Shree Naval Kishori

नारदसंहिता अध्याय-31

वायुनाभिहितो वायुर्गगनात्पतति क्षितौ ॥
यदा दीप्तः खगुरुतः स निर्घातोतिदोषकृत् ॥ १ ॥
वायुसे प्रतिहत हुआ वायु आकाशसे पृथ्वीपर पड़ता है और अपने भारापनसे प्रदीप्त होता है वह निर्यात अत्यंत दोष दायक है यह बिजली पडनेका लक्षण जानना ॥ १ ॥

निर्घातोऽर्कोदये नेष्टः क्षितीशानां विनाशदः ॥
आयामात्प्राक्पौरजनशूद्राणां चैव हानिदः ॥२ ॥
सूर्य उदयसमय निर्धात होय तो राजाओंको अशुभ है नष्टकरनेवाला है, पहरदिन चढे पाहिले हो तो शहरमें रहनेवाले शूद्रोंको हानिदायक है ॥ २ ॥

आमध्याह्रे तु विप्राणां नेष्टो राजोपजीविनाम् ॥
तृतीययामे वैश्यानां जलजानामनिष्टदः ॥ ३ ॥
चतुर्थं चार्थनाशाय संध्यायां हतिं संकरान ॥
आद्ये यामे सस्यहानिर्द्वीतीये तु पिशाचकान् ॥ ४ ॥
मयाह्रतक निर्घात होय तो ब्राह्मणोंको तथा राजद्वारमें नौकर रहनेवाले जनोंको अशुभ है, तीसरे प्रहरमें होयतो वैश्योंको तथा जलचरजीवोंको अशुभ है दिनके चौथे प्रहरमें धनका नाश करे सायंकालमें नीचजातियोंको अशुभ है रात्रिके प्रथम प्रहरमें खेतीकी हानि हो दूसरे प्रहरमें पिशाचोंको नष्ट करै ॥ ३ ॥ ४ ॥

हंत्यर्द्धरात्रे तुरगांस्तृतीये शिल्पिलेखकान् ॥
चतुर्थयामे निर्घातः पतन हंति तदा जनान् ॥ ५ ॥
आधीरात समय घोडोंको नष्ट करै, रात्रिके तीसरे प्रहरमें शिल्पी तथा लेखक जनोंको नष्ट करै, रात्रिके चौथे प्रहरमें पडा हुआ निर्घात ( बिजली ) सब जनों को नष्ट करता है ॥ ५ ॥

भीषज़र्जरशब्दः स तत्रतत्र दिगीश्वरम् ॥ ६ ॥
वह निर्धात अर्थात् बिजलीका पडना जो भयंकर जर्जरशब्द करे तो जिस दिशामें पडे उसीदिशाके राजाको नष्ट करे ॥ ६ ॥

दिग्दाहः पीतवर्णश्चेत्क्षितीशानां भयप्रदः ॥
देशनाशायाग्निवर्णोऽरुणवर्णोंऽनिलप्रदः ॥ ७ ॥
पीतवर्ण दिग्दाह होवे तो राजाओंको भय करे, अग्निसमान वर्ण हो तो देशका नाश करे, लालवर्ण हो तो वायु चलावे ऐसे यह दिग्दाह अर्थात् सूर्यके उदय वा अस्त होनेके समय दिशाओंपर लालं आदि रंग दीखजाते हैं ॥ ७ ॥

धूमः सस्यविनाशाय कृष्णः शस्त्रभयप्रदः ॥
प्राग्दाहः क्षत्रियाणां च नरेशानामनिष्टदः ॥ ८ ॥
धूमवर्ण हो तो खेतीको नष्ट करे, काला वर्ण हो तो शस्त्रका भय हो, पूर्वदिशामें दिग्दाह दीखे तो क्षत्रियोंको और राजाओंको अशुभ फल करे ॥ ८ ॥

आग्नेय्यां युवराजस्य शिल्पिनामशुभप्रदः ॥
पीडा व्रजंति याम्यायां मूकवैश्यनराधमाः ॥ ९ ॥
अग्निकोणमें हो तो युवराज तथा शिल्पीजनोंको अशुभ फल करे, दक्षिणदिशामें हो तो मढजन, वैश्य अधमजन इन्होंको पीडा हो ॥ ९ ॥

