Shree Naval Kishori

नारदसंहिता अध्याय-2

याम्यशृंगोन्नतश्चद्रोऽशुभदो मीनमेषयोः ॥
सौम्यशृंगोन्नतश्रेष्ठो नृयुग्मकरयोस्तथा ॥१॥

उदयकालमें मीन और मेषके चंद्रमाका श्रृंग दक्षिणकी तर्फ ऊंचा हो तो अशुभदायक है और मिथुन मकरके चंद्रमाका उत्तरकी तर्फका कोना ऊँचा हो तो शुभ है ॥१॥

समोऽक्षघटयोः कर्कसिंहयोः शरसन्निभः ॥
चापकीटभयोः स्थूलः शूलवत्तौलिकन्ययोः ॥२॥

वृषभ कुंभके चंद्रमाके दोनों कोने समान, कर्क वा सिंहके चंद्रमाके कोने बाणाकार, वृश्चिक और धनके चंद्रमाका स्थूल आकार, तुला तथा कन्याके चंद्रमाका शूलके आकार होय तो शुभदायक है ॥२॥

विपरीतोंदितश्चद्रो दुर्भिक्षकलहप्रदः ॥
यथोक्तोऽभ्युदितश्चेदुः प्रतिमासं सुभिक्षकृत् ॥३॥

इनसे विपरीत चंद्रमा उदय होवे तो दुर्भिक्ष तथा कलह करे और महीना २ प्रति जैसा कहा है वैसाही उदय होय तो सुभिक्ष कारक जानना ॥३॥

आषाढद्वमूलेंद्रधिष्ण्यानां याम्यगः शशी ॥
अग्निप्रदस्तयचरवनसर्पविनाशकृत् ॥४॥

पूर्वाषाढ,उत्तराषाढ, ज्येष्ठा, मूल, इन नक्षत्रोंमें दक्षिणचारी चंद्रम होय तो अग्निभय हो जलचर जीव वनसर्प इन्होंका नाशहो ॥४॥

विशाखामैत्रयोर्याम्यपार्श्वगः पापकृत्सदा ॥
मध्यगः पितृदेवत्ये द्विदैवत्ये शुभोत्तरे ॥५॥

विशाखा तथा अनुराधा नक्षत्रपर आया हुआ चंद्रमा दक्षिणकी तर्क होके गमन करे तो सदा अशुभ है मघापर मध्यमचारी विशाखापर आवे तब उत्तरचारी चंद्रमा शुभदायक है ॥५॥

सम्प्राप्य पौष्णभाद्रौद्रात्पट् चर्क्षाणि शशी शुभः ॥
मध्यगो द्वादशर्क्षाणि अतीत्य नव वासवात् ॥६॥

रेवतीआदि छःनक्षत्रोंपर आवे तब चंद्रमा शुभ है ग्रंथांतरों में लिखा है कि ये छः अनागत नक्षत्र हैं अर्थात् उत्तराभाद्रपदपर स्थित चंद्रमा रेवतीके तारा पर दीख पडता है इसलिये शुभ कहा और आर्द्रा आदि बारह नक्षत्रोंपर मध्यम चारी शुभहै ॥६॥

यमेंद्राहिभतोयेशा मरुतश्चार्दतारकाः ॥
ध्रुवादिति द्विदैवा: स्युरध्यर्द्धाश्च पराः स्समाः ॥७॥

भरणी, ज्येष्टा, आश्लेषा, शतभिषा, स्वाती ये अर्द्धसंज्ञक तारे हैं और ध्रुवसंज्ञक नक्षत्र, पुनर्वसु विशाखा ये अध्यर्द्ध संज्ञक हैं बाकी रहे नक्षत्र सम कहे हैं ॥७॥

याम्यशृंगोन्नतः श्रेष्ठः सौम्यशृंगोन्नंतः शुभः ॥
शुक्ले पिपीलिकाकारे हानिवृद्धी यथाक्रमात् ॥८॥

दक्षिणका शृंग ऊंचा श्रेष्ठ है और उत्तरका शृंग भी ऊंचा श्रेष्ठ है शुक्लपक्षमें कीडीके आकार याने मध्यमें पतला ऐसा चंद्रमा हानि और कृष्णपक्षमें शुभ दायक है और दक्षिणको स्थूल होवे तो हानि उत्तरको ज्यादे स्थूल हो तो वृद्धिदायकहै ॥८॥

