व्यासजी द्वारा भगवान विष्णुकी स्तुति
जो सम्पूर्ण देवताओं के स्वामी, सबकी उत्पत्ति के कारण, पुराणपुरुष, सनातन, अविनाशी, चतुर्व्यूहस्वरूप, निर्गुण, गुणरूप, परममहान, परम गुरु, वरेण्य, असीम, यज्ञांग और देवता आदि के प्रियतम है, उन भगवान विष्णु को मैं नमस्कार करता हूँ, जिन अजन्मा प्रभु ने सम्पूर्ण चराचर जगत को व्याप्त कर रखा हैं, जो आविर्भाव, तिरोभाव, दृष्ट और अदृष्ट से विलक्षण हैं, सृष्टि और संहार को भी जिनका स्वरूप बतलाया जाता है, उन आदिदेव परब्रह्म परमात्मा को मैं समाधि के द्वारा प्रणाम करता हूँ ।जो सम्पूर्ण विकारों से रहित, शुद्ध, नित्य, सदा एकरूप रहनेवाले और विजयी हैं, उन परमात्मा श्रीविष्णु को नमस्कार हैं । जो हिरण्यगर्भ, हरि, शंकर तथा वासुदेव कहलाते हैं, जिनसे समस्त प्राणियों का तरण-तारण होता हैं, जो सृष्टि, पालन और संहार करनेवाले हैं, उन भगवान को नमस्कार हैं । जो एक होते हुए भी अनेक रूपों में प्रकट होते हैं, स्थूल और सूक्ष्म, व्यक्त और अव्यक्त जिनके स्वरूप हैं और जो मोक्ष के कारण हैं, उन भगवान विष्णुको नमस्कार हैं । जो जगन्मय हैं, जगत की सृष्टि, पालन और संहार के मूल कारण हैं, उन परमात्मा, भगवान विष्णु को नमस्कार हैं । जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर, सम्पूर्ण विश्व के आधारभूत, समस्त प्राणियों के भीतर विराजमान और अपनी महिमा से कभी च्युत न होनेवाले हैं, उन भगवान पुरुषोत्तम को प्रणाम हैं । जो वास्तव में अत्यंत निर्मल ज्ञानस्वरूप होते हुए भी भ्रमपूर्ण दृष्टी के कारण भिन्न-भिन्न पदार्थों के रूप में स्थित दिखायी देते हैं, जिनका आदि नहीं हैं, जो सम्पूर्ण जगत के ईश्वर, अजन्मा, अक्षय और अविनाशी है, उन भगवान श्रीहरि को नमस्कार करके मैं उनके अवतार की कथा आरम्भ करता हूँ ।