Shree Naval Kishori

देवताओं द्वारा भगवान गणेश की स्तुति

सदा सब कार्यों में सम्पूर्ण देवता तथा शिव, विष्णु और ब्रह्माजी भी जिनका पूजन, नमस्कार और चिन्तन करते हैं, उन विघ्नराज गणेश की हम शरण लेते हैं । विघ्नराज गणेश के समान मनोवांछित फल देनेवाला कोई देवता नहीं हैं, ऐसा निश्चय करके त्रिपुरारि महादेवजी ने भी त्रिपुरवध के समय पहले उनका पूजन किया था । जिनका ध्यान करने से सम्पूर्ण देहधारियों के मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं, वे अम्बिकानंदन गणेश इस महायज्ञ में शीघ्र ही हमारे विघ्नों का निवारण करें ।

‘देवी पार्वती के चिन्तनमात्र से ही गणेशजी –जैसा पुत्र उत्पन्न हो गया । इससे सम्पूर्ण जगत में महान उत्सव छा गया हैं ।’ यह बात उन देवताओं ने अपने मुख से कही थी, जो नवजात शिशु के रूप में गणेशजी को नमस्कार करके कृतार्थ हुए थे । माताकी गोद में बैठे हुए और माता के मना करनेपर भी उन्होंने पिता के ललाट में स्थित चन्द्रमा को बलपूर्वक पकड़कर उनकी जटाओं में छिपा दिया, यह गणेशजी का बालविनोद था । यद्यपि वे पूर्ण तृप्त थे तो भी अधिक देरतक माताके स्तनों का दूध इसलिये पीते रहे कि कहीं बड़े भैया कार्तिकेय भी आकर न पीने लगें । उनकी बुद्धि में बालस्वभाववश भाई के प्रति ईर्ष्या भर गयी थी । यह देखकर भगवान शंकर ने विनोदवश कहा‘विघ्नराज ! तुम बहुत दूध पीते हो, इसलिये लम्बोदर हो जाओ ।’ यों कहकर उन्होंने उनका नाम ‘लम्बोदर; रख दिया । देवसमुदायसे घिरे हुए महेश्वर ने कहा – ‘बेटा ! तुम्हारा नृत्य होना चाहिये ।’ यह सुनकर उन्होंने अपने घुँघुर की आवाज से ही शंकरजी को संतुष्ट कर दिया । इससे प्रसन्न होकर शिवने अपने पुत्रको गणेश के पदपर अभिषिक्त कर दिया । जो एक हाथ में विघ्नपाश और दूसरे हाथ से कंधेपर कुठार लिये रहते हैं तथा पूजा न पानेपर अपनी माता के कार्य मेभी विघ्न डाल देते हैं, उन विघ्नराज के समान दूसरा कौन हैं । जो धर्म, अर्थ और काम आदि में सबसे पहले पूजनीय हैं तथा देवता और असुर भी प्रतिदिन जिनकी पूजा करते हैं, जिनके पूजन का फल कभी नष्ट नहीं होता , उन प्रथम-पूजनीय गणेश को हम पहले मस्तक नवाते हैं । जिनकी पूजा से सबको प्रार्थना के अनुरूप सब प्रकार के फलकी सिद्धि दृष्टीगोचर होती हैं, जिन्हें अपने स्वतंत्र सामर्थ्यपर अत्यंत गर्व हैं, उन बंधूप्रिय मूषकवाहन गणेशजी की हम स्तुति करते हैं । जिन्होंने अपने सरस संगीत, नृत्य, समस्त मनोरथों की सिद्धि तथा विनोद के द्वारा माता पार्वती को पूर्ण संतुष्ट किया है, उन अत्यंत संतुष्ट ह्रदयवाले श्रीगणेश की हम शरण लेते हैं ।