सुभिक्षकृद्विशालेंदुरविशालोर्धनाशनः ॥
अधोमुखे शस्त्रभयं कलहो दंडसन्निभे ॥९॥

स्थूल सुंदर चंद्रमा सुभिक्षकारक है कृश चंद्रमा उदय होय तो दुर्भिक्षकारक है नीचेको मुख होय तो शस्त्र भय हो दंडाकार होय तो प्रजामें कलह हो ॥९॥

कुजाद्येर्निहते शृंगे मंडले वा यथाक्रमात् ॥
क्षेमार्घवृष्टिनृपतिजनानां नाशकृच्छशी ॥१०॥
इति श्रीनारदीयसहितायां चन्द्रचारः ॥

मंगलादि ग्रहों करके चंद्रमंडलका शृंग वेधित होवे तो क्रमसे क्षेम नाश, भावमहिगा, वर्षानाश, राजानाश, प्रजानाश, यह फल होता है ॥१०॥

सप्ताष्टनवमर्क्षेषु स्वोदयाद्वक्रिते कुजे ॥
तद्वक्रमुष्णं तस्मिन्स्यात्प्रजापीडाग्निसंभवः ॥११॥

अपने उदयके नक्षत्रमे सातवां आठवां नवमा नक्षत्रपर मंगल वक्री होय तो उस नक्षत्रपर रहे तबतक प्रजामें पीडा हो अग्निकोप हो ॥११॥

दशमैकादशे ऋक्षे द्वादशे वा प्रतीपगे ॥
वक्रमल्पसुखं तस्मिस्तस्य वृष्टिविनाशनम् ॥१२॥

और दशवाँ और ग्यारहवाँ बारहवाँ नक्षत्रपर वक्री होयतो प्रजामें थोडा सुख वर्षाका नाश ॥१२॥

कुजे त्रयोदशे ऋक्षे वक्रिते वा चतुर्दशे ॥
व्यालाख्यवक्रं तत्तस्मिन्सस्यवृद्धिरहेभयम् ॥१३॥

रंम उदय नक्षत्रसे तेरहवें चौदहवें नक्षत्रपर वक्री होय तो यह व्यालनामक वक्री कहा है इसमें खेतीकी वृद्धि हो और सर्पोका भय हो ॥१३॥

पंचदशे षोडशर्क्षे तद्वकं रुधिरानभम् ॥
सुभिक्षकृद्भयं रोगान्करोति यदि भूमिजः ॥१४॥

पंद्रहवें सोलहवें नक्षत्रपर वक्री होय तो वह रुधिरानन वक्री कहा है तहां सुभिक्ष हो भय और रोग होवे ॥१४॥

अष्टादशे सप्तदशे तदासिससलं स्मृतम् ॥
दस्युभिर्धनहान्यादि तस्मिन्भौमे प्रतीपगे ॥१५॥

अठारहवां नक्षत्र वा सतरहवां नक्षत्रपर वक्र हो वह असिमुसल नामक है तहां चौरादिकोंसे धननाश हो ॥१५॥

फालुन्योरुदितो भौमो वैश्वदेवे प्रतापगः ॥
अस्तगश्चतुरास्यर्क्षे लोकत्रयविनाशकृत् ॥१६॥

पूर्वफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रोंपर मंगलका उदय हो और उत्तषाराढा नक्षत्रपर वक्री हो और रोहिणी नक्षत्रपर अस्त होय तो त्रिलोकीको नष्ट करे ॥१६॥

उदितः श्रवणे पुष्ये वक्रतो नृपहानिदः ॥
यदिग्भ्योऽभ्युदितो भौमस्तदिग्भूपभयप्रदः ॥१७॥

श्रवण पुष्य इनपर उदयहोकर वक्री होय तो राजाकी हानि करे जिस दिशामें मंगल उदय हो उस दिशाके राजाको भयकारक जानना ॥१७॥

