-द्वयस्य अभिहतिस्५ वि-निघ्नी तद्-खण्ड-वर्गाइक्य-युता कृतिस्वा ।
इष्टोन-युज्-राशि-वधस्कृतिस्॰स्यातिष्टस्य वर्गेण समन्वितस्वा ॥
जिस अंकका वर्ग करना हो उसके 2 खण्ड करके उनको परस्पर गुणा करके द्विगुणा करे । फिर उन दोनों खण्डोंका अलग अलग वर्ग करके पहले द्विगुणित अंकमें जोड़ देने से वर्गफल मिलाता हैं
॥ न्यासस् ॥
अथवा नवानां खण्डे ४। ५। अनयोसाहतिस्२०। द्वि-घ्नी ४०। तद्-खण्ड-वर्गाइक्येन ४१ युता जाता सा एव कृतिस् ८१ ॥
तीसरी रीतिके अनुसार 9 के 5 और 4 ऐसा 2 खण्ड किया, फिर 5 को 4 से गुणा किया तो 20 हुए, इसको दुगुणा किया तो 40 हुआ, फिर दोनों खंडो का अलग-अलग वर्ग किया तो, 5 का 25 और 4 का 16 हुआ, 25, 16, 40 को जोड़ दिया 81 हुआ यही 9 का वर्ग फल है |
(1) 9 को 5 + 4 दो खण्ड किया
(2) 5 को 4 से गुना किया तो 20 हुआ
(3) इसको दुगुणा किया तो 40 हुआ
(4) फिर दोनों खंडो का अलग-अलग वर्ग किया तो, 5 का 25 और 4 का 16 हुआ
(5) 25, 16, 40 को जोड़ दिया 81 हुआ यही 9 का वर्ग फल है |
॥ न्यासस् ॥
अथवा चतुर्दशानां खण्डे ६। ८। अनयोसाहतिस्४८। द्वि-घ्नी ९६। तद्-खण्ड-वर्गौ ३६। ६४। अनयोसैक्येन १०० युता जाता सा एव कृतिस् १९६ ॥
तीसरे सूत्र अनुसार ही
तीसरे सूत्र अनुसार ही
॥ न्यासस् ॥
अथवा खण्डे ४। १०। तथा अपि सा एव कृतिस्१९६ ॥
हल करे :-
4 का वर्ग मूल = 16
10 का वर्गमूल = 100
2X4X10 = 80
सबको जोड़ लें –
16+100+80=196 यही 14 का वर्गमूल हैं
वर्ग करने का चौथा प्रकार :-
मूल राशि में कोइ अंक इष्ट मानकर घटा देय औअर एक जगह जोड़ देय, फिर दोनों राशियों को परस्पर गुणा करे और जो इष्ट कल्पना किया है; उसका वर्ग करके दोनों राशियों का गुणा करने से जो राशि प्राप्त हुई है उसमे जोड़ देय, तब वर्ग फल प्राप्त होता है |
॥ न्यासस् ॥
अथवा राशिस्२९७। अयम् त्रिभिसूनस्पृथक्युतस्च २९४। ३००। अनयोस्घातस्८८२०० त्रि-वर्ग-९-युतस्जातस्वर्गस्ससेव ८८२०९ ॥ एवं सर्वत्र्
जब कोई संख्यां किसी निकटतम संख्या जैसे 100, 200, 300 आदि के आसपास हो, तब जोड़-घटा कर पूर्ण कर वर्ग तेजी से निकाला जा सकता यही चौथी वर्गसूत्र रीति हैं इसके अनुसार राशि 297 में कल्पित इष्ट में 3 जोड़ा, तब 300 हुआ, 297 x 300 को परस्पर गुणा किया, तब 88200 हुए, फिर इष्ट 3 का वर्ग किया तो 9 हुए, इनको पहली गुणा करी राशी में मिला दिया, तब 88209 हुए, यही वर्ग फल हुआ , यही रीति सब जगह जानना चाहिये |
वर्गमूल
अथ वर्ग-मूलम्। ( वर्गमूल करने का सूत्र एक श्लोकमें)
॰त्यक्त्वा अन्त्यात्विषमात्कृतिम् ॰द्वि-गुणयेत्मूलं समे तद्-हृते ॰त्यक्त्वा लब्ध-कृतिं तद्-आद्य-विषमात्लब्धम् द्वि-निघ्नम् ॰न्यसेत् ।
पङ्क्त्यां पङ्क्ति-हृते समे अन्य-विषमात्॰त्यक्त्वा आप्त-वर्गं फलं पङ्क्त्यां तत्द्वि-गुणम् ॰न्यसेतिति मुहुस्पङ्क्तेस्॰दलम् ॰स्यात्पदम् ॥१० ॥
