नारदसंहिता अध्याय-6
ब्राह्रांदैवं मानुषं च पित्र्यं सौरं च सावनम् ॥
चांद्रमार्क्षे गुरोर्मानमिति मानानि वै नव ॥१॥
ब्राह्म, दैव, मानुष, पित्र्य, सौर, सावन, चांद्र, नाक्षत्र, गुरुमान ऐसे नव प्रकारके वर्ष मासादि प्रमाण हैं ॥१॥
एषां तु नवमानानां व्यवहारोत्र पंचभिः ॥
तेषां पृथक्पृथक्कार्ये वक्ष्यते व्यवहारतः ॥२॥
इन नव भेदों में यहां पांच प्रकारों से व्यवहार होता है तिनके जुदेजुदे कार्यव्यवहार कहते हैं ॥२॥
ग्रहण निखिलं कार्यं गृह्यते सौरमानतः ॥
विधेर्विधानं स्त्रीगर्भ सावनेनैव गृह्यते ॥३॥
ग्रहणके सबकार्य सौर मानसे किये जाते हैं किसी कार्यका विधान स्त्रीका गर्भ सावनमानसे गिना जाता है ॥३॥
प्रवर्षण मेघगर्भो नाक्षत्रेण प्रगृह्यते ॥
यात्रोद्धाहव्रतक्षौरतिथिवर्षादिनिर्णयः ॥४॥
पर्ववास्तूपवासादि कृत्स्नं चांद्रेण गृह्यते ॥
गृह्यते गुरुमानेन प्रभवाद्यब्दलक्षणम् ॥ ५॥
वर्षाकाल मेघका गर्भ ये नाक्षत्र मासके क्रमसे ग्रहण किये जाते हैं । यात्रा, विवाह, व्रत, क्षौर, तिथि वर्षादिका निर्णय ॥४॥ पर्वणी वास्तुकर्म व्रत नियम यह चांद्रमाससे ग्रहण किये जाते हैं अर्थात चैत्र शुक्ल पक्षसे जो संवत् लगता है वही क्रम लिया जाताहै और प्रभवादिक संवत्सरोका लक्षण गुरुमानसे ग्रहण किया जाता है । ५॥।
भचक्रगतिरार्क्ष स्यात्सावनं त्रिंशता दिनैः ॥
सौरं संक्रमणं प्रोक्तं चांद्रे प्रतिपादिकम् ॥६॥
नक्षत्रोंकी गतिके अनुसार गिनाजाय वह आक्ष ( नक्षत्र मास ) कहा है और पूरे तीस दिनका होय वह सावन मास कहाहै । सूर्यको संक्रांतिके क्रमसे हो वह सौर मास है प्रतिपदाआदि क्रमसे चांद्रसंज्ञक मास होताहै ॥६॥