मनुष्यों द्वारा भगवान जगन्नाथ की स्तुति वर्णन
‘जगन्नाथ श्रीकृष्ण ! आपकी जय हो। सब पापों का नाश करनेवाले प्रभो ! आपकी जय हो । चाणूर और केशी के नाशक ! आपकी जय हो । कंसनाशन ! आपकी जय हो ! कमललोचन ! आपकी जय हो । चक्रगदाधर ! आपकी जय हो । नील मेघ के समान श्यामवर्ण ! आपकी जय हो । सबको सुख देनेवाले परमेश्वर ! आपकी जय ही । जगत्पुज्य देव ! आपकी जय हो । संसारसंहारक ! आपकी जय हो । लोकपते नाथ ! आपकी जय हो । मनोवांछित फल देनेवाले देवता ! आपकी जय हो ।
यह भयंकर संसारसागर सर्वथा नि:सार है । इसमें दुःखमय फेन भरा हुआ है । यह क्रोधरूपी ग्राह से पूर्ण है । इसमें विषयरूपी जलराशि भरी हुई है । भांति-भांति के रोग ही इसमें उठती हुई लहरे हैं । मोहरूपी भँवरों के कारण यह अत्यंत दुस्तर जान पड़ता है । सुरश्रेष्ठ ! मैं इस घोर संसाररूपी समुद्र में डूबा हुआ हूँ । पुरुषोत्तम ! मेरी रक्षा कीजिये ।’
देवेश्वर, वरदायक, भक्तवत्सल, सर्वपापहारी, समस्त अभिलषित फलों के दाता, मोटे कंधे और चार भुजाओंवाले, श्यामवर्ण, कमलपत्र के समान विशाल नेत्रोंवाले, चौड़ी छाती, विशाल भुजा, पीत वस्त्र और सुंदर मुखवाले, शंख-चक्र, गदाधर, मुकुटांगदभूषित, समस्त शुभ लक्षणों से युक्त और वनमालाविभूषित भगवान श्रीलक्ष्मीनारायण को प्रणाम करता हूँ |