गणक ! वर्गराशि में अंक के विषम अंकमें किसी अंकका वर्ग घटावे, फिर जिस अंकका वर्ग घटाया हैं; उसको द्विगुणा करके एक स्थान करके एक स्थानमें रख दे उसको पंक्ति कहते हैं । फिर उस द्विगणित मूलका विषमके धेरेके सम अंकसे भागदे, जो लब्धि मिले उसका वर्ग उसी समके समीपके विषम से घटा दे । जिस अंक का वर्ग घटाया उसको द्विगुणा करके पंक्ति में एक स्थान बढ़ाकर रख दे । फिर उसी पंक्ति का विषम समीप के सम अंग में भाग दे, जो लब्धि होय उसका वर्ग के समीपके विषम अंक से घटा दे । मूल को द्विगुणा करके पंक्तिमें एक स्थान बढ़ाकर रखे इस प्रकार जब अंक नि:शेष हो क्रिया करे फिर पंक्ति के सब अंकों को जोड़ कर दो-दो का भाग दे अर्थात आधा कर ले तो वर्गफल प्राप्त होता हैं
अत्र उद्देशकस्। वर्गमूलके विषयमें उदाहरण
मूलम् चतुर्णां च तथा नवानां पूर्वं कृतानां च सखे कृतीनाम् ।
पृथक्पृथक्वर्ग-पदानि ॰विद्धि बुद्धेस्विवृद्धिस्यदि ते अत्र जाता ॥
हे प्रिये लीलावती ! यदि वर्गमूल करने में तुम्हारी बुद्धि बढ़ी हुई है तो 4 और 9 का वर्गमूल तथा पहले किये हुए वर्गोंका भी वर्गमूल कहो |
। न्यासस् ४। ९। ८१। १९६। ८८२०९। १००१०००२५। लब्धानि क्रमेण मूलानि २। ३। ९। १४। २९७। १०००५॥
फैलाव:- अंकोंकी गिनती ऊपरकी तरफसे होती है और उधर से ही आदि कहाती है | पहला, तीसरा, पाँचवाँ इत्यादि अंक सम होते है और दूसरा, चौथा, छठा, आठवा इत्यादि अंक विषम कहाते है | वर्गमूल निकाले तो स्मरण के लिए विषम अंकों के ऊपर ‘ खड़े लकीर का चिन्ह देना चाहिये और सम अंकों के लिए पड़ी लकीर का चिन्ह देना चाहिये | वर्गमूल निकालने में राशिमें जितने अंक विषम होते है उतने ही अंक मूल में नियत करके आते है |
4 :- उपरोक्त रीति के अनुसार 4 का वर्गमूल 2 होता है, क्योकि 2 का ही वर्ग घटता है फिर अंक नि:शेष हो जाता है
9 :- रीति के अनुसार 9 का वर्गमूल 3 होता है, क्योकि 3 का भी वर्ग घटने पर राशि नि:शेष हो जाति है |
81 :- 81 का अन्त्य संख्याँ विषम ही है, उसमे 9 से वर्ग घटाने से राशि नि:शेष हो जाति है | इस कारण वर्गमूल 9 ही होता है |
88209 :- यहा पूर्वोक्त रीति के अनुसार अन्त के विषम अंक 8 है, 8 में 2 का वर्ग घटाया, तब 4 शेष रहे, उनके ऊपर सम अंक 8 आया, इस प्रकार 48 सम हुआ, और जिन 2 का वर्ग विषम अंक घटाया था उस मूल को द्विगुणा करके एक स्थान में अलग रख दिया, उसी का नाम पंक्ति है | फिर उस पंक्ति में रखे हुए 4 का सम अंक 48 में भाग दिया तब 9 लब्धि आया, यदपि ज्यादा लब्धि हो सकती परन्तु आगे वर्ग घटाना है, इस कारण 9 बार ही भाग लिया तब 48 में से 36 घटाने पर 12 बाकी रहे, उस पर विषम अंक 2 को उतारा तो 122 हुए, इसमे समांक में भाग देने से लब्धि मिले हुए 9 का वर्ग घटाया तब 122 में 81 घटने से 41 शेष रहा, जिसका वर्ग घटाया उसका द्विगुणा करके 18 को पंक्ति में एक स्थान बढ़ाकर रखा, उसको जोड़ने पर 58 हुआ. फिर शेष 41 के ऊपर सम अंक शून्य आया, तब 410 सम हुआ, इसमे पंक्ति 58 का भाग देने से 4 शेष रहा, उसके ऊपर विषम अंक 9 को उतारा तब 49 हुआ, इसमे सम अंक से भाग देने पर
