Shree Naval Kishori

॥श्री॥
शिशुबोधः ज्ञानम्

भास्करञ्च प्रणमयाssदौ शंकरञ्च गजाननम् ।
करोमि बालबोधाय शिशुबोधमविस्तरम् ॥१॥

हिन्दी- मै ( दैवज्ञ कलाधर शर्मा ) सर्वप्रथम सूर्य ( गहननक्षत्रो मे प्रधान ), गणेश तथा शिवजी को प्रणाम करके संक्षिप्त शिशुबोध नामक ग्रंथ की रचना करता हूँ ।

अथ तिथिनामानि-
पडिव (प्रतिपदा ), द्वितिय, तृतीया, चौथ (चतुर्थी ), पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पञ्चदशी, ( कृष्णपक्षे अमावास्य शुक्लपक्षे तु पूर्णिमा ) ।

हिन्दी- प्रतिपदा, द्वितिय, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पुर्णिमा ( शुक्लपक्ष मे ) अथवा अमावस्या ( कृष्णपक्ष मे ), ये १५ तिथियाँ होती है ।

अथ वारनामानि-
रविश्चन्द्रः कुजश्चैव बुधश्चैव बृहस्पतिः ।
तथा शुक्रः शनिश्चैव वारानामाभिधीयते ॥२॥

हिन्दी- रवि, सोम, मंगल, बुध, बृहशपाती, शुक्र, और शनि,-ये ७ वार होते है ।

अथ नक्षत्रनामानि-
अश्विनी, भरणी, कृतिक, रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वफल्गुनी, उतरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठ, मूल, पूर्वाषाढा, उतराषाढा ( अभिजित् ), श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपदा, उतरभाद्रपदा, रेवती ।

हिन्दी- अश्विनी से लेकर रेवती तक २७ नक्षत्र होए है, कही-कही २८वें नक्षत्र अभिजीत का भी प्रयोग किया देखा जाता है । इसकी उत्पाती उतरषाढ़ा तथा श्रवण के योग से होती है ।

अथ योगनामनि-
विष्कुम्भः प्रीतिरायुष्मन् सौभाग्यः शोभनस्तथा ।
अतिगण्डः सुकर्मा च धृतिः शुलस्तथैव ॥३॥
गण्डो वृद्धिध्रुवश्चैव व्यघतो हर्षणस्तथा ।
वज्रः सिद्धिव्यतीपातो वरीयान् परिघः शिवः ।
सिधिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मएन्द्रो वैधृतिः क्रमात् ॥४॥

हिन्दी- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान्, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शुल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्यघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्धि, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, एन्द्र और वैधृति-ये क्रम से २७ योग होते है ।

अथ करणनामानि-
ववाह्वयं बालवकौलवाख्ये ततो भवेतैतिलनाममधेयम् ।
गराभिधानं वणिजश्च विष्टिरित्याहुराय्याः करणानि सप्त ॥५॥

हिन्दी- वव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि-ये क्रम से ७ करण ज्योतिषशास्त्र के आचर्यों ने कहे है ।

अथ स्थिरकरणानि-
चतुद्र्दषि या शशिना प्रहीणा तदर्द्धभागे शकुनिद्वितिये ।
दशाद्र्र्धयोः स्तश्चतुरघ्रिनागौ किंस्तुघ्नमाघे प्रतिपद्दले च ॥६॥

हिन्दी- कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के उतरार्ध मे शकुनि करण, अमावस्या के पूर्वार्ध मे चतुष्पद ( चतुरंघि ) और उतरार्ध मे नाग तथा प्रतिपदा के पूर्वार्ध मे किंस्तुघ्न करण होता है । ये चार स्थिर कहे गए है, क्योंकि इनका परिवर्तन नहीं होता ।

अथ राशिनामानि-
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिन्हः, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन ।

हिन्दी- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिन्हः, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन-ये 12 राशियाँ होती है ।

