Shree Naval Kishori

नारदसंहिता अध्याय-15

दिवा मुहूर्ता रुद्राहिर्मित्रपित्र्यवसूदकम् ॥
विश्व विधातृब्रह्मेन्द्रा इन्द्राग्निनिर्ऋतितोयपाः ॥१॥

रुद्र १ सर्प २ मित्र ३ पितर४ वसु ५ उदक ६ विश्वेदेवा ७ अभिजित् ८ ब्रह्मा ९ इंद्र १० इंद्राशी ११ राक्षस १२ वरुण १३ ॥१॥

अर्यमा भगसंज्ञश्च विज्ञेया दश पंच च ॥
ईशाजपादहिर्बुन्ध्याः पूषाश्रियमवह्रयः ॥२॥
धातूचंद्रादितिज्याख्यविष्णवर्कत्वाष्ट्रवायवः ॥
अह्र: पंचदशो भागस्तथा रात्रिप्रमाणतः ॥३॥
मुहर्तमानं द्वे नाड्यौ कथिते गणकोत्तमैः ॥
अथाशुभमुहूर्तानि वारादिक्रमशो यथा ॥४॥

अर्यमा १४ भग १५ ये दिवामुहूर्त हैं अर्थात् दिनमें दोदो घडी प्रमाणतक यथाक्रमसे रुद्रआदिनामक थे १५ मुहूर्त रहते हैं अपने नामसदृश फल जानना और शिव १ अजपात २अहिर्बुध्न्य ३ पूषा, ४ अश्विनीकुमार ५ धर्मराज ६ अग्नि ७ ब्रह्मा ८ चंद्रमा ९.अदिति १० बृहस्पति ११ विष्णु १२ सूर्य १३ त्वष्टा १४ वायु १५ ये पंद्रह मुहूर्त रात्रिके हैं अथात जैसे दिनके पंद्रह भाग किये हैं तैसेही रात्रिके १५ भाग करना और २ घड़ीको एक मुहूर्त होता है और दिनमान रात्रिमान तीस घडीसे कमज्यादै होवें तो इनमें से एक २ मुहूर्त भी दोदो घड़ीसे कमज्यादै समझलेने चाहिये और इनमें वार आदि क्रमसे जो मुहूर्त, अशुभ होतेहैं उनको कहते हैं ॥२॥३॥४॥

अर्यमा राक्षसब्राह्मौ पित्र्याग्नेयौ तथाभिजित् ॥
राक्षसापो ब्रह्मपित्र्यौ भौजंगेशाविनादिषु ॥५॥
वारेषु वर्जनीयास्ते मुहूर्ताः शुभकर्मसु ॥
अन्यानपि तु वक्ष्यामि योगानत्र शुभाशुभान् ॥६॥

अर्यमा मुहूर्त सूर्यवारमें अशुभहै और सोमवारमें राक्षस, ब्रह्मा ये अशुभहै, मंगलमें पितर, अग्नि ये अशुभहैं, बुधमें अभिजित मुहूर्त अशुभहै, बृहस्पतिको राक्षस और उदक अशुभ, शुक्रको ब्रह्मा पितर अशुभ, शनिको सर्प, शिव ये मुहर्त अशुभहैं । रविवार आदिकों में ये सुहूर्त शुभकर्मोंमें यतनकरके वर्जदेने चाहियें ॥ अब यहां अन्यभी शुभअशुभ योगोंको कहते हैं ॥५॥६॥

सूर्यभाद्वेदगोतर्कादिग्विश्वनखसंमिते ॥
चंद्रर्क्षे रवियोगाः स्युर्दोषसंधविनाशकाः ॥७॥

जिस नक्षत्रपर सूर्यहो उस नक्षत्रसे चंद्रमाका नक्षत्र अर्थात् वर्तमान नक्षत्र ४ -९-६-१० – १३ – २० इन संख्याओंपर होवे तो रवियोग होते हैं वे दोषोंके समूहोंको नष्ट करते हैं अर्थात शुभदायक योग जानने ॥७॥

