नारदजी द्वारा भगवन विष्णु की स्तुति
जो परसे भी परे परम प्रकाशस्वरूप परमात्मा सम्पूर्ण कार्य कारणरूप जगत्में अन्तर्यामी रूपसे निवास करते हैं तथा जो सगुण और निर्गुणरूप हैं, उनको नमस्कार है।
जो मायासे रहित हैं, परमात्मा जिनकान नाम हैं, माया जिनकी शक्ति है, यह सम्पूर्ण विश्न जिनका स्वरूप है, जो योगियोंके ईश्वर, योगस्वरूप तथा योगगम्य हैं, उन सर्वव्यापी भगवान् विष्णुको नमस्कार है।
जो ज्ञानस्वरूप, ज्ञानगम्य तथा सम्पूर्ण ज्ञाता तथा विज्ञानसम्पतिरूप् हैं, उन परमात्माको नमस्कार है।
जो ध्यानस्वरूप, ध्यानगम्य तथा ध्यान करनेवाले साधकोंके पापका नाश करनेवाले हैं; जो ध्येयस्वरूप हैं; उन परमेंश्वरको नमस्कार है।
सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि तथा ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध, यक्ष, असुर और नागगण जिनकी शक्तिसे संयुक्त होकर ही कुछ करनेमें समर्थ होते हैं, जो अजन्मा, पुराणपुरुष, सत्यस्वरूप तथा स्तुतिके अधीश्वर हैं, उन परमात्माको मैं सर्वदा नमस्कार करता हूँ।
जो ब्रह्माजीका रूप धारण करके संसारकी सृष्टि और विष्णुरूपसे जगत्का पालन करते तथा कल्पका अन्त होनेपर जो रुद्ररूप धारण करके संहारमें प्रवृत्त होते हैं और एकार्णवके जलमें अक्षयवटके पत्रपर शिशुरूपसे अपने चरणारविन्दका रसपान करते हुए शयन करते हैं, उन अजन्मा परमेंश्वरका मैं भजन करता हूँ।
जिनके नामका संकीर्तन करनेसे गजराज ग्राहके भयानक बन्धनसे मुक्त हो गया, जो प्रकाशस्वरूप देवता अपने परम पदमें नित्य विराजमान रहते हैं, उन आदिपुरुष भगवान् विष्णुकी मैं शरण लेता हूँ।
जो शिवकी भक्ति करनेवाले पुरुषोंके लिये शिवस्वरूप और विष्णुका ध्यान करनेवाले भक्तोंके लिये विष्णुस्वरूप हैं, जो संकल्पपूर्वक अपने देहधारणमें स्वयं ही हेतु हैं, उन नित्य परमात्माकी मैं शरण लेता हूँ।
जो केशी तथा नरकासुरका नाश करनेवाले हैं, जिन्होंने बाल्यावस्थामें अपने हाथके अग्रभागसे गिरिराज गोवर्धनको धारण किया था, पृथ्वीके भारका अपहरण जिनका स्वाभाविक विनोद है, उन दिव्या शक्तिसम्पन्न भगवान् वासुदेवको मैं सदा प्रणास करता हूँ।
जिन्होंने खम्भमें भयङ्कर नृसिंहरूपसे अवतीर्ण हो पर्वतकी चट्टानके समान कठोर दैत्य हिरण्यकशिपुके वक्षःस्थलको विदीर्ण करके अपने भक्त प्रह्लादकी रक्षा की; उन अजन्मा परमेंश्वरको मैं नमस्कार करता हूँ।
जो आकाश आदि तत्त्वोंसे विभूषित, परमात्मा नामसे प्रसिद्ध, निरञ्जन, नित्य, अमेंयतत्त्व तथा कर्मरहित हैं, उन विश्वविधाता पुराणपुरुष परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ।
जो ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, अग्नि, वायु, मनुष्य, यक्ष, गन्धर्व, असुर तथा देवता आदि अपने विभिन्न स्वरूपोंके साथ स्थित हैं, जो एक अद्वितीय परमेंश्वर हैं, उन आदिपुरुष परमात्माका मैं भजन करता हूँ।
यह भेदयुक्त स्म्पूर्ण जगत् जिनसे उत्पन्न हुआ है, जिनमें स्थित है और संहारकालमें जिनमें लीन हो जायगा, उन परमात्माकी मैं शरण लेता हूँ।
जो विश्वरूपमें स्थित होकर यहाँ आसक्त से प्रतीत होते हैं, परंतु वास्तवमें जो असङ् और परिपूर्ण हैं, उन परमेंश्वरकी मैं शरण लेता हूँ।
जो भगवान् सबके ह्रदयमें स्थिर होकर भी मायासे मोहित चित्तवालोंके अनुभवमें नहीं आते तथा जो परम शुद्धस्वरूप हैं, उनकी मैं शरण लेता हूँ।