अथ होडाचक्रम्-
चुचेचोल अश्विनी, लिलुलेलो भरणी, अइउए कृतिका, ओवविवु रोहिणी, बेबोककि मृगशिरा, कुघञ्च आद्रा, केकोहाहि पुनर्वषु, हुहेहोड पुष्य, डिडुडेडो आश्लेषा, ममिमुमे मघा, मोटाटिटु पूर्वफल्गुनी, टेटोपपि उतराफल्गुनी, पुषणठ हस्त, पेपोररि चित्रा, रुरेरोत स्वति, तितुतेतो विशाखा, ननिनुने अनुराधा, नोययियु ज्येष्ठा, येयोभभि मुल, भूधफढ पूर्वषाढा, भेजोजजि उतराषाढा, जुजेजोख अभिजित्, खिखुखेखो श्रवन, गगिगुगे घनिष्ठ, गोससिसु शतभिषा, सेसोददि पूर्वभाद्रपदा, दुथझय उतराभाद्रपदा, देदोचचि रेवती ।

अथ नक्षत्रदेवताः-
अश्वो यमो नलो ब्रह्मा शशी रुद्रोsदितिगुरुः ।
सर्पः पिता भगश्चैव अर्यमा च दिवाकरः ॥७॥
त्वष्टा वायुश्च शक्राग्नी मैत्रन्चैव पुरान्दरः ।
निर्ऋतिः सलिलं चैव विश्वेदेवा हरिस्तथा ॥८॥
वसवो वरुणश्चैव अजपादश्तथैव च ।
अहिर्बुध्न्यस्तथा पूषा क्रमान्नक्षत्रदेवताः ॥९॥

हिन्दी- अश्विनी आदि २७ नक्षत्रो के क्रमशः २७ देवता ऊपर कहे गये है । क्रम से समझ लें । केवल प्रथम अश्व का अर्थ अस्विनीकुमार होगा, विशाखा नक्षत्र के शक्र और अग्नि-ये दो देवता होते है । अन्य सभी नक्षत्र के १-१ देवता है, शेष आगे चक्र मे देखें ।

अथ पूर्वादिदिक्षुचन्द्रवासः-
मेष च सिंहे धनुषीन्द्रभागे वृषे च कन्यामकरे च याम्ये ।
युग्मे तुलायां च घटे प्रतीच्यां कर्कालिमीने दिशि चोतरस्याम् ॥१०॥

हिन्दी- मेष,सिंह, धन का चंद्रमा पूर्व मे, वृष,कन्या,मकर का दक्षिण मे, मिथुन, तुला, कुम्भ का पश्चिम मे और कर्क , वृश्चिक, मीन और उत्तर मे रेहता है ।

अथ यात्रायां चन्द्रफलम्-
सम्मुखस्थेsर्थलाभः स्याद् दक्षिणे सुखसम्पदौ ।
पृष्ठे च शोकसन्तापो वामे चन्द्रे धनक्षयः ॥११॥

हिन्दी- यात्रा के समय चंद्रमा सामने की और हो तो धन-लाभ, दक्षिण मे हो तो सुख और संपति, पीछे की और होने पर शोक और संताप तथा बाई ओर चंद्रमा हो तो धन का नाश होता है ।

अथ चन्द्रवर्णज्ञानं तत्फलं च-
चालौ मेषसिन्हेsरुणो युध्कारी वृषे कर्कटे तौलिके श्वेतसिद्धिः ।
धनुर्मीनयुग्मेषु पीतोsथ लक्ष्मीमकर-कुम्भ-कन्या-शशी-श्याममृत्युः ॥१२॥