नैऋत्यां दिशि चौराश्च पुनर्भूप्रमदा नृणाम् ॥
प्रतीच्यां कृषिकर्तारो वायव्यां पशुजातयः ॥ १० ॥
नैऋतकोणमें हो तो चोर, दूसरे विवाह करानेवाले जन, स्त्री इन्होंके पीडा हो, पश्चिमदिशामें हो तो किसान लोग और वायुकोणमें हो तो पशुजाति नष्ट होवे ॥ १० ॥

सौम्ये विप्रादि चैशान्यां वैश्यानां खंडिनोखिलाः ॥
दिग्दाहः स्वर्णवर्णाभो लोकानां मंगलप्रदः ॥ ११ ॥
उत्तरमें हो तो ब्राह्मण आदि और ईशानकोणमें हो तो वैश्योंको तथा संपूर्ण लोगोंको पीडा हो और सुवर्णसमान प्रदीप्त कांतिवाला दिग्दाह होवे तो संपूर्ण लोगों को शुभदायक है ॥ ११ ॥

सितेन रजसा छिन्नदिग्ग्रामवनपर्वताः ॥
यथा तथा भवंत्यंते निधनं यांति भूमिपाः ॥ १२ ॥
दिशा, ग्राम, वन, पर्वत ये सफेदवायुसे आच्छादित होजायँ अर्थात् अंधी चलकर आकाशमें सफेद गरम चढजाय तो राजालोग मृत्युको प्राप्त होवें ॥ १२ ॥

रजःसमुद्भवो यस्यां दिशि तस्यां विनाशनम् ॥
तत्रतत्रापि जंतूनां हानिदः शस्त्रकोपतः ॥ १३ ॥
और जिस दिशामें रंज (अंधी ) उड़कर चलके आवे उसी दिशाके प्राणियोंके शस्त्रकोपसे हानि करे ॥ १३ ॥

मंत्रीजनप्रदानां च व्याधिदं चासितं रजः ॥
अर्कोदये विजेंभंति गगनं स्थगयंति च ॥ १४ ॥
दिनद्वयं च त्रिदिनमत्युग्रभयदं रजः ॥
रजो भवेदेकरात्रं नृपं हंति निरंतरम् ॥ १५ ॥
कालेवर्णकी रज ( अंधी ) राजमंत्रीको व देशोंको हानि करे सूर्योदयके समय अंधीचलकर आकाशको आच्छादित करदे दोदिन तथा तीनदिन तक अत्यंत उग्रवायु चले और एकरात्रिक निरंतर धुलचढी रहे तो राजाको नष्ट करे ॥ १४ ॥ १५ ॥

परचक्रागमं न स्याद्विरात्रं सततं यदि ॥
क्षामडामरमातंकस्त्रिरात्रं सततं यदि ॥ १६ ॥
दो रात्रितक निरंतर धूल चढी रहे तो परचक्रागमन नहीं होता और तीनरात्रितक धूल बनी रहेको दुष्ट डाकू जनोंका प्रजामें भय हो, रोग हो ॥ १६ ॥

ईतिदुर्भिक्षमतुलं यदि रात्रचतुष्टयम् ॥
निरंतरं पंचरात्रं महाराजविनाशनम् ॥ १७ ॥
चार रात्रितक रहेतो टीडी आदि ईति तथा दुर्भिक्षका अत्यंत भय हो निरंतर पांचरात्रितक हो तो महाराजाको नष्टकरे ॥ १७ ॥

ऋतावन्यत्र शिशिरात्संपूर्णफलदं रजः ॥ १८ ॥
शिशिरऋतुके बिना अन्यऋतुको रज (अंधी) चलना पूराफल करती है अर्थात् शिशिरकतुमें अंधी चलनेका (ज्यादेपवनचलनेका) कुछ दोष नहीं है ॥ १८ ॥

भूभारखिन्ननागेंद्रदीर्घनिःश्वाससंभवः ॥
भूकंपः सोपि जगतामशुभाय भवेत्तदा ॥ २० ॥
पृथ्वीके भारसे खिन्नहुए शेषनागके ऊँचे श्वास लेनसे भूकंप अर्थात् भूमिकांपना भौंचाल होता है वह संसारको अशुभ फलदायी है ॥ २० ॥

