Shree Naval Kishori

नारदसंहिता अध्याय-19

अमारिक्ताष्टमीषष्ठीद्वादशीप्रतिपत्स्वपि ॥
परिघस्य तु पूर्वार्धे व्यतीपाते च वैधृतौ ॥१॥
सध्यासूपप्लवे विष्टड्यामशुभं प्रथमार्तवम् ॥
रुग्णा पतिव्रता दुःखी पुत्रिणी भागभागिनी ॥
पतिप्रिया केशयुक्ता सूर्यवारादिषु क्रमात् ॥२॥

अमावस्या, रिक्ता, अष्टमी, षष्ठी, द्वादशी, प्रतिपदा ये तिथि, परिघयोगका पूर्वार्ध व्यतीपात, वैधृति, सायंकाल, दिग्दाह, भद्रा ऐसे समयमें प्रथम रजस्वला होय तो अशुभफल जानना और रविवार आदि जिसवारमे पहिले रजस्वला होय उसका फल यथाक्रमसे ऐसे जानना कि रोगवाली १ पतिव्रता २ दुःखिनी ३ पुत्रिणी ४ भोगनोगिनी ५ पतिप्रिया ६ क्लेशसे संयुक्त ७ ऐसे ये फल सूर्यादिवारोंके जानने ॥१॥२॥

श्रीयुक्ता सुभगा पुत्रवती सौख्यान्विता स्थिरा ॥
मानी कुलाधिका नारी चाश्र्विन्यां प्रथमार्तवा ॥३॥

अश्विनी नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होय तो श्रीयुक्ता, सुभगा, पुत्रवती सौख्यसे युक्त, स्थिर, मानवाली कुलमें अधिक पूज्य होती है ॥३॥

दुःशीला स्वैरिणी वंध्या गर्भपातनतत्परः ॥
परप्रेष्या काकवंध्या भरण्या प्रथमार्तवा ॥४॥

और दुष्टस्वभाववाली, व्यभिचारिणी, वंध्या, गर्भपात करनेमें तत्पर, दामी, काकवेध्या यह भरणी नक्षत्रमें प्रथम रजस्वलाके फल हैं ॥४॥

अन्यथा पुंश्चली वंध्या गर्भपातनतत्परा ॥
वेश्या मृतप्रजा चापि वह्रिभे प्रथमार्तवा ॥५॥

व्यभिचारिणी, वंध्या, गर्भपातमें तत्पर, वेश्या, मृतवत्सा यह फल कत्तिका नक्षत्रमें जानना ॥५॥

सुशीला सुप्रजा चान्या पतिभक्ता दृढव्रता ॥
गृहार्चनरता नित्यं धातृभे प्रथमार्तवा ॥६॥

सुंदरस्वभाववाली, सुन्दरसन्तानवाली, पतिमें भक्तिरखनेवाली, दृढनियमवाली, हमेशै गृहपूजनमें तत्पर यह फल रोहिणी नक्षत्रमें प्रथमरजस्वला हो तब जानना ॥६॥

गुणान्विता धर्मरता नारी सर्वेसहा सती ॥
पतिप्रिया सुपुत्रा या चंद्रभे प्रथमार्तवा ॥७॥

गुणयुक्त, धर्ममें तत्पर, सब कुछ सहनेवाली, पतिव्रता, पतिसे प्यार रखनेवाली, अच्छे पुत्रोंवाली यह फल मृगशिर नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होवे तब होता है ॥७॥

कुलटा दुभर्गा दुष्टा मृतपुत्रा खला जडा ॥
दुष्टव्रतपरिभ्रष्टा रौद्रभे प्रथमार्तवा ॥८॥

व्यभिचारिणी, दुर्भगा, दुष्टा, मृतवत्सा, क्रूरा, मूर्खा, दुष्ट आचरणवाली, परिधष्ट, यह फल आर्द्रा नक्षत्रमें प्रथमरजस्वला होनेका है ॥८।।

पतिभक्ता पुत्रवती परसंतानमोदिनी ॥
कलाचारानुरक्ता या दितिभे प्रथमार्तवा ॥९॥

पतिमें भक्ति रखनेवाली, पुत्रवती, पराई संतानको भी आनंद देनेवाली, सबकलाओंवाली, प्रियहितमें रहनेवाली यह फल पुनर्वसु नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेका है ॥९॥