हिन्दी- वृश्चिक, मकर, सिंह, राशि के चंद्रमा का लाल वर्ण होता है, यह यात्रा मे युद्धकारक होता है । वृष, कर्क, तुला राशि के चंद्रमा का श्वेत वर्ण होता है, यह यात्रा मे सिद्धिदायक होता है । धनु, मीन, मिथुन के चंद्रमा का श्वेत वर्ण होता है, यह यात्रा मे लक्ष्मीदायक होता है और मकर, कुम्भ, कन्या राशि के चंद्रमा का श्याम वर्ण होता है; यह यात्रा मे मृत्युदायक होता है, अतः निषिद्ध है । इस श्लोक का चौथा चरण छन की दृष्टि से अशुद्ध है ।

अथ दग्धा तिथिः-
द्वीतीया च धनुर्मीने चतुर्थी वृषकुम्भयोः ।
मेषकर्कटयोः षष्ठी कन्यामिथुनगाsष्टमी ॥१३॥
दशमी वृश्चिके सिन्हे द्वादशी मकरे तुले ।
एतास्तु तिथयो दग्धाः शुभे कर्मणि वर्जिताः ॥१४॥

हिन्दी- धनु,मीन के चंद्रमा के दिन द्वितीय तिथि, वृष, कुम्भ के चंद्रमा के दिन चतुर्थी तिथि, मेष, कर्क के चंद्रमा के दिन षष्ठी तिथि, मिथुन कन्या के चंद्रमा के दिन अष्टमी तिथि, सिंह, वृश्चिक के चंद्रमा के दिन दशमी तिथि और तुला, मकर के चंद्रमा के दिन द्वादशी तिथि दग्ध होती है । ये पूर्वोक्त सभी दगढ़ा तिथियाँ शुभ कर्मो मे वर्जित होती है ।

अथ तिथिवारयोगे निषिद्धफलम्-
द्वादश्यर्कयुता भवेन्न शुभदा सोमेन चैकादशी ।
भौमेनाsपि युता तथैव दशमी नेष्टा तृतीया बुधे ॥१५॥
षष्ठी नेष्टफलप्रदा गुरुदिने शुक्रे द्वीतीया तथा ।
सर्वारम्भविनाशनस्य जननी सूर्यात्मजे सप्तमी ॥१६॥

हिन्दी- रविवार को द्वादशी, सोमवार को एकदशी, मङ्गल को दशमी, बुधवार को तृतीया, गुरुवार को षष्ठी इष्टफलदायक नहीं होता तथा शुक्रवार को द्वितीय और शनिवार को सप्तमी हो तो कोई करी आरंभ नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन योगो मे आरंभ किया कार्य सिद्ध नहीं होता ।

अथ वारनक्षत्रयोगे मृत्युयोगः-
त्यज रविमनुराधे विश्वदेवन्च सोमे ।
शतभिषमपि भौमे चन्द्रजं चाश्विनीषु ॥
मृगशिरसि सुरेज्यं सर्पदेवन्च शुक्रे ।
रविसुतमपि हस्ते मृत्युयोगा भवन्ति ॥१७॥

हिन्दी- रविवार को अनुराधा, सोमवार को उत्तराषाढ़, मंगलवार को आश्लेषा और शनिवार को हस्तनक्षत्र का संयोग होने से मृत्युयोग होता है । उनको सभी कार्यो मे वर्जित करे ।

अथ योगिनी विचारः-
प्रतिपत्सु नवम्याच पूर्वस्यां दिशि योगिनी ।
अग्निकोणे तृतीयायामेकादश्यां च सा स्मृता ॥१८॥
त्रयोदश्यां च पञ्चम्यां दक्षिणस्यां च योगिनी ।
द्वादश्यां च चतुर्थ्या च नैर्ऋत्यां दिशि योगिनी ॥१९॥
चतुर्द्दश्यां च षष्ठयां च पश्चिमायां च योगिनी ।
पूर्णिमायां च सप्तम्यां वायुकोणे च पार्वती ॥२०॥
दशम्यां च द्वितीयायामुतरस्या शिवा भवेत् ।
ईशानकोणे चाष्टम्यां तथा दर्शे च योगिनी ॥२१॥