यामक्रमेण भूकंपो द्विजातीनामनिष्टदः ॥
अनिष्टदो क्षितीशानां संध्ययोरुभयोरपि ॥ २१ ॥
प्रहरके क्रमसे भूकंप, द्विजातियोंको अशुभफल देता है जैसे दिनके प्रथमप्रहरमें ब्राह्मणोंको अशुभ, २ प्रहरमें क्षत्रियों को, ३ में वैश्योंको और चौथे प्रहरमें शूद्रों को अशुभ जानना और दोनों संधियों में भूकंप होय तो राजाओंको अशुभ है ॥ २१ ॥

अर्यमाद्यानि चत्वारि दस्रेंद्वदितिभानि च ॥
वायव्यमंडलं त्वेतदस्मिन्कंपो भवेद्यदि ॥ २२ ॥
और उत्तराफाल्गुनी आदि चारनक्षत्र, अश्विनी, मृगशिर, पुनर्वसु इन नक्षत्रोंकी वायव्यमंडल संज्ञाहै इसमें भूकंप होय तो ॥ २२ ॥

नृपसस्यवणिग्वेश्याशिल्पवृष्टिविनाशदः ॥
पुष्यद्विदैवभरणी पितृभाग्यानलाऽजपात् ॥ २३ ॥
खेती राजा, वैश्य, वेश्या, कारीगर, वर्षा इन्होंका नाश हो और पुष्य, विशाखा, भरणी,मघा, पूर्वाफाल्गुनी, कत्तिका, पूर्वां-भाद्रपद ॥ २३ ॥

आग्नेयमंड़लं त्वेतदस्मिन्कंपो भवेद्यदि ॥
नृपवृष्टयर्घनाशाय हंति शांबरटंकणान् ॥ २४ ॥
यह इन नक्षत्रका अग्निमंडल कहाताहै इसमें भूकंप हो तो राजाका नाश हो वर्षा नहींहो भाव महँगा रहे शांभरनमक, सुहागा इत्यादि वस्तु महँगी रहें ॥ २४ ॥

अभिजिद्धातृवैश्वेंद्रवसुवैष्णवमैत्रभम् ॥
वासवं मंडलं त्वेतदस्मिन् कंपो भवेद्यदि ॥ २५ ॥
अभिजित, रोहिणी, उत्तराषाढ, ज्येष्ठा, धनिष्ठा, श्रवण, अनुराधा इन्होंका वासवमंडल कहाता है इसमें भूकंप होवे तो ॥ २५ ॥

राजनाशाय कोपाय हंति माहेयर्दुरान् ॥
मूलाहिर्बुध्न्यवरुणाः पौष्णमार्द्राहिभानि च ॥ २६ ॥
राजाका नाश हो और राजाओंका वैर हो माहेय तथा दर्दुर देशों का नाश हो । मूल, उत्तराभाद्रपद, शतभिषा, पूर्वाषाढ, रेवती, आर्द्रा, आश्लेषा ॥ २६ ॥

वारुणं मंडलं त्वेतदस्मिन् कंपो भवेद्यदि ॥
राजनाशकरो हंति पौण्डूचीनपुलिंदकान् ॥ २७ ॥
यह वारुणमंडल कहा है इसमें भूकंप होय तो राजाको नष्ट करे और पौण्ड, चीन, पुलिंद इन देशों को नष्ट करे ॥ २७ ॥

प्रायेण निखिलोत्पाताः क्षितीशानामनिष्टदाः ॥
पङ्किर्मासैश्च भूकंपो द्वाभ्यां दाहफलप्रदः ॥ २८ ॥
विशेष करिके संपूर्ण उत्पात राजाओंको अशुभ कहे हैं भूकंपका फल छःमहीनेमें होताहै दो महीनों में दिग्दाहको फल होता हे ॥ २८ ॥

अनुक्तः पंचभिर्मासैस्तदानीं फलदं रजः ॥ २९ ॥
और रज अर्थात अंधी चलनेका तथा अन्यवस्तुका उत्पात पांचमहीनोंमें फल करताहै ॥ २९ ॥