ब्रह्मा, विष्णु एवं महादेव द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति
भगवन ! आप आदिदेव हो, ऐश्वर्य से समपन्न होने के कारण आप देवताओं के इश्वर हैं । सम्पूर्ण भूतों के आदिकर्ता भी आपही हैं । आपही देवाधि देव दिवाकर है । सम्पूर्ण भूतों, देवताओं, गन्धर्वों, राक्षसों, मुनियों, किन्नरों, सिद्धों, नागों तथा पक्षियों का जीवन आपसे ही चलता है । आपही ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, प्रजापति, वायु, इंद्र, सोम, विवस्वान, एवं वरुण हैं । आपही काल हैं । सृष्टि के कर्ता, धर्ता, संहर्ता और प्रभु भी आपही हैं । नदी, समुन्द्र, पर्वत, बिजली, इंद्र-धनुष, प्रलय, सृष्टि, व्यक्त, अव्यक्त, एवं सनातन पुरुष भी आपही हो । साक्षात परमेश्वर आपही हो । आपके हाथ और पैर सब ओर है । नेत्र, मस्तक, और मुख भी सब ओर है, आपके सहस्त्रों किरणे, सहस्त्रों मुख, सहस्त्रों चरण और सहस्त्रों नेत्र है । आप सम्पूर्ण भूतों के आदिकारण हैं । भू:, भुव:, स्व: मह: जन: तप: और सत्य – ये सब आपके ही स्वरुप है । आपका जो स्वरुप अत्यंत तेजस्वी, सबका प्रकाशक, दिव्य, सम्पूर्ण लोकों में प्रकाश बिखेरनेवाला और देवेश्वरों के द्वारा भी कठिनता से देखे जाने योग्य है, उसको हमारा नमस्कार है ।
देवता और सिद्ध जिसका सेवन करते है, भृगु, अत्रि और पुलह आदि महर्षि जिसकी स्तुति में संलग्न रहते है तथा जो अत्यंत अव्यक्त है, आपके उस स्वरुप को हमारा प्रणाम है ।
सम्पूर्ण देवताओं में उतकृष्ट आपका जो रूप वेदवेत्ता पुरुषों द्वारा जानने योग्य, नित्य और सर्वज्ञान समपन्न है, उसको हमारा नमस्कार है ।
आपका जो रूप यज्ञ, वेद, लोक, तथा द्युलोक से भी परे परमात्मा नाम से विख्यात है, उसको हमारा नमस्कार है ।
जो अविज्ञेय, अलक्ष्य, अचिन्त्य, अव्यय, अनादि और अन्नत है, आपके उस स्वरुप को हमारा प्रणाम है ।
प्रभो! आप कारण के भी कारण है, आपको बारम्बार नमस्कार है ।
पापों से मुक्त करने वाले आपको प्रणाम है, प्रणाम है ।
आप दैत्यों को पीड़ा देनेवाले और रोगों से छुटकारा दिलानेवाले है । आपको अनेकानेक नमस्कार है ।
आप सबको वर, सुख, धन और उत्तम बुद्धि प्रदान करने वाले है । आपको बारम्बार नमस्कार है ।