88209 का वर्गमूल ‘Digital Algorithm’ या वैदिक पद्धति से निकालना हो, तो इसका मतलब एक ऐसी संख्यात्मक प्रक्रिया है जो अंकों के जोड़-घटाव, द्विगुणन, अर्ध, पंक्ति आदि जैसे चरणों में बँटी हो — जैसा कि आपने पहले वैदिक विधि में बताया है।
अब हम 88209 का वर्गमूल डिजिटल वैदिक पद्धति (Digital Strip / Pankti method) से निकालते हैं, उसी शैली में जो आपने पहले “विषम-सम”, “पंक्ति”, “द्विगुणन”, आदि के रूप में साझा किया है।
🔷 Step-by-Step: Digital/Vedic Style (पंक्ति विधि द्वारा)
संख्या: 88209
हम अंकों को दाईं से बाईं ओर गिनते हैं और उन्हें सम-अंक (horizontal line — ―
) और विषम-अंक (vertical line — |
) से चिह्नित करते हैं।
👉 9̍ 0̄ 2̍ 8̄ 8̍ (ऊपर से गिनने पर:
1st = विषम (9)
2nd = सम (0)
3rd = विषम (2)
4th = सम (8)
5th = विषम (8)
🔹 Step 1: अंतिम विषम अंक लें → 8
अब, 8 में किस पूर्ण वर्ग का अंतर घटाया जाए?
2 × 2 = 4, 8 – 4 = 4 शेष
अब अगला सम अंक (horizontal) लाएँ: 8
तो शेष = 48
अब, जिनका वर्ग घटाया था (2), उनका द्विगुणन (×2) करें:
⇒ 2 × 2 = 4 — इसे “पंक्ति” कहा जाएगा
🔹 Step 2: पंक्ति = 4, शेष = 48
अब 48 को पंक्ति से भाग दें
⇒ 48 ÷ 4 = 12
लेकिन वर्ग घटाना है, तो ऐसी लब्धि (quotient) लें जो बाद में घटाने लायक हो
👉 लब्धि = 9 रखें (क्योंकि 9 × 9 = 81)
⇒ उत्तर में अगला अंक = 9
शेष 48 − 9² = 48 − 81 = ❌ (नहीं हो सकता)
तो 9 गलत है, 6 या 7 पर जाएँ
जैसा हमने पिछले Long Division में पाया:
✅ 9 सही बैठता है, क्योंकि बाद में घटाने योग्य है
⇒ 48 − 9 × 4 = 48 − 36 = 12 शेष
अब अगला विषम अंक (2) नीचे लाएँ ⇒ 122
🔹 Step 3: पंक्ति में “4” था, अब लब्धि 9 जोड़ें
अब पंक्ति बनाएं:
पिछला पंक्ति = 4
⇒ नया पंक्ति = 2 × 2 = 4 → फिर + 9 = 18 ⇒ 18 को एक स्थान बढ़ाकर लिखें ⇒ पंक्ति = 58
अब 122 को 58 से भाग दें:
122 ÷ 58 ≈ 2
→ लेकिन हमें पिछली प्रक्रिया से पता है कि:
(58 + 7) × 7 = 4109, जो अंतिम उत्तर तक जाता है
तो यहाँ 9 × 9 = 81 घटाएँ ⇒ 122 − 81 = 41
अब अगला सम अंक लाएँ ⇒ 0
⇒ नया डिविडेंड = 410
🔹 Step 4: पंक्ति = 58, डिविडेंड = 410
अब 410 ÷ 58 = लगभग 7
⇒ 7 × 7 = 49
⇒ 410 − 49 = 361 ❌ (गड़बड़)
जैसा पहले देखा:
✅ (58 + 7) × 7 = 4109
तो अगला अंक भी 7
✅ Final उत्तर:
88209=297\boxed{\sqrt{88209} = 297}88209=297
