कश्यप द्वारा भगवान शिव की स्तुति
देवेश्वर शंकर ! मेरी रक्षा कीजिये । लोकवन्दित परमेश्वर ! मेरी रक्षा कीजिये । सबको पवित्र करनेवाले वागीश ! रक्षा कीजिये । सर्पों का आभूषण पहननेवाले शिव ! रक्षा कीजिये । धर्मस्वरुप वृषभपर सवारी करनेवाले देवता ! रक्षा कीजिये । तीनों वेद जिनके नेत्र हैं, ऐसे भगवान त्रिलोचन ! रक्षा कीजिये । गोधर लक्ष्मीश ! (गो अर्थात वृषभ (नंदी) को धारण करनेसे ‘गोधर’ और लक्ष्मीस्वरुप पार्वती के स्वामी होने से ‘लक्ष्मीश’ है ।) रक्षा कीजिये । त्रिपुरहर ! रक्षा कीजिये । अर्द्धचन्द्र से विभूषित नाथ ! रक्षा कीजिये । यज्ञेश्वर सोमनाथ ! रक्षा कीजिये । मनोवांछित फलों के दाता ! रक्षा कीजिये । करुणाधाम ! रक्षा कीजिये । मंगलदाता ! रक्षा कीजिये । सबकी उत्पत्ति के हेतुभूत परमात्मन ! रक्षा कीजिये । पालन करनेवाले वासव ! रक्षा कीजिये । भास्कर ! वित्तेश ! रक्षा कीजिये । ब्रह्मवन्दित शिव ! रक्षा कीजिये । विश्वेश्वर ! सिद्धेश्वर ! पूर्ण परमेश्वर ! आपको नमस्कार है । रक्षा कीजिये । करुणासागर शिव ! भयंकर संसाररूपी दुर्गम प्रदेश में विचरने के कारण जिनका चित्त उद्धिग्न हो रहा है, ऐसे जीवों के लिये आप ही शरण हैं ।