नारदसंहिता अध्याय-13
योगेशा यमविष्ण्विंदुधातृजीवनिशाकराः ॥
इंद्रतोयाहिवह्रयर्कभूमरुद्रुद्रतोयपाः ॥१॥
अब योगों के स्वामी कहते हैं धर्मराज १ विष्णु २ चंद्रमा ३ ब्रह्मा ४ बृहस्पति ५ चंद्रमा ६ इंद्र ७ जल ८ सर्प ९ अग्नि १० सूर्य ११ भूमि १२ वायु १३ शिव १४ वरुण १५ ॥१॥
गणेशरुद्रधनदास्त्वष्ट्रमित्रषडाननाः ॥
सावित्री कमला गौरी नासत्यौ पितरोऽदितिः ॥२॥
गणेश१६ रुद्र १७ कुबेर १८ त्वष्टा १९ मित्र २० स्वामिकार्तिक २१ सावित्री २२ लक्ष्मी २३ गौरी २४ अश्विनीकुमार २५ पितर २६ अदिति २७ ऐसे ये २७ देवता विष्कंभ आदि योगोंके स्वामी कहे हैं ॥२॥
सवैधृतौ व्यतीपातो महापातावुभौ सदा ॥
परिघस्य तु पूर्वार्द्ध सर्वकार्येषु गर्हितम् ॥३॥
विष्कंभवज्रयोस्तिस्रः षटकं गंडातिगंडयोः ॥
व्याघाते नव शूले तु पंचनाड्यस्तु गर्हिताः ॥४॥
और वैधृत व्यतीपात ये दोनों महापात हैं संपूर्ण त्याज्य हैं । परिघ योगका पर्वार्द्ध त्याज्य है सब कामोंमें निंदित है विष्कंध, वज्र, इनके आदिकी तीन २ घडी वर्जित हैं और गंड अतिगंडकी छह २ घडी वर्जित है व्याघातकी नव शूलकी पांच घडी वर्जित ॥३॥४॥
अदितीन्दुमघाश्लेषामूलमैत्रेज्यभानि च ॥
ज्ञेयानि सहचित्राणि मूर्धिभानि यथाक्रमात् ॥५॥
और पुनर्वसु, मृगशिर, मघा, आश्लेषा, मूल, अनुराधा, पुष्य, चित्रा ये नक्षत्र यथाक्रमसे मस्तकके क्रमविषे कहेहैं ॥५॥
लिखेदूर्ध्वगतामेकां तिर्यग्रेखास्त्रयोदश ॥
तत्र खार्जूरिके चक्रे कथितं मूर्ध्नि भं न्यसेत् ॥६॥
भान्येकरेखागतयोः सूर्यचंद्रमसोर्मिथः ॥
एकार्गलो दृष्टिपातश्चाभिजिद्वर्जितानि वै ॥७॥
तहां एक रेखा खडी खींचे और तेरह रेखा तिरछी खींचनी चाहियें ऐसा तहां खाजूंरिक यंत्र अर्थात् खजूरवृक्ष सरीखे आकारवाला चक बनालेवे तहां सब नक्षत्र लिखचुके पीछे विचारै जो सूर्य चंद्रमाके नक्षत्र एक रेखापर आजावे तो एकार्गल दृष्टिपात योग होताहै यहां अभिजित् नक्षत्रकी गिनती नहीं करनी ॥६॥७॥
लांगले कमठे चक्रे फणिचक्रे त्रिनाडिके ॥
अभिजिद्रणना नास्ति चक्रपाते विशेषतः ॥८॥
हलचक, कर्मचक्र, सर्पाकारचक्र, त्रिनाडीचक्र इनमें अभिजित नक्षत्रकी गिनती नहीं करनी और विशेषकरके चक्रपातमें गिनती नहीं करनी ॥८॥