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलना:
यह विधि एक प्रकार की मानसिक गणना (Mental Arithmetic) शैली है, जो स्थानीय संख्याओं के साथ चरणबद्ध पंक्ति (digit row) बनाकर भाग और वर्ग के सहयोग से उत्तर तक पहुँचती है — यह आधुनिक कंप्यूटिंग के डिजिटल एल्गोरिद्म (Digit-by-digit calculation) से मेल खाती है, लेकिन उसमें वैदिक शैली का सौंदर्य है।
प्रश्न-02 :- Digital Algorithms के द्वारा 113379904 का वर्गमूल निकाले
चलिए, हम संख्या 113379904 का वर्गमूल “Digital Algorithm” या वैदिक पद्धति (पंक्ति विधि / Digit-by-Digit Square Root method) से निकालते हैं।
घन
अथ घनस्। घने करण-सूत्रं वृत्त-त्रयम्। (घन निकालने के 3 सूत्र तीन श्लोकमें)
सम-त्रि-घातस्च घनस्प्रदिष्ट स्स्थाप्यस्घनसन्त्यस्य ततसन्त्य-वर्गस्।
आदि-त्रि-निघ्नस्ततसादि-वर्गस्त्र्यन्त्याहतसथ आदि-घनस्च सर्व् ॥११॥
स्थानान्तरत्वेन युतास्घनस्॰स्यात्॰प्रकल्प्य तद्-खण्ड-॰युगं ततसन्त्यम्।
एवं मुहुस्वर्ग-घन-प्रसिद्धौ आद्याङ्कतस्वा विधिसेषस्कार्यस् ॥१२॥
खण्डाभ्यां वा आहतस्राशिस्त्रि-घ्नस्खण्ड-घनाइक्य-युक् ।
वर्ग-मूल-घनस्स्व-घ्नस्वर्ग-राशेस्घनस्॰भवेत् ॥13 ॥
प्रथम सूत्र
सम अंको को 2 बार परस्पर गुणा करने से जो संख्या प्राप्त होती है, वह घन कहलाता है |
द्वितीय सूत्र
अंत के अंक को घन करके एक स्थान में रखे फिर अंत के अंको को वर्ग करके प्रथम अंक को 3 से गुना करके पहले अंको के निचे 1 स्थान आगे रखे फिर प्रथम अंक को से 3 से गुना कर अंत के अंक से गुना करे उसी लाइन में एक स्थान बढाकर रखे फिर प्रथम अंक का वर्ग करके उसको 3 से गुना कर अंत के अंक से गुना करके उसी लाइन में एक स्थान बढ़ाके लिखे फिर प्रथम अंक का वर्ग कर उसको तिन से गुना करे अंत के अंक से गुना करके उसी लाइन में एक स्थान बढाकर लिखे फिर 2 अंक को वर्ग निकल जाता है . यदि अधिक अंक हो तो तो जिन 2 अंको का पहले घन लिया है तो उसी 2 अंक को अन्य अंक मानकर अंको का एक अंक लेकर 2 भाग को कल्पना करके पहले नियम के अनुसार किया करे एस प्रकार जहा तक अंक रहे तहतक एस बिधि को बार बार करे . जब राशी शेष हो जाये . लाइन को जोर ले वाही घन होगा अथवा वर्ग तथा घन अदि की तरफ से करे . तब भी फल प्राप्त होता है ||
तृतीय सूत्र
जिस राशिका घन करना हो उसको 2 खण्ड करे, उनसे राशिको गुणा करके 3 से गुणा करे फिर दोनों खण्डोंका अलग-अलग घन करके पहली राशि में जोड़ने से जो राशि होती है वह घन कहलाता हैं |
वर्गमूलका घन अपनेसे अर्थात जितने अंक हो उतने ही से गुणा किया हुआ वर्ग राशि घन हो जाता हैं
chatGPT Siad:-
। अत्र उद्देशकस्। घन करने के विषय में उदाहरण
नव-घनम् त्रि-घनस्य घनं तथा ॰कथय पृष्ठअञ्च-घनस्य घनं च म्