हिन्दी- प्रतिपदा और नवमी को पूर्वदिशा मे, तृतीया, एकादशी को आग्नेयकोण मे, पंचमी, त्रयोदशी को दक्षिण मे, चतुर्थी, द्वादशी को नैऋत्यकोण मे, षष्ठी, चतुर्दशी को पश्चिम मे, सप्तमी, पुर्णिमा को वायुकोन मे, द्वितीय, दशमी को उत्तर मे, अष्टमी, अमावस्या को ईशानकोण मे योगिनी निवास करती है ।

अथ योगिनीवासफलम्-
योगिनी सुखदा वामे पृष्ठे वांछितदायिनि ।
दक्षिणे धनहन्त्री च सम्मुखे मरणप्रदा ॥२२॥

हिन्दी- बायी योगिनी यात्रा मे शूकड़ा, पीछे की मनोवांछित फल ड्ने वाली,दाहिनी और की धननाशक और सामने की योगिनी मरणतुल्य कष्टदायक होती है ।

अथ घातचन्द्रादिविचार-
जन्मेन्दुनन्दाsकमघा च मेषे वृषे शनिः पन्चमहस्तपूर्णाः ।
स्वाति च युग्मे नवचन्द्रभद्रः कर्केsनुराधा बुधयुग्मभद्राः ॥२३॥
सिन्हे जया षटकशनिश्च मूलं पूर्णा शनिर्दिक् श्रवणः स्त्रियां च ।
गुरुस्त्रिरिक्ताशतभे तुले च नन्दाsलिके रेवतिसप्तशुक्राः ॥२४॥
चापे चतुःशुक्रजयाभरण्योः मृगेsष्टमो रोहिणीभौमरिक्ताः ।
कुम्भे जयर्द्रा गुरु रुद्रघाता झषे भृगुश्चान्त्यभुजन्गपूर्णाः ॥२५॥

हिन्दी- मेष राशि को मेष (पहला ) का चंद्रमा, नन्दा तिथियाँ, रविवार, मघानक्षत्र, वृशराशि को शनि, पाँचवाँ चंटर, हस्त, पूर्णा तिथियाँ, मिथुन राशि को स्वाति, नवाँ चंद्रमा, सोम भद्रातिथियाँ, कर्क राशि को अनुराधा, बुध, दूसरा चंद्रमा , भद्रा तिथियाँ, सिंह राशि को जया तिथियाँ, छठा चंद्रमा, शनि, मूल, कन्या राशि को पूर्णा तिथियाँ, शनि, दशम चंद्रमा, श्रवण, तुला राशि को रिक्ता तिथिया, तीसरा चंद्रमा, गुरु, शतभिषा, वृश्चिक राशि को नन्दा तिथियाँ, रेवती, सातवाँ चंद्रमा, शुक्र, धनु राशि को चौथा चंद्रमा, शुक्र, जया तिथियाँ, भरणी, मकर राशि को आठवाँ चंद्र, रोहिणी, मंगल, रिक्ता तिथियाँ, कुम्भ राशि को जया तिथियाँ, आद्रा, गुरु, ग्यारहवां चंद्र और मीन राशि को शुक्र, बारहवां चंद्र, आश्लेषा और पूर्णा तिथियाँ घटक होती है ।

अथ स्त्रीणां घातचन्द्राः-
महिनागशैलाङ्कवेदाग्नितर्काः कराशाशिवाः पाण्डव्श्चित्रभानुः ।
कुरङ्गीदृशां घातचन्द्रास्तवजादेनृ नार्योः समं घाततिथ्यादिकं हि ॥२६॥

हिन्दी- स्त्रियॉं के घातचंद्र मेष, वृश्चिक, तुला, धनु, कर्क, मिथुन, कन्या, वृष, मकर, कुम्भ, सिंह, और मीन है, किन्तु घाततिथ्यादी उपयुक्त श्लोक के समान ही समझे ।