भूकपां सूर्यभात्सप्तमर्क्षे विद्युच्च पंचमे ॥
शूलोष्टमेऽब्धिदिग्भे तु शनिरष्टादशे तथा ॥८॥
केतुः पंचदशे दंड उल्का एकोनविंशतिः ॥
मोहनिर्घातकंपाश्च कुलिशं परिवेषणम् ॥९॥
विज्ञेयमेकविंशर्क्षादारभ्य च यथाक्रमम् ॥
चंद्रयुक्तेषु भेष्वेषु शुभकर्म न कारयेत् ॥१०॥
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सूर्यके नक्षत्रसे ( वर्तमाननक्षत्र ) सातवां होय तो भूकंप योग होताहै, पांचवां विद्युत् आठवां शलभ, चौदहवां शनि, अठारहव नक्षत्र होय तो केतुसंज्ञक योग, पंद्रहवां नक्षत्र होय तो दंड, १९ हो तो उल्का २१-२२-२३-२४-२५-ये होवें तो यथाक्रमसे मोह, निर्धात, कैप, वज्र, परिवेषण, ये योग होते हैं ये नक्षत्र चंद्रमाके देखे जाते हैं अर्थात् सूर्य के नक्षत्रसे चंद्रमाको नक्षत्र गिनलेना चाहिये ॥८॥९॥१०॥

क्रकचं हि प्रवक्ष्यामि योग शास्त्रानुसम्मतम् ॥
निंदितं सर्वकार्येषु तस्मिन्नैवाचरेच्छुभम् ॥११॥

अब सब कामों में निंदित शास्त्रोक्त क्रकचनामक योगको कहतेहैं तिसमें कुछभी शुभकर्म नहीं करना चाहिये ॥११॥

त्रयोदशस्युर्मिलने संख्यया थितिवारयोः ॥
क्रकचो नाम योगोयं मंगलेष्वतिगर्हितः ॥१२॥

तिथि और बारके मिलने से तेरह १३ संख्या होजाय तब क्रकच योग होता है जैसे रविवार १ को १२ । सोमवार २को ११ मंगलको दशमी, बुधको नवमी, गुरुको ८, शुक्रको ७, शनिको छठ इनके योगमें क्रकच योग होता है यह शुभकर्मों में अति निंदित है ॥१२॥

सप्तम्यामर्कवारश्चेत्प्रतिपत्सौम्यवासरे ॥
संवर्तयोगो विज्ञेयः शुभकर्मविनाशकृत् ॥१३॥

सप्तमी तिथिको रविवार हो और प्रतिपदाको बुधवार होय तव संवर्तक योग होताहै यह योग शुभ कर्मको नष्टकरताहै ॥१३॥

आनंदः कालदंडश्चधूम्रधातृसुधाकराः ॥
ध्वांक्षध्वजाख्यश्रीवत्सवज्रमुद्रछत्रकाः ॥१४॥
मित्रमानसपद्माख्यलुबकोत्पातमृत्यवः ॥
काणःसिद्धिः शुभामृतमुसलतककुंजराः ॥१५॥
राक्षसाख्यः चरस्थैयर्यवर्धमानाः क्रमादमी ॥
योगाः स्वसंज्ञफलदा अष्टाविंशतिसंख्यकाः ॥१६॥

आनंद। कालदंड २ धम्र ३ धाता ४ चंद्र ५ ध्वांक्ष ६ ध्वज ७ श्रीवत्स ८ वज्र ९ मुद्रर १० छत्र ११ मित्र १२ मानस १३ पद्म १४ लूंबक १५ उत्पात १६ मृत्यु १७ काण १८ सिद्धि १९ शुभ २० अमृत २१ मुसल २२ रोग २३ मातंग २४ राक्षस २५ चर २६ स्थिर २७ वर्द्धमान २८ ऐसे क्रमसे ये अठाईस योग कहेहैं ये योग अपने नामके अनुसार शुभ अशुभ फल देते हैं ॥१४॥१५॥१६॥

रविवारे क्रमादेते दुस्रभान्भृगभाद्विधौ ॥
सार्पाद्भौमे बुधे हस्तान्मैत्रभात्सुरमंत्रिणः ॥१७॥
वैश्वदेवे भृगुसुते वारुणाद्भास्करात्मजे ॥
हस्तर्क्षे रविवारेऽजे चेंदुभं दस्रभं कुजे ॥१८॥
सौम्ये मित्रं सुराचार्ये तिष्यं पौष्ण भृगेोः सुते ॥
रोहिणी मंदवारे तु सिद्धियोगाह्रया अमी ॥१९॥
यत्रस्यादिन्दुनक्षत्रं मानन्दादिगणस्ततः ॥
अष्टाविंशतियोगानां क्रमोयं प्रोच्यते बुधैः ॥२०॥