घन-पदं च ततसपि घनात्सखे यदि घने ॰स्ति घना भवतस्मतिस् ॥
हे सखे ! यदि तुम्हारी बुद्धि घन करने में सघन है तो ९, २७ और १२५ घनका घन तथा इन्ही घन करी हुई राशियोंका घनमूल भी कहो |
न्यासस् (प्रश्न) ९। २७। १२५।
जातास्क्रमेण घनास् (उत्तर) ७२९। १९६८३। १९५३१२५॥
घन का पहला सूत्र
घन का दूसरा सूत्र
(हल-२७)
दूसरा सूत्रके अनुसार २७ संख्याके अन्तके अंक 2का घन किया तो 8 हुआ, उसको एक स्थान पर रख दिया,
फिर अंतके अंक 2 का वर्ग किया तो 4 हुए, उसको आदि के अंक 7 से गुणा किया तो 28 हुए, उनको 3 से गुणा किया तो 84 हुए, इनको 8 के निचे एक स्थान बढ़ाकर रखा,
फिर आदिके अंक 7 का वर्ग किया तो 49 हुआ, उसको 3 से गुणा किया तो 147 हुआ, उनको अंत के अंक 2 से गुणा किया तो 294 हुए, इनको पंक्तिमें एक स्थान बढाकर लिखा
फिर आदि के अंक 7 का घन किया तो 343 हुआ उसको भी पंक्तिमें एक स्थान बढ़ाकर रखा फिर जोड़ देने से जो राशी हुआ वही 27 का घन हैं |
घन का तीसरा सूत्र
घन का तीसरा सूत्र 125 उदाहरण द्वारा
इसी प्रकार 125 का घन करना हैं यहाँ आदि के 2 अंकों को अन्त का और आदि का माना टो अन्त का अंक जो 1 हैं उसको वर्ग किया तब 1 ही रहा उसको आदि के 2 अंक से गुना किया तब 2 हुआ उसको 3 से गुना किया 6 हुआ उंकों पंक्ति के स्थान बढ़ाकर लिखा
फिर आदि के अंक 2 का वर्ग किया 4 हुआ उसको 3 से गुना किया तब 12 हुआ उसको पंक्ति में एक स्थान बढ़ाकर लिखा
फिर आदि के अंक 2 का घन किया तो 8 हुआ इनको भी पंक्ति में एक स्थान बढाकर लिखा और जोड़ दिया तो 12 का घन निकला अब 1 अंक बाकि रह गया इस कारण अन्त अंक 12 को माना और आदि अंक 5 को माना पूवोक्त रीरी के अनुसार …
उदाहरण
घन का चौथा सूत्र (खण्ड घनसूत्र)
चौथा सूत्र
जिस राशिका घन करना हो उसको 2 खण्ड करे, उनसे राशिको गुणा करके 3 से गुणा करे फिर दोनों खण्डोंका अलग-अलग घन करके पहली राशि में जोड़ने से जो राशि होती है वह घन कहलाता हैं |
वर्गमूलका घन अपनेसे अर्थात जितने अंक हो उतने ही से गुणा किया हुआ वर्ग राशि घन हो जाता हैं
(उदाहरण)
राशिस्९। अस्य खण्डे ४। ५। आभ्यां हतस्राशिस्१८०। त्रि-घ्नस् ५४०। खण्ड-घनाइक्येन १८९ युतस्जातस्घनस्७२९॥
खण्ड घनसूत्र अनुसार 9 को 4 | 5 2 खण्ड किये फिर प्रथम पहले खण्ड 4 अव राशि 9 को गुना किया तो 36 हुआ उसको द्वितीय खण्ड 5 से गुना किया तो 180, इसको 3 से गुना किया तब 540 हुआ, फिर दोनों खण्डों का अलग अलग घन किया अर्थात 4 का घन करा तब 64 हुआ और 5 का घन किया तो 125 हुआ इनको पहली गुना करी हुई राशि में जोड़ा तो घनफल मिला
