Shree Naval Kishori

नारदसंहिता अध्याय-28

प्राडमुखस्य तु कूर्मस्य नवांगेषु धरामिमाम् ॥
विभज्य नवधा खंडमंडलानि प्रदक्षिणम् ॥
अंतर्वेदी च पांचालं तस्येदं नाभिमंडलम् ॥ १॥
पूर्वकी तर्फ है मुख जिसका ऐसे कूर्मके नव अंगोंविषे इस पृथ्वीका विभाग करना अर्थात् पूर्वाभिमुख कूर्म चक्र बनाकर एक खंडके नव विभाग बनाकर प्रदक्षिणक्रमसे मंडल बनावे तिस कूर्मका नाभिमंडलमें अंतर्वेदी और पांचाल देश कुर्मचक्रका नाभिमण्डल है ॥ १ ॥

प्राचां मागधलाटादिदेशास्तन्मुखमंडलम् ॥
स्त्रीकलेयकिराताख्यादेशास्तद्वाहुमंडलम् ॥ २ ॥
तहां पूर्वके मध्यमें मागध, लाट आदिदेश तिसका मुखमंडल हैं । स्त्रीकलेय, किरात ये देश तिसके बाहुमंडल हैं ॥ २ ॥

अवंतिद्राविडा भिल्लदेशास्तपार्श्वमंडलम् ॥
गौडकौंकणशाल्वेष्टपुण्ड्रास्तत्पार्श्वमंडलम् ॥ ३ ॥
अवंती, उज्जैन प्रांतदेश, द्राविड, भिल्लदेश ये तिसके पार्श्व मंडल हैं और गौड़, कोंकण, शाल्वदेश, पुंड्रदेश ये भी तिसके पार्श्वमंडल हैं ॥ ३ ॥

सिंधुकाशीमहाराष्ट्रसौराष्ट्राः पुच्छमंडलम् ॥
पुलिंदभीष्मयवनगुर्जराः पादमंडलम् ॥ ४ ॥
सिंधुदेश, काशी, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र ये देश तिसके पुच्छमंडल हैं । पुलिंद, भीष्म, यवन, गुर्जर ये देश पादमंडल हैं ॥ ४ ॥

कुरुकाश्मीरमाद्यमत्स्यास्तपार्श्वमंडलम् ॥
रवशाङ्गवंगवाह्रीककांबोजाः पाणिमंडलम् ॥ ५ ॥
कुरु, काश्मीर, माद्रेय, मत्स्यदेश ये तिसके पार्श्वमंडल खश, अंग, बैंग, बाल्हीक, कंबोज ये देश तिसके हाथोकी जगह समझने चाहियें ॥ ५ ॥

कृत्तिकादीनि धिष्ण्यानि त्रीणित्रीणि क्रमात्र्यसेत् ॥
नाभेर्दिक्षु नवांगेषु पापैर्दुष्टं शुभैःशुभम् ॥ ६ ॥
इसप्रकार तिस कूर्म के नव विभाग कर यथाक्रमसे कृत्तिकाआदि तीन २ नक्षत्र रखे । पहले ३ नक्षत्र मध्यमें नाभिमंडलपर रखके मागध लाटादि देशों के क्रमसे इन ९ अंगोंपर रखने फिर जिस अंगरके नक्षत्रोंपर पापग्रह होवे उसी अंगके देशोंमें अशुभफल होवे और जिस देशके नक्षत्रोंपर शुभग्रह आ रहे हों उस देशमें शुभफल हो ऐसे जानो ॥ ६ ॥