इनके देखने का यह क्रम है कि सूर्यवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो आनंद योग होताहै भरणी हो तो कालदंड ऐसा क्रम जानलेना और सोमवारको मृगशिर नक्षत्रसे मंगलको आश्लेषासे -बुधको हस्तसे बृहस्पतिको अनुराधासे शुक्रको उत्तराषाढासे शनिको शतभिषासे आनंदादिक योग जानने और हस्त नक्षत्र सूर्य वारमें हो, चंद्रवारमें मृगशिर, मंगलको अश्विनी और बुधको अनुराधा, बृहस्पतिको पुष्य नक्षत्र होय शुक्रको रेवती शनिको रोहिणी नक्षत्र होय तब ये सिद्धयोग होजाते हैं ऐसे यह आनंद आदि योगोंका क्रम पंडित जनों ने कहा है चंद्रमाका ( वर्तमान ) नक्षत्र जौनसा हो वही आनंदादि योग जानलेना ॥१७॥१८॥१९॥२०॥

आदित्यभौमयोर्नन्दा भद्रा शुक्रशशांकयोः ॥
जया सौम्ये गुरौ रिक्ता शनौ पूर्णा तु नो शुभा ॥२१॥

रवि, मंगलवारको नंदासंज्ञक तिथि होवें शुक्र व चंद्रवारको भद्रा तिथि होवें बुधको जया और बृहस्पतिको रिक्ता शनिको पूर्णा तिथि होवें तो शुभ नहीं है। अर्थात् अशुभ योग जानना ॥२१॥

नंदा तिथिः शुक्रवारे सौम्ये भद्रा जया कुजे ॥
रिक्ता मन्दे गुरोर्वारे पूर्णा सिद्धाह्रया अमी ॥२२॥

शुक्रवारको नंदातिथि बुधको भद्रा मंगलको जया शनिको रिक्ता बृहस्पतिवारको पूर्ण तिथि होवे तो ये सिद्धियोग कहेहैं ॥२२॥

एकादश्यामिदुवारो द्वादश्यामार्किवासरः ॥
षष्ठी बृहस्पतेवारे तृतीया बुधवासरे ॥२३॥

एकादशीविषे सोमवार हो द्वादशीको शनिवार हो बृहस्पतिवारमें छठ, बुधवारविषे तृतीया हो ॥२३॥

अष्टमी शुक्रवारे तु नवम्यामर्कवासरः ॥
पंचमी भौमवारे तु दग्धयोगाः प्रकीर्तिताः ॥२४॥

शुक्रवारको अष्टमी रविको नवमी पंचमीको मंगलवार होवे तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥२४॥

दग्धयोगाश्च विज्ञेया पंगुयोगाभिधा अमी ॥
यमर्क्षमर्कवारेब्जे चित्रा भौमे तु विश्वभम् ॥२५॥
बुधे धानष्ठार्यमभं गुरौ ज्येष्ठा भृगोर्दिने ॥
रेवती मंदवारे तु दग्धयोगा भवंत्यमी ॥२६॥

ये दग्धयोग हैं इनको पंगुयोग भी कहते हैं रविवारको भरणी सोमको चित्रा मंगलको उत्तराषाढ बुधको धनिष्ठा बृहस्पतिको उत्तराफाल्गुनी शुक्रको ज्येष्ठा शनिको रेवती हो तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥२५॥२६॥

विशाखादिचतुर्वर्गमर्कवारादिषु क्रमात् ॥
उत्पातमृत्युकाणाख्याः सिद्धियोगाः प्रकीर्तिताः ॥२७॥

और विशाखा आदि चार नक्षत्रोंका वर्ग सूर्य आदि ७ वारोंमें यथाक्रमसे उत्पात १ मृत्यु २ काण ३ सिद्धि ४ ये चार योग होते हैं जैसे कि रविवारको विशाखा होतो उत्पात अनुराधा मृत्यु ज्येष्ठा काण मूल हो तो सिद्धि योग होता है फिर सोमको पूर्वाषाढामें उत्पात उत्तराषाढामें मृत्यु ऐसा क्रम जानना ऐसे यही क्रम सबवारों में करलेना २८ नक्षत्रोंमें ७ वामें ये चारों योग ठीक २ होवेंगे ॥२७॥

तिथिवारोद्भवा नेष्टा योगा वारर्क्षसंभवाः ॥
हुणवंगखशेभ्योन्यदेशेष्वतिशुभप्रदाः ॥२८॥

तिथि और वारों से उत्पन्नहुए योग अशुभ हैं और वार तथा नक्षत्रसे उत्पन्न हुए योग हूण बंग ( बंगाला ) खश ( नेपाल ) इन देशों के विना अन्य सब देशोमें शुभ हैं ॥२८॥