अथ घातचन्द्राद्यपवादः-
विवाहचूडाव्रतबन्धयज्ञे पट्टाभिषेक च तथैव राज्ञः ।
सोमन्तकाये खलुजातके च नो घातचन्द्राद्यमिर्द विचिन्त्य्म् ॥२७॥

हिन्दी- चूड़ाकर्म,व्रतबन्ध ( यज्ञोंपावित ), विवाह, यज्ञ, राजा के राज्याभिषेक, सीमंतकर्म और जातकर्म मे इस घातचन्द्र आदि का विचार नहीं करना चाहिए ।

अथ घातचन्द्रे त्याज्यकर्म्माणि-
तीर्थयात्राविवाहान्नप्राशनौपनयादिषु ।
सर्वमाङ्गल्यकार्येषु घातचन्द्रं विचिन्तयेत् ॥२८॥
युद्धे चैव विवादे च कुमारीपूजने तथा ।
राजसेवावाहनादौ घातचन्द्रं विवर्जयेत् ॥२९॥

हिन्दी- तीर्थयात्रा, विवाह, अन्नप्राशन, यज्ञोपवीतसंस्कार, सभी मांगलिक कार्यो मे घातचन्द्र का विचार करे । युद्ध मे, विवाद ( लड़ाई-झगड़ा ) मे, कुमारीपूजन मे, सरकारी नौकरी मे और वहाँ-निर्माण ( सवारी करना, बनाना आदि ) मे घातचन्द्र त्याज्य होता है ।

अथ यात्रायां शुभनक्षत्राणि-
अश्विनी रेवती ज्येष्ठा पुष्यो हस्तः पुनर्वसु ।
मेत्रं मृगशिरो मूलं यात्रायामुत्त्माः स्मृताः ॥३०॥

हिन्दी- अश्विनी, रेवती, ज्येष्ठा, पुष्य, हस्त, पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा और मूल-ये नक्षत्र यात्रा मे उतम माने गये है ।

अथ यात्रायां त्याज्यनक्षत्राणि-
भरणी कृतिकाश्लेषा विशाखा चोत्तरात्रयम् ।
मघा पशुपतिश्चैव यात्रायां मरणप्रदाः ॥३१॥

हिन्दी- भरणी, कृतिका, आश्लेषा, विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, मघा और आद्रा-इन नक्षत्रो मे यात्रा करने से मरणतुल्य कष्ट मिलता है । पूर्वोक्त शुभ नक्षत्रो के अतिरिक्त नक्षत्र यात्रा मे सामान पीएचएल देते है, ऐसा विद्वानो का मत है ।

अथ यमघण्टयोगः-
मघा स्वाति रवौ प्रोक्ते गुरौ मूलं च रेवतो ।
स्वाती च रोहिणी शुक्रे शतभिषाश्रवने शनौ ॥३२॥
आश्लेषा च तथा सोमे भरणीमैत्रभे कुन्जे ।
आर्द्रात्तराफल्गुनी च यमघण्टो बुधे स्मृताः ॥३३॥
यमघण्टे त्यजेदष्टौ मृत्यौ द्वादश नाडिकाः ।
अन्येषां पापयोगानां मध्याहत्परः शुभम् ॥३४॥

हिन्दी- रविवार को मघा, स्वाति, गुरुवार को मूल, रेवती, शुक्रवार को स्वाति, रोहिणी, शनिवार को शतभिषा, श्रवण, सोमवार को अश्लेषा, मंगलवार को भरणी, अनुराधा और बुधवार को आद्रा, उत्तराफाल्गुनी यमघण्ट योग होता है । यमघण्ट योग की पहली आठ घड़ियाँ तथा मृत्युयोग की पहली बारह घड़ियाँ त्याज्य होती है । इनके अतिरिक्त अन्य अशुभ योग मध्यान के बाद शुभ माने जाते है ।

