कश्यपजी द्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति
सम्पूर्ण विश्वकी सृष्टिके कारणभृत ! आप परमात्माको नमस्कार है, नमस्कार है। समस्त जगत्का पालन करनेवाले ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। देवताओंके स्वामी ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। दैत्योंका नाश करनेवाले देव ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। भक्तजनोंके प्रियतम ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। साधु पुरुष आपको अपनी चेष्टाओंसे प्रसन्न करते है; आपको नमस्कार है, नमस्कार हैं। दुष्टोंका नाश करनेवाले भगवान्को नमस्कार हैं, नमस्कार है। उन जगदीश्वरको नमस्कार हैं, नमस्कार है। कारणवश वामनस्वरूप धारण करनेवाले अमित पराक्रमी भगवान् नारायणको नमस्कार है, नमस्कार है। धनुष चक्र, खङ् और गदा धारण करनेवाले पुरुषोत्तमको नमस्कार है। क्षीरसागरमें निवास करनेवाले भगवान्को नमस्कार है। साधु— पुरुषोंके ह्रदयकमलमें विराजमान परमात्माको नमस्कार है। जिनकी अनन्त प्रभाकी सूर्य आदिसे तुलना नहीं की जा सकती, जो पुण्याकथामें आते और स्थित रहते हैं, उन भगवान्को नमस्कार है, नमस्कार है। सूर्य और चन्द्रमा आपके नेत्र हैं, आपको नमस्कार है, नमस्कार है। आप यज्ञोंका फल देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप यज्ञके सम्पूर्ण अङ्गोमें विराजित होते हैं, आपको नमस्कार है। साधु पुरुषोंके प्रियतम ! आपको नमस्कार है। जगत्के कारणोंके भी कारण आपको नमस्कार है। प्राकृत शब्द, रूप आदिसे रहित आप परमेंश्वरको नमस्कार है। दिव्य सुख प्रदान करनेवाले आपको नमस्कार है। भक्तोंके हृदयमें वास करनेवाले आपको नमस्कार है। मत्य्यरूप धारण करके अज्ञानान्धकारका नाश करनेवाले आपको नमस्कार है। कच्छपरूपसे है। यज्ञवराह— नामधारी आपको नमस्कार है। हिरण्याक्षको विदीर्ण करनेवाले आपको नमस्कार है। वामन— रूपधारी आपको नमस्कार है। क्षत्रिय— कुलका संहार करनेवाले परशुरामरूपधारी आपको नमस्कार है। रावणका संहार करनेवाले श्रीराम— रूपधारी आपको नमस्कार है। नन्दसुत बलराम जिनके ज्येष्ठ भ्राता हैं, उन श्रीकृष्णावतारधारी आपको नमस्कार है। कमलाकान्त ! आपको नमस्कार है। आप सबकी पीड़ाओंका नाश करनेवाले हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। यज्ञेश ! जज्ञस्थापक ! यज्ञविघ्न— विनाशक ! यज्ञरूप ! और यजमानरूप परमेंश्वर ! आप ही यज्ञके सम्पूर्ण अङ् हैं। मैं आपका यजन करता हूँ।