पतिप्रिया पुत्रवती मानभोगवती शुभा ॥
सुकर्मनिरता दक्षा तिष्यर्क्षे प्रथमार्तवा ॥१०॥

पतिसे प्यार रखनेवाली, पुत्रवती,मान भोगवाली,शुभसुंदर कर्म में तत्पर रहनेवाली, चतुर यह फल पुष्य नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेका है ॥१०॥

परभर्तररता प्रेष्या कोपिनी निघृणालसा ॥
मृषावादी च दुष्पुत्रा भौजंगे प्रथमार्तवा ॥११॥

जो स्त्री पहली बार आश्लेषा नक्षत्रमें रजस्वला होय वह परपुरुषसे रमण करनेवाली, दासी, क्रोधवाली, दयारहित, आलस्यसहित, झूठ बोलनेवाली, दुष्ट सैतानवाली होती है ॥११॥

निर्देष्या रोगसंयुक्ता सर्वदाज्ञा च लोलुपा ॥
पितृवेश्मरता मान्या पैतृभे प्रथमार्तवा ॥१२॥

वैररहित, रोगवाली, सदा अज्ञानवाली, लोभसे संयुक्त, पिताके घरमें मोहरखनेवाली मानवती यह फल मघा नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेका है ॥१२॥

पर कार्यरता दीना दुष्पुत्रा क्लेशभागिनी ॥
मलिनी कर्कशा क्रुद्धा भाग्यभे प्रथमार्तवा ॥१३॥

पराये काममें रत, दीन, दुष्टपुत्रोंवाली, क्लेशभागिनी, मलिन, कर्कशा, क्रोधवाली यह फल पूर्वाफाल्गनीमें प्रथम रजस्वला होने का है ॥१३॥

प्रजावती धर्मरता निर्वैरा मित्रपूजिता ॥
सती मित्रगृहे सक्तार्यमर्क्षे तु रजस्वला ॥१४॥

संतानवाली, धर्ममें तत्पर, वैररहित, सम्बधीमित्रजनोंसे पूजित, पतिव्रता, प्यार हितवाले घरमें आसक्त यह फल प्रथम उत्तराफ़ाल्गुनीमें रजस्वला होनेका है ॥१४॥

निर्द्वेष्या भूरिविभवा पुत्राच्या भोगभोगिनी ॥
प्रधाना दानकुशला इस्तर्क्षे प्रथमार्तवा ॥१५॥

वैररहित, बहुत ऐश्वर्यवाली, पुत्रोंवाली, भागको भोगनेवाली, मुख्य, दानकरनेमें निपुण, ऐसी स्त्री प्रथम हस्तनक्षत्रमें रजस्वला होनेवाली होती है ॥१५॥

चित्रकर्मा भोगिनी च कुशला क्रयविक्रये ॥
विकीर्णकामा सुलक्षणा त्वाष्ट्रभे प्रथमार्तवा ॥१६॥

विचित्र काम करनेवाली, भोग भागनेवाली, खरीदने बेचनेके व्यवहारमें चतुर, विस्तृत कामवाली, सुंदर चतुर ऐसी स्त्री चित्रा नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होनेसे होती है ॥१६॥

बहुवित्तवती न स्यात्कुशला शिल्पकर्मणि ॥
पुत्रपौत्रवती साध्वी वायुभे प्रथमार्तवा ॥१७॥

स्वाति नक्षत्रमें प्रथम रजस्वला होय तो बहुत धनवाली नहीं हो और शिल्पकर्ममें चतुर पुत्र पत्रोंवाली तथा पतिव्रता होती है ॥१७॥

नीचकर्मरता दुष्टा परसक्ता परप्रिया ॥
विपुत्रा मलिना ऊद्धा द्विदैवे प्रथमार्तवा ॥१८॥

नीचकर्ममें रत, दुष्टा, परसक्ता, परप्रिया, पुत्ररहित, मलिनी, क्रोधिनी ऐसी विशाखा नक्षत्रमें जाननी ॥१८॥

स्वामिपक्षार्चिता सौख्यगुणैः सम्यग्विभूषिता ॥
सुपुत्रा शुभदा कांता मित्र प्रथमार्तवा ॥१९॥

पतिके कुलसे पूजित, सुखदायक गुणोंकरके विभषित, सुंदर पुत्र पतिवाली यह अनुराधा नक्षत्रका फल जानना ॥१९॥

दुश्चरित्ररता क्लेशिन्यार्तवा पुंश्चली व्यसुः ॥
दुःसंतानवती ज्येष्ठा नक्षत्रे प्रथमार्तवा ॥२०॥

