यमराज द्वारा भगवान् जगन्नाथ की स्तुति
भगवन ! आपको नमस्कार हैं । देव ! आप सम्पूर्ण लोकों के स्वामी और समस्त विश्व के पालक हैं । आपको नमस्कार हैं । आप क्षीर-सागर के निवासी और शेषनाग के शरीर की शय्यापर शयन करनेवाले हैं । आप सबसे श्रेष्ठ, वरेण्य और वरदाता हैं । सबके कर्ता होते हुए भू स्वयं अकृत है – आपको किसी दुसरेने नहीं बनाया हैं । आप प्रभु-शक्ति से सम्पन्न, सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर, अजन्मा, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ तथा किसीसे परास्त न होनेवाले हैं । आपका श्रीविग्रह नील कमलदल के समान श्याम हैं, नेत्र खिले हुए कमल की शोभा धारण करते हैं । आप सबके ज्ञाता, निर्गुण, शांत, जगदाधार, अविनाशी, सर्वलोकस्त्रष्टा तथा सबको सुख देनेवाले हैं । जानने योग्य पुराणपुरुष, व्यक्ताव्यक्तस्वरुप सनातन परमेश्वर, कार्य-कारण के उत्पादक, लोकनाथ एवं जगदगुरु हैं । आपका वक्ष: स्थल श्रीवत्सचिन्ह से सुशोभित हैं । आप वनमाला से विभूषित हैं । आपको वस्त्र पीले रंग का है । आपकी चार बाहें हैं । आप शंख, चक्र, गदा, हार, केयूर, मुकुट और अंगद धारण करनेवाले हैं सब लक्षणों से सम्पन्न, समस्त इन्द्रियों से रहित, कूटस्थ अविचल, सूक्ष्म, ज्योति:स्वरुप, सनातन, भाव और अभावसे मुक्त, व्यापक तथा प्रकृति से परे है । आप भगवान जगन्नाथ को मैं नमस्कार करता हूँ ।