मघामध्यगतो भौमस्तत्रैव च प्रतीपगः ॥
अवृष्टिशस्त्रभयदः पांडुदेशाधिपतिकृत् ॥१८॥

मघा नक्षत्रपर मंगल उदय होवे फिर वक्री होजाय तो वर्षा नहीं हो प्रजामें युद्धभय पांडुदेशके राजाका नाश हो ॥१८॥

पितृद्विदैवधातृणां भिद्यते योगतारकाः ॥
दुर्भिक्षं मरणं रोगं करोति यदि भूमिजः ॥१९॥

मधा, विशाखा, रोहिणी इन नक्षत्रोंपर मंगल हो तब इनके तारा ओंको भेदन करे तो प्रजामें दुर्भिक्ष महामारी रोग होवे ॥१९॥

त्रिशूतरातु रोहिण्यां नैऋत्ये श्रवणेंदुभे ॥
अवृष्टिश्चरन्भौमे रोहिणीदक्षिणे स्थितः ॥२०॥

तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल,श्रवण,मृगशिरा इन नक्षत्रोंपर मंगल होय अथवा रोहिणी नक्षत्रके तारासे दक्षिणको स्थित होय तो वर्षा नहीं हो ॥२०॥

भूमिजः सर्वधिष्ण्यानामुदग्गामी शुभप्रदः ॥
याम्यगोनिष्टफलदो भेदे भेदकरो नृणाम् ॥२१॥

यह मंगल सव नक्षत्रोंसे उत्तरकी तरफ होकर चले तो शुभदायक जानना और दक्षिणकी तरफ होकर चले तो अशुभ दायी है तारांको भेद करे तो प्रजामें युद्ध हो ॥२१॥

विनोत्पातेन शशिजः कदाचिन्नोदयं व्रजेत् ॥
अनावृष्टयग्निभयकृदनर्थं नृपविग्रहम् ॥२२॥

कभी उत्पातके बिनाही समयपर बुध उदय नहीं होतो वर्षा नहीं हो अग्निभय अनर्थ और राजाओंका युद्ध होवे ॥२२॥

वसुश्रवणविश्वेदुधातृभेषु चरन्बुधः ॥
भिनत्ति यदि तत्तारामवृष्टिव्याधिभीतिकृत् ॥२३॥

धनिष्ठा श्रवण उत्तराषाढा मृगशिरा रोहिणी इन नक्षत्रोंपर विचरता हुआ बुध जो इन ताराओंको भेदन करे तो वर्षा नहीं हो प्रजा में रोगं भयहो ॥२३॥

आर्द्रादिपितृभांतेषु दृश्यते यदि चंद्रजः ॥
तदा दुर्भिक्षकलहरोगाणां वृद्धिभीतिकृत् ॥२४॥

आर्द्रा आदि मघा नक्षत्रपर्यंत बुधस्थित रहे और इन ताराओंको भेदन करे तब दुर्भिक्ष कलह रोग इन्होंकी वृद्धिसे प्रजामें भय हो ॥२४॥

हस्तादिरसतारासु विचरन्निदुनंदनः ।
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं कुरुते पशुनाशनम् ॥२५॥

हस्त आदि ज्येष्ठापर्यंत नक्षत्रोंपर बुध स्थित होय तो प्रजामें कुशल सुभिक्ष आरोग्य हो पशुओंका नाश हो ॥२५॥

अहिर्बुध्यार्यमाग्नेययमभेषु चरन्यदि ॥
धातुक्षयं च जंतूनां करोति शशिनंदनः ॥२६॥

उत्तरा भाद्रपदा उत्तरा फाल्गुनी कत्तिका,भरणी इन नक्षत्रोंपर गति करता हुआ बुध होय तो जीवोंके शरीरकी सात धातुओंका नाश हो अर्थात् दुर्भिक्ष हो ॥२६॥

दस्रवारुणनैर्ऋत्यरेवतीषु चरन्बुधः ॥
भिषकतुरगवाणिज्यवृत्तीनां नाशकस्तदा ॥२७॥

अश्विनी, शतभिषा, मूल, रेवती इन नक्षत्रोंपर विचरता हुआ वेध करता हुआ बुध, वैद्य अश्व तथा वणिजकी वृत्तिकरने वालोंका नाश करे ॥२७॥

पूर्वोत्रये चरन सौम्यो योगतारां भिनत्ति चेत् ॥
क्षुच्छस्रामयचौरेभ्यो भयदः प्राणिनस्तदा ॥२८॥

