नारदसंहिता अध्याय-27
आदौ सौम्यायने कार्य नववास्तुप्रवेशनम् ॥
राज्ञा यात्रा निवृत्तौ च यद्वा द्वंद्वप्रवेशनम् ॥ १ ॥
उत्तरायण सूर्य होवे तव नवीन घरमें प्रवेश करना चाहिये राजा यात्रासे निवृत्त होकर घरमें प्रवेश हो अथवा वरवधूका प्रवेशहो वह भी इसी प्रकार मुहूर्त में होना चाहिये ॥ १ ॥
विधाय पूर्वदिवसे वास्तुपूजां बलिक्रियाम् ॥
माघफाल्गुनवैशाखज्येष्ठमालेषु शोभनः ॥ २ ॥
पहिले दिन वास्तु पूजा बलिदान करके माध, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, इन महीनोमें प्रवेश करना शुभ है ॥ २ ॥
प्रवेशो मध्यमो ज्ञेयः सौम्यकार्तिकमासयोः ॥
वस्वीज्यांत्येंदुवरुणत्वाष्ट्रमित्रास्थरोडुषु ॥ ३ ॥
और मार्गशिर तथा पौषमासमें प्रवेशकरना मध्यम है । और धनिष्ठा, पुष्य, रेवती, मृगशिर, शतभिषा, चित्रा, अनुराधा इन नक्षत्रोंमें और स्थिर संज्ञक नक्षत्रोंमें प्रवेश करना ॥ ३ ॥
शुभः प्रवेशो देवेज्यशुक्रयोर्द्दश्यमानयोः ॥
व्यर्कारवारतिथिषु रिक्तामावर्जितेषु च ॥ ४ ॥
बृहस्पति तथा शुक्रके उदयमें प्रवेश करना शुभ हैं मंगल तथा शनिवारके विना और रिक्ता तथा अमावस्या तिथिके विना अन्य दिनमें प्रवेश करना शुभदायक कहा है ॥ ४ ॥
दिवा वा यदि वा रात्रौ प्रवेशो मंगलप्रदः ॥
चंद्रताराबलोपेते पूर्वोक्तवर्जितेषु च ॥ ५ ॥
दिनमें अथवा रात्रिमें भी प्रवेश करना शुभहै परंतु पूर्वोक्त अशुभ तिथ्यादिकों को वर्जकर चंद्रताराको बल देखलेना चाहिये ॥ ५ ॥
स्थिरलग्ने स्थिरांशे च नैधने शुद्धिसंयुते ॥
त्रिकोणे केंद्रखत्र्याये सौम्यैस्त्र्यायारिगैः खलैः ॥ ६ ॥
स्थिरलग्न, स्थिरराशिका नवांशक हो और आठवें घर कोई ग्रह नहींहो नवमें पांचवें घर, व केंद्रमें और ३ तथा दशवें घर शुभग्रह होवें पापग्रह ३ । ११ । ६ घर होवें ॥ ६ ॥
लग्नात्षष्ठाष्टमस्थेन वर्जितेन हिमांशुना ॥
कर्तुर्वा जन्मभे लग्ने ताभ्यामुपचयेऽपि वा ॥ ७ ॥
लग्नसे छठे आठवें घर चंद्रमा नहीं हो अथवा कर्ताका जन्मलग्न हो तथा जन्मलग्रसे ३ । ४ । १० । ११ लग्नहो तब प्रवेश करना ॥ ७ ॥
कृत्वार्क वामतो विद्वाशृङ्गारं चाग्रतो विशेत् ॥ ८ ॥
विद्वान पुरुष वामार्क सूर्य देखकर शृंगार मंगलसे युक्त हो वरमें प्रवेश करै ॥ ८ ॥
वर्षाप्रश्ने वारिभेऽब्जे पूर्णे वै लग्नगेपि वा ॥
केंद्रगे वा शुक्लपक्षे चातिवृष्टिः शुभेक्षिते ॥ ९ ॥
वर्षाके प्रश्नमें जलराशिपर पूर्णचंद्रमा हो अथवा लग्नमें चंद्रमा हो अथवा शुक्लपक्षमें केंद्रमें चंद्रमा हो तथा शुभग्रहोंसे दृष्ट हो तो अत्यंत वर्षा होवे ॥ ९ ॥
अल्पदृष्टिः पापद्दष्टे प्रावृट्काले चिराद्भवेत् ॥