दुष्ट चरित्रमें रत, दुःखी, पैराकी बीमारीवाली, व्यभिचारिणी, बलरहित, दुष्ट संतानवाली, ऐसी स्त्री प्रथम ज्येष्ठा नक्षत्रमें रजस्वला होनेसे होती है ॥२०॥

संतानार्थगुणैरन्यैर्युक्तान्यक्केशमोचिनी ॥
स्वकर्मनिरता नित्यं मूलभे प्रथमार्त्तवा ॥२१॥

संतान धन गुणसे युक्त तथा अन्य गुणों से युक्त, और अन्यजनोके दुःखको दूर करनेवाली, अपने कर्ममें तत्पर, यह मूल नक्षत्रका फल जानना ॥२१॥

प्रच्छन्नपापा दुष्पुत्रा प्राणिहिंसनतत्परा ॥
अजस्रव्यसनासक्ता तोयमे प्रथमार्तवा ॥२२॥

गुप्त पाप करनेवाली, दुष्ट संतानवाली, प्राणियोंकी हिंसा करने वाली, निरंतर व्यसनमें आसक्त, ऐसी स्त्री पूर्वाषाढमें प्रथम रजस्वला होनेसे होती है ॥२२॥

कार्याकार्येषु कुशला सदा धर्मानुवर्तिनी ॥
गुणाश्रया भोगवती विश्वभे प्रथमार्तवा ॥२३॥

कार्य अकार्यमें निपुण, सदा धर्म में रहनेवाली, गुणोंकी खानि, भोगवती यह उत्तराषाढका फल है ॥२३॥

धनधान्यवती भोगपुत्रपौत्रसमन्विता ॥
कुलानुमोदिनी मान्या विष्णुभे प्रथमार्तवा ॥२४॥

धन धान्यवती, भोग पुत्र पौत्र इन्होंके सुखवाली, कुलको प्रसन्न रखनेवाली, मान्य यह फल श्रवण नक्षत्रका है ॥२४॥

पुत्रपौत्रान्विता भोगधनधान्यवती सती ॥
स्वकर्मनिरता मान्या वसुभे प्रथमार्तवा ॥२५॥

पुत्र पौत्रोंवाली, भोग धन धान्यवाली, अपने कार्यमें निपुण, मान्य यह फल धनिष्ठा नक्षत्रका है ॥२५॥

बहुपुत्रा धनवतीः स्वकर्मनिरता सती ॥
कुलानुमोदिनी मान्या वारुणे प्रथमार्तवा ॥२६॥

बहुत पुत्रोंवाली, धनवती, अपने काममें निपुण, पतिव्रता, कुलको प्रसन्न करनेवाली, मान्य, यह फल प्रथम शतभिषा नक्षत्रमें रजस्वला होनेका है ॥२६॥

बंधकी बंधुविद्वेष्या नित्यं दुष्टरता खला ॥
शिल्पकार्येषु कुशलाऽजांध्रिभे प्रथमार्तवा ॥२७॥

व्यभिचारिणी, बंधुओंसे विद्वेष करनेवाली, हमेश. दुष्टजनोंमें रत, दुष्टा, शिल्पकार्यमें निपुण यह फल पूर्वाभाद्रपदमें जानने ॥२७॥

आढ्या पुत्रवती मान्या सुप्रसन्ना पतिप्रिया ॥
बंधुपूज्या धर्मवत्यहिर्बुध्ये प्रथमार्तवा ॥२८॥

धनाढ्या, पुत्रवती, मान्या, सुंदर प्रसन्न, पतिसे प्यार रखनेवाली, बंधुओं से पूज्या, धर्मवाली यह उत्तराभाद्रपदका फल है ॥२८॥

दृढव्रता धर्मवती पुत्रसौख्यार्थसंयुता ॥
विशाखागुणसंपन्ना पौष्णभे प्रथमार्तवा ॥२९॥

और जो स्त्री प्रथम रेवती नक्षत्रमें रजस्वला होवे वह दृढव्रतवाली, धर्मवती, पुत्र धन सुख इन्होंसे युक्त और विशाखा नक्षत्रमें केहेहुये गुणोंसे युक्त होती है ॥२९॥