तीनों पूर्वाओंपर विचरता हुआ बुध अपने योग ताराको भदन करे तो दुर्मिक्ष, राजयुद्ध, रोग, चौर इन्हीसे प्राणियोंको भय हो ॥२८॥

याम्याग्निधातृवायव्याधिष्ण्येषु प्राकृतागतिः ॥
ईशेदुसार्पपित्र्येषु ज्ञेया मिश्राह्रया गतिः ॥२९॥

भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, स्वाती इन्होंपर बुध होय तो बुधकी प्राकृता गति कही है आर्द्रा, मृगशिर, आश्लेषा, मघा इनपर होय तो मिश्र गति कही है ॥२९॥

संक्षिप्तादितिभाग्यार्यमेज्यधिष्ण्येषु या गतिः ।
गतिस्तीक्ष्णाजचरणेहिर्बुध्येंद्राश्विपूषसु ॥३०॥
योगांतिकांबविश्वाख्यमूलगस्येंदुजस्य च ॥
घोरा गतिर्हेरित्वाष्ट्रवसुवारुणभेषु च ॥३१॥

पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पुष्य इन नक्षत्रोंपर संक्षिप्त तथा पूर्वभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, ज्येष्ठा, रेवती, अश्विनी इन्होंपर होय तो तीक्ष्ण गति कही है पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, मूल इन नक्षत्रोंपर बुध होय तो योगांतिक गति कहलाती है। श्रवण, चित्रा, धनिष्ठा, शतभिषा इनपर होय तब घोर्रा गति कही है ॥३०॥३१॥

इन्द्राग्निमित्रमार्तडभेषु पापाह्रया गतिः ॥
प्राकृताद्यासु गतिषु ह्रुदितोस्तमितोपि वा ॥३२॥
एतावंति दिनान्येव दृश्यस्तावन्न दृश्यगः ॥
चत्वारिंशत्क्रमात्रिंशद्दाविंशद्विशतिर्नव ॥३३॥
पंचदशैकादशभिर्दिवसैः शशिनंदनः ॥
प्राकृतायां गतौ सस्यक्षेमारोग्यसुवृष्टिकृत् ॥३४॥

और विशाखा, अनुराधा, हस्त इन नक्षत्रों पर होय तब पापों गति कही है। इन प्राकृत आदि गतियोंपर प्राप्त हुआ बुध उदय होवे अथवा अस्त होजाय तब जितने दिनोंतक रहता है उनका प्रमाण यथाक्रमसे ऐसे जानना कि प्राकृता गतिमें ४० दिन फिर मिश्रामें ३० दिन संक्षिप्तामें २२ तीक्ष्णामें २० योगांतिकामें ९ दिन ॥३२-३३॥ घोरामें १५ और पापामें ११ दिनतक उदय वा अस्त रहता है इन गतियोंपर दृश्यहुवा भी बुध अदृश्यही रहता है प्राकृता गतिमें खेतीकी वृद्धि, कुशल, आरोग्य शुभवर्षा होवे ॥३४॥

मिश्रसप्तिक्षयोर्मध्ये फलदोऽन्यास्वनिष्टदः॥
वैशाखे श्रावणे पौषे आषाढेप्युदितो बुधः ॥३५॥
जनानां पापफलदस्त्वितरेषु शुभप्रदः ॥
इषोर्जमासयोः शस्त्रदुर्भिक्षाग्निभयप्रदः ॥
उदितश्चंद्रजः श्रेष्ठ रजतस्फटिकोपमः ॥३६॥

और मिश्रा तथा संक्षिप्ता गतिमें भी शुभफल होता है अन्य गतियोंमें अशुभफल होता है वैशाख, श्रावण, पौष, आषाढ इन महीनों में बुध उदय होय तो मनुष्योंको अशुभ फल देता है और अन्य महीनोंमें उदय हो तो शुभफल देता है । आश्विन और कार्तिकमें उदय होय तो युद्ध,दुर्भिक्ष, अग्निभय ये फल करता है और चांदी तथा स्फटिक मणिके समान स्वच्छ उदय होवे तो बुध शुभ कहा है ॥३५-३६॥