Shree Naval Kishori

मार्कण्डेयजी द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति

जिनके सहस्त्रों मस्तक हैं,  रोग— शोक आदि विकारसे जो सर्वथा रहित हैं,  जिनका कोई आधार नहीं है (स्वयं ही सबके आधार हैं) तथा जो सर्वत्र व्यापक हैं,  मनुष्योंसे सदा प्रार्थित होनेवाले उन भगवान् नारायणदेवको मैं सदा प्रणाम करता हूँ। जो प्रमाणसे परे तथा जरावस्थासे रहित हैं,  नित्य एवं सच्चिदानन्दस्वरूप हैं तथा जहाँ कोई तर्क या संकेत काम नहीं देता,  उन भगवान् ‌‍जनार्दनको मैं प्रणाम करता हूँ। जो परम अक्षर,  तित्य,  विश्वके आदिकारण तथा जगत्‌‍के उत्पत्तिस्थान हैं,  उन सर्वतत्त्वमय शान्तस्वरूप भगवान् ‌‍जनार्दनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो पुरातन पुरुष सब प्रकारकी सिद्धियोंसे सम्पन्न और सम्पूर्ण ज्ञानके एकमात्र आश्रय हैं,  जिनका स्वरूप परसे भी अति परे है,  उन भगवान् ‌‍जनार्दनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो परम ज्योति,  परम धाम तथा परम पवित्र पद हैं,  जिनकी सबके साथ एकरूपता है,  उन परमात्मा जनार्दनको मैं प्रणाम करता हूँ। सत्,  चित् ‌‍और आनन्द ही जिनका स्वरूप है,  जो सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मादि देवताओंके लिये भी परम पद हैं,  उन सर्वस्वरूप श्रेष्ठ सनातन भगवान् जनार्दनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो सगुन,  निर्गुण,  शान्त,  मायातीत और विशुद्ध मायाके अधिपति हैं तथा जो रूपरहित होते हुए भी अनेक रूपवाले हैं,  उन भगवान् ‌‍जनार्दनको मैं प्रणाम करता हूँ। जो भगवान् ‌‍इस जगत्‌‍की सृष्टि,  पालन और संहार करते हैं,  उन आदिदेव भगवान् ‌‍जनार्दनको मैं नमस्कार करता हूँ। परेश ! परमानन्द ! शरणागतवत्सल ! दयासागर ! मेंरी रक्षा कीजिये। मन— वाणीसे अतीत परमेंश्वर ! आपको नमस्कार है।