कलीरवृषचापांत्यनृयुक्न्यातुलाधराः ॥
राशयः शुभदा ज्ञेया नारीणां प्रथमार्तवे ॥३०॥

स्त्रियोंके प्रथम रजस्वला होनेमें कर्क, वृष, धन मीन, मिथुन, कन्या, तुला ये राशि अर्थात् लग्न शुभ कहे हैं.॥३०॥

तिथ्यर्क्षेवारनिंद्याश्चेत्सेककर्म न कारयेत् ॥
दोषाधिक्ये गुणाल्पत्वे तथापि न च कारयेत् ॥३१॥

जो तिथिवार नक्षत्र निंदित होवें और दोष अधिक तथा गुण अल्प होवें तो अभिषेक कर्म नहीं करना चाहिये ॥३३॥

दोषाल्पत्वे गुणाधिक्ये सेककर्म समापयेत् ॥
निद्यर्क्षे तिथिवारेषु यत्र पुष्पं प्रदश्यते ॥३२॥
तत्र शांतिः प्रकर्तव्या धृतदूर्वातिलाक्षतैः ॥
प्रत्येकमष्टशतं च गायत्र्या जुहुयात्ततः ॥३३॥

और दोष थोडेहों गुण अधिक होवें तब अभिषेक कर्म करना चाहिये । निंदित नक्षत्र और निंदित तिथि वार होवे तो घृत, दूब, तिल, अक्षत इन्हों करके अष्टोत्तरशत १०८ गायत्री मंत्रसे होम करे और.पहिले जपकरवाके शांति करे ॥३२॥३३॥

स्वर्णगोभूतिलान्दद्यात्सर्वदोषापनुत्तये ॥
भर्ता तस्यापि गमनं वर्जयेद्रक्तदर्शनात् ॥३४॥

सुवर्ण, गौं, भूमि, तिल इन्होंका दान करे तब सब दोष शांत होते हैं। रजस्वला होवे तब तिसके पतिने भी स्त्रीत्याग करना चाहिये ॥३४॥

रजोदर्शनतोऽस्पृष्टा नार्यो दिनचतुष्टयम् ॥
ततः शुक्रियाश्चैताः सर्ववर्णेष्वयं विधिः ॥३५॥

रजस्वला होनेके बाद चार दिन स्त्री स्पर्श करने योग्य नहीं रहतीहै फिर शुद्ध होतीहै सब वर्णों में यही विधिहै ॥३५॥

ओजराश्यंशुगे चंद्रे लुग्ने पुग्रहवीक्षिते ॥
उपवीती युग्मतिथौ सुनातां कामयोत्स्वयम् ॥३६॥

चंद्रमा, मेष, मिथुन आदि विषमराशिके नवांशकमें स्थितहो और लग्न भी विषम राशिके नवशिकमें स्थित हो और पुरुष ग्रहोंकी दृष्टिसे युक्त हो तब युग्मतिथि विषे शुद्धस्नान करचुकी हुई स्त्रीको सव्य हुआ पुरुष प्राप्त होवै ॥३६॥

पुत्रार्थी पुरुषं त्यक्त्वा पौष्णमूलाहपैतृभम् ॥
युग्मभेषु शशांके च लग्नेऽस्त्रीग्रहवीक्षिते ॥३७॥

और पुत्रकी इच्छावाली स्त्री रेवती, मूल, आश्लेषा, मघा इन नक्षत्रों में तथा युग्म राशिपर चंद्रमा होवे और लग्न स्त्रीग्रहोंकरके दृष्ट होय तब पतिसंग त्याग देवे ॥३७॥

अयुग्मे दिवसे भायौ कन्यार्थी कामयेत्पतिः ॥
निर्वीजानामिमे योगाः सर्वदा निष्फलप्रदाः ॥३८॥

और रजस्वलाके दिनसे विषम दिनों में स्त्रीको प्राप्त होवे ता कन्याजन्म हो ये सब योग निर्बीज पुरुषोंके हैं सदा निष्फल हैं अर्थात् इनमें स्त्रीसंग करनेसे पुत्रकी संतान नहीं होसक्ती ॥३८॥

पुंग्रहाः सूर्यभौमार्याः स्त्रीग्रहौ शशिभार्गवौ ॥
नपुंसकौ सौम्यसौरी शिरोमात्रं विधुतुदः ॥३९॥

सूर्य, मंगल, गुरु ये पुरुष ग्रह हैं । चंद्रमा, शुक स्वग्रह हैं । बुध शनि नपुंसक हैं राहुका शिरमात्र नपुंसक है ॥३९॥