चंद्रवद्भार्गवे सर्वमेवंविधगुणान्विते ॥ १० ॥
और वर्षाकालमें चंद्रमा पापग्रहोंसे दृष्ट होतो अल्पवर्षा बताना चंद्रमाकी तरह शुक्रसेभी सब शुभ अशुभ फल कहना ॥ १० ॥
प्रावृषींदुः सितात्सप्तराशिगः शुभवीक्षितः ॥
मंदात्रिकोणसप्तस्थो यदि वा वृष्टिकृद्भवेत् ॥ ११ ॥
वर्षाकालमें शुक्रसे सातवीं राशिपर चंद्रमाहो और शुभग्रहोंने द्दष्टहो अथवा शनिसे नवमें, पांचवें घर तथा सातवें घर चंद्रमाहो तो वर्षा होवे ॥ ११ ॥
सद्यो वृष्टिकरः शुक्रो यदा बुधसमीपगः ॥
तयोर्मध्यगते भाना तदा वृष्टिविनाशनम् ॥ १२ ॥
शुक्र जो बुधके समीप होय तो शीघही वर्षा करे तिन्होंके मध्यमें सूर्य आजाय तो वर्षाको नष्ट करै ॥ १२ ॥
मघादिपंचधिष्ण्यस्थः पूर्वा स्वाती त्रये परे ॥
अवर्षणं भृगुः कुर्याद्विपरीते न वर्षति ॥ १३ ॥
मघा आदि पांच नक्षत्र तीन पूर्वा, स्वाती आदि तीन नक्षत्र इन नक्षत्रोंपर शुक्र होय तो वर्षाकरे इनसे विपरीत होय तो नहीं वर्षे ॥ १३ ॥
पुरतः पृष्ठतो भानोर्ग्रहा यदि समीपगाः ॥
तदा वृष्टिं प्रकुर्वेति न चैते प्रतिलोमगाः ॥ १४ ॥
सौम्यमार्गगतः शुक्रो वृष्टिकृन्न तु याम्यगः ॥
उदयास्तेषु वृष्टिः स्याद्भानोरार्द्राप्रवेशने ॥ १५ ॥
चंद्रमा आदि ग्रह पीछेसे अथवा आगेसे सूर्य के समीप होवें तो वर्षा करते हैं और वक्री होकर सूर्य से दूर होवें तो वर्षा नहीं करें शुक्र उत्तरचारी होय तो वर्षा करता है और दक्षिणचारी होय तो वर्षा नहीं करे शुक्रके उदय अस्त होनेके समय वर्षा होती है और सूर्य आर्द्रापर आवे उसदिनका फल कहते हैं ॥ १४ ॥ १५ ॥
विपत्तिः सस्यहानिः स्यादहन्यार्द्राप्रवेशने ॥
संध्ययोः सस्यवृद्धिः स्यात्सर्वसंपन्नृणां निाश ॥ १६ ॥
दिनमें आर्द्राप्रवेश होय तो प्रजामें दुःख और खेतीका नाश हो दोनों संधियोंमें आर्द्राप्रवेश हो वो खेतीकी वृद्धि हो रात्रिमें आर्द्रा प्रवेश हो तो मनुष्योंकी संपूर्ण समृद्धि बढे ॥ १६ ॥
स्तोकवृष्टिरनर्घः स्यादवृष्टिः सस्यसंपदः ॥
आर्द्रोदये प्रभिन्ने चेद्भवेदीतिर्न संशयः ॥ १७ ॥
आर्द्राप्रवेश समय थोडीसी वर्षा हो तो अन्नादि महँगे हों और वर्षा नहीं हो तो खेतियोंकी वृद्धिहो पवन चले तो टीडी आदिका भय हो ॥ १७ ॥
चंद्रेज्येज्ञेथवा शुक्रे केंद्रे त्वीतिर्विनश्यति ॥
पूर्वाषाढगतोभानुर्जीमूतैः परिवेष्टितः ॥ १८ ॥
आर्द्राप्रवेश लग्नसमय चंद्रमा बृहस्पति, बुध, शुक्र ये केंद्रमें होतो टीडी आदि उपद्रव नष्ट होजावें पूर्वाषाड नक्षत्रपर सूर्य आवे तब (धनुकीसंक्रांतिमें ) सूर्य बादलोंसे आच्छादित रहे तो ॥ १८ ॥
