Shree Naval Kishori

हेति यक्षिणी द्वारा अग्निदेवकी स्तुति

जिनका रूप और दान प्रत्यक्ष हैं, सम्पूर्ण पदार्थ जिनके आत्मस्वरूप हैं और देवता जिनके द्वारा हवनीय पदार्थों का भोजन करते हैं, उन यज्ञभोक्ता स्वाहापति अग्नि को मैं नमस्कार करती हूँ । जो देवताओं के मुख, देवताओं के हविष्य को वहन करनेवाले, देवताओं के होता और देवताओं के दूत हैं, उन आदिदेव भगवान अग्नि की मैं शरण लेती हूँ । जो शरीर के भीतर प्राणरूप में स्थित हैं और बाहर अन्नदातारूप में विद्यमान हैं तथा जो यज्ञ के साधन हैं, उन धनंजय (अग्निदेव) की मैं शरण लेती हूँ ।