जो लोग सब प्रकारकी आसक्तियोंसे दूर रहकर ध्यानयोगमें अपने मनको लगाये हुए हैं, उन्हें जो सर्वत्र ज्ञानस्वरूप प्रतीत होते हैं, उन परमात्माकी मैं शरण लेता हूँ।
क्षीरसागरमें अमृतमन्थनके समय जिन्होंने देवताओंके हितके लिये मन्दराचलको अपनी पीठपर धारण किया था, उन कूर्म रूपधारी भगवान् विष्णुकी मैं शरण लेता हूँ।
जिन अनन्त परमात्माने अपनी दाढ़ोंके अग्रभागद्वारा एकार्णवके जलसे इस पृथ्वीका उद्धार करके सम्पूर्ण जगत्को स्थापित किया, उन वाराह रूपधारी भगवान् विष्णुको मैं नमस्कार करता हुँ।
अपने भक्त प्रह्लादकी रक्षा करते हुए जिन्होंने पर्वतकी शिलाके समान अत्यन्त कठोर वक्षवाले हिरण्यकशिपु दैत्यको विदीर्ण करके मार डाला था, उन भगवान् नृसिंहको मैं नमस्कार करता हूँ।
विरोचनकुमार बलिसे तीन पग भूमि पाकर जिन्होंने दो ही पगोंसे ब्रह्मलोकपर्यन्त सम्पूर्ण विश्वको माप लिया और उसे पुनः देवताओंको समर्पित कर दिया, उन अपराजित भगवान् वामनको मैं नमस्कार करता हूँ।
हैहयराज सहस्त्रबाहु अर्जुनके अपराधसे जिन्होंने समस्त क्षत्रियकुलका इक्कीस बार संहार किया, उन जमदग्निनन्दन भगवान् परशुरामको नमस्कार है।
जिन्होंने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न इन चार रूपोंमें प्रकट हो वानरोंकी सेनासे घिरकर राक्षसदलका संहार किया था, उन भगवान् श्रीरामचन्द्रको मैं नमस्कार करता हूँ।
जिन्होंने श्रीबलराम और श्रीकृष्ण इन दो स्वरूपोंको धारण करके पृथ्वीका भार उतारा और अपने यादवकुलका संहार कर दिया, उन भगवान् श्रीकृष्णका मैं भजन करता हूँ।
भूः, भुवः, स्वः तीनों लोकोंमें व्याप्त अपने ह्रदयमें साक्षात्कार करनेवाले निर्मल बुद्धरूप परमेंश्वरका मैं भजन करता हूँ।
कलियुगके अन्तमें अशुद्ध चित्तवाले पापियोंको तलवारकी तीखी धारसे मारकर जिन्होंने सत्ययुगके आदिमें धर्मकी स्थापना की है, उन कल्किस्वरूप भगवान् विष्णुको मैं प्रणाम करता हूँ।
जिनके अनेक स्वरूपोंकी गणना बड़े बड़े विद्वान् करोड़ों वर्षोंमें भी नहीं कर सकते, उन भगवान् विष्णुका मैं भजन करता हूँ।
जिनके नामकी महिमाका पार पानेमें सम्पूर्ण देवता, असुर और मनुष्य भी समर्थ नहीं हैं, उन परमेंश्वरकी मैं एक क्षुद्र जीव किस प्रकार स्तुति करूँ। जिनके नामका जिस किसी प्रकार कीर्तन अथवा श्रवण कर लेनेपर भी पापी पुरुष अत्यन्त शुद्ध हो जाते हैं और शुद्धात्मा मनुष्य मोक्षको प्राप्त कर लेते हैं, निष्पाप योगीजन अपने मनको बुद्धिमें स्थापित करके जिनका साक्षात्कार करते हैं, उन ज्ञानस्वरूप परमेंश्वरकी मैं शरण लेता हूँ।
सांख्ययोगी स्म्पूर्ण भूतोंमें आत्मारूपसे परिपूर्ण हुए जिन जरारहित आदिदेव श्रीहरिका साक्षात्कार करते हैं, उन ज्ञानस्वरूप भगवान्का मैं भजन करता हुँ।
सम्पूर्ण जीव जिनके स्वरूप हैं, जो शान्तस्वरूप हैं, सबके साक्षी, ईश्वर, सहस्त्रों मस्तकोंसे सुशोभित तथा भावरूप हैं, उन भगवान् श्रीहरिकी मैं वन्दना करता हूँ।
भूत और भविष्य चराचर जगत्को व्याप्त करके जो उससे दस अङ्ल ऊपर स्थित हैं, उन जरा मृत्युरहित परमेंश्वरका मैं भजन करता हूँ।
जो परमेंश्वर ध्यान, चिन्तन, पूजन, श्रवण अथवा नमस्कारमात्र कर लेनेपर भी जीवको अपना परम पद दे देते हैं, उन भगवान् पुरुषोत्तमकी मैं वन्दना करता हूँ।