वर्षत्यार्द्रादिमूलांतं प्रत्यक्षं प्रत्यहं तथा ॥
वृष्टिश्च पौष्णभे तस्मादशर्क्षेषु न वर्षति ॥ १९ ॥
आर्द्राआदि मूलनक्षत्रतक सूर्य रहे तबतक यथाकालमें सुंदर वर्षा होती है और रेवती नक्षत्रपर सूर्य होनेके समय वर्षा होजाय तो रेवती आदि दश नक्षत्रोंतक सूर्य वर्षा नहीं करता है ॥ १९ ॥
सिंहे भिन्ने कुतो वृष्टिभिन्ने कर्कटे कुतः ॥
कन्योदये प्रभिन्ने चेत्सर्वथा वृष्टिरुत्तमा ॥ २० ॥
सिंहकी संक्रांतिके दिन वर्षा बादल हो और कर्ककी संक्रांतिके दिन वर्षा बादल नहीं हो तो वर्षा संवत् अच्छा नहीं हो ॥ २० ॥
अहिर्बुध्न्य पूर्वसस्यं परसस्यं च रेवती ॥
भरणी सर्वसस्यं च सर्वनाशाय चाश्विनी ॥ २१ ॥
उत्तराभाद्रपदपर सूर्य हो तब बादलगर्भ रहे पूर्व सस्य अर्थात सामणूखेती नहीं हो रेवतीमें गर्भहो तो प्रसस्य कहिये सादूकी खेती नहीं हो अश्विनी भरणी पर सूर्य हो तब बादल वर्षा होजाय तो संपूर्ण खेतियां नष्ट होवें ॥ २१ ॥
गुरोः सप्तमराशिस्थः प्रत्यग्रो भृगुजो यदा ।।
तदातिवर्षणं भूरि प्रावृटकाले बलोज्झिते ॥ २२ ॥
बृहस्पतिसे आगे सातवीं राशिंपर शुक्र स्थित होय तो वर्षाकालमें वर्षा होनेके बादभी बहुत अच्छी वर्षा होनेलगे ॥ २२ ॥
आसन्नमर्कशशिनोः परिवेषगतोत्तरा ॥
विद्युत्प्रपूर्ण मंडूकास्त्वनावृष्टिर्भवेत्तदा ॥ २३ ॥
सूर्य और चंद्रमाके समीप उत्तरदिशामें मंडल होय अथवा बिजली चमके और उत्तरदिशामें ही मीडक बोले तो वर्षा नहीं हो ॥ २३ ॥
यदा प्रत्यंगता भेकाः स्वसद्मोपरि संस्थिताः ॥
पतंति दक्षिणस्था वा भवेदृष्टिस्तदाचिरात् ॥ २४ ॥
जो पश्चिमदिशामें अथवा दक्षिणदिशामें अपने स्थान पर बैठे हुए मीडक उछलके पडनेलगे तो वर्षा शीघ्रही होगी ऐसे जाने ॥ २४ ॥
नखैर्लिखंतो मार्जाराश्चैव निर्लोभसंस्थिताः ॥
सेतुबंधपरा वालाः सद्यो वै वृष्टिहेतवः ॥ २५ ॥
और बिलाव नखोंकरके भूमिको खोदें तथा निर्लोभ हुए स्थित रहें तथा बालक पुल बांधकर खेलने लगे तो वर्षा होगी ऐसा जानना ॥ २५ ॥
पिपीलिका शिरश्छिंन्ना व्यवायः सर्पयोस्तथा ॥
द्रुमाधिरोहः सर्पाणां प्रतीदुर्वृष्टिसूचकाः ॥ २६ ॥
कीडीपर कीडी चढे अथवा कीडी अंडा लेकर चलें सर्प सपणी एकजगह स्थित दीखें सर्प वृक्षपर चढा हुआ दीखे बादल चंद्रमाके सम्मुख दूसरा चंद्रमा दीखे ये सब वर्षा होनेके लक्षण जानने ॥ २६ ॥
उदयास्तमये काले विवर्णोर्कोऽथ वा शशी ॥
मधुवर्णोतिवायुश्चेदतिवृष्टिर्भवेत्तदा ॥ २७ ॥
उदय तथा अस्त होनेके समय सूर्य व चंद्रमाका वर्ण बुरा (गाधला) दीखे अथवा शहदसरीखा वर्ण दीखे अथवा अत्यंत पवन चले तो वर्षा बहुत होती है ॥ २७ ॥