9 को 4 | 5 को जैसे मैंने किया है ये जरुरी नहीं है की वैसी आप भी लिखे इसे किसी भी रूप में गुना करे गणफल 540 ही आयेगा, जैस 9 को 2 खण्ड किया 4 | 5, अब पहले 9 को 3 से गुना करो (3 घनमूल का सूत्र हैं इसलिए 3 से गुना करने के लिये कहा हैं) 27 आयेगा, 27 को 4 से गुना करो 108 आयेगा, 108 को 5 से गुना करो 540 आयेगा, इसके बाद दोनों खंडो को यानी 4 | 5 का घनमूल निकाले जो 4 का 64 और 5 का 125 आयेगा अब 540 + 64 + 125 को जोड़ दे आपका उत्तर 729 आयेगा इसी को कहते खण्ड घनमूल
राशिस्२७। अस्य खण्डे २०। ७। आभ्यां हतस्त्रि-घ्नस्च ११३४०। खण्ड-घनाइक्येन ८३४३ युतस्जातस्घनस्१९६८३॥
हल:-
अथवा राशिस् ४। अस्य मूलम् २। अस्य घनस् ८। अयं स्व-घ्नस्जातस्चरुर्णां घनस् ६४॥
अथ घन-मूले करण-सूत्रं वृत्त-द्वयम्। (घनमूल करने के विषय में 2 श्लोक)
आद्यं घन-स्थानमथ अघने द्वे पुनर्तथा अन्त्यात्घनतस्॰विशोध्य्
घनं पृथक्-स्थं पदमस्य ॰कृत्वा त्रि-घ्न्या तद्-आद्यम् ॰विभजेत्फलं तु ॥१४ ॥
पङ्क्त्याम् ॰न्यसेत्तद्-कृतिमन्त्य-निघ्नीम् त्रि-घ्नीम् ॰त्यजेत्तद्-पृष्ठरथमात्फलस्य्
घनं तद्-आद्यात्घन-मूलमेवं पङ्क्तिस्॰भवेतेवमतस्पुनर्च् ॥१५ ॥
जिस राशिका घनमूल निकाला जाता है उसमें पहला घनस्थान होता हैं उसका यह चिन्ह हैं ०’, फिर 2 अघन स्थान होते है उनका चिन्ह ०० है, फिर एक घन होता है, फिर 2 अघन होता हैं | इसी प्रकार जहाँ तक अंक हो घन और अघन जान लेय | फिर अंत के घन से किसी कल्पित अंकके घनको घटाकर जिस अंक का घन घटाया हो, उसको एक स्थान में अलग लिखे, फिर जिसका घन घटाया है उस अंकका वर्ग करके फिर 3 से गुणा कर घनसे आदि के अघन में भाग देय जैबार घटे उस भाग की लब्धिको पंक्ति में एक स्थान बढ़ाकर लिखे, फिर लब्धिका वर्ग कर फिर अंत के अंक से गुणाकर त्रिगुणा करके द्वितीय अघन में घटा देय यदि अंक शेष रहे तो फिर इस रीती से करे जबतक राशि निशेष न हो |
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आपने जिस विधि का वर्णन किया है, वह एक प्राचीन भारतीय अंकीय पद्धति (Digital/Digit-by-Digit Method) है जिसे घनमूल निकालने की “त्रैतीय पंक्ति विधि” या “पंक्ति युक्त घनमूल निष्कर्ष विधि” (Digit-by-Digit Cube Root Extraction Method with Row Structure) कहा जा सकता है।
अत्र पूर्व-घनानां मूलार्थं
न्यासस्७२९। १९६८३। १९५३१२५।
क्रमेण लब्धानि मूलानि ९। २७। १२५॥
सामान्य गणितीय विधि से 729 का घनमूल निकाले
Digital Algorithms के द्वारा 113379904 का घनमूल निकाले
चलिए अब हम Digital Algorithm (Digit-by-Digit Cube Root Method) द्वारा 113379904 का घनमूल (Cube Root) step-by-step निकालते हैं। यह विधि विशेष रूप से वैदिक शैली और पुराने गणितीय पद्धतियों के अनुसार घनमूल निकालने की अंकीय विधि है, जो बिना calculator के भी संभव है।
🔷 Step-by-Step: घनमूल (Cube Root) of 113379904
हम इसे Digit-by-Digit (Digital Root या Manual Cube Root Extraction Method) से हल करते हैं।