अथ दिवार्द्धप्रह्राः-
रवौ वर्ज्याश्चतुःपञ्च सोमे सप्तद्वयं तथा ।
कुजे षष्ठद्वयन्चैव बुधे बाणतृतीयकम् ॥३५॥
गुरौ सप्ताष्टकं च ज्ञेयं त्रिचत्वारि च भार्गवे ।
शनावाद्यन्तषष्ठं च वर्ज्यार्द्धप्रहरा बुधैः ॥३६॥

हिन्दी- रविवार को चौथा-पाँचवाँ, सोमवार को दूसरा-सातवाँ, मंगल को दूसरा-छठा, बुध को तीसरा-पाँचवाँ, गुरुवार को सातवाँ-आठवाँ, शुक्र को तीसरा-चौथा और शनिवार को पहला-छठा तथा आठवाँ अर्धप्रहर को विद्वानो ने शुभ कार्यो मे वर्जित करने के लिए कहा है ।

अथ रात्र्यर्द्धप्रहराः-
रवौ रसाब्धी हिमगौ हयाब्धो द्वयं महीजे विधुजे शरागौ ।
गुरौ रसाष्टौ भृगुजे तृतीयं शनौ रसाद्यन्तमिति क्षपायाम् ॥३७॥

हिन्दी- रविवार को चौथा-छठा, सोमवार को चौथा-सातवाँ, मंगलवार को दूसरा, बुध को पाँचवाँ-सातवाँ, गुरुवार को छठा-आठवाँ, शुक्रवार को तीसरा और शनिवार को पहला-छठा-आठवाँ अर्धप्रहर रात्रि मे वर्जित है ।

अथ ताराssनयनम्-
जन्मभाद्गणयेदादौ दिनधिष्ण्यावधिः क्रमात् ।
नवभिश्च हरेद्भागं शेषं तारा विनीर्दिशेत् ॥३८॥

हिन्दी- सर्वप्रथम जन्म-नक्षत्र तक गिने, जितनी संख्या प्रपट हो उसमे ९ का भाग दें, शेष क्रमशः तारा होता है ।

अथ तारानामानि-
जन्म सम्पत् विपत् क्षेम प्रत्यरिः साधको वधः ।
तथा मैत्रातिमैत्र च नव ताराः प्रकीर्तिताः ॥३९॥

हिन्दी- जन्म, सम्पत्, विपत्, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, वध, मैत्र और अतिमैत्र-ये नौ ताराएँ पूर्वचार्यों ने कही है ।

अथ शुभताराः-
द्विचतुःपडष्टनवगातास्ताराः शुभप्रदाः ।
जनुविपत्प्रत्यरिश्र्च वधाख्या न शुभप्रदाः॥४०॥

हिन्दी- दूसरी, चौथी, छठी, आठवीं और नवीं ताराएँ शुभ होती है । जन्म, विपत, प्रत्यरी और वध ताराएँ अशुभ होती है ।

अथ दुष्टताराशान्तिः-
प्रत्यरौ लवणं दद्यछाकं दद्यात्रिजन्मसु ।
गुडं विपत्तितारायां सुवर्णं निधने तिलम् ॥४१॥

हिन्दी- प्रत्यरि तारा में नमक, विपत और जन्म तारा मे शाक,विपत्तितारा मे गुड और निधन अर्थात वधतारा मे तिल तथा सोना ( सुवर्ण ) दान मे दे ।

अथ चन्द्रफलम्-
प्रथमः स्थितिकृच्चन्द्रो द्वितीयश्चार्थलाभदः ।
तृतीये क्षेममारोग्यं चतुर्थः कलहप्रदः ॥४२॥
पञ्चमे ज्ञानवृद्धिश्च षष्ठे धन्यधनागमः ।
सप्तमे राजसम्मानमष्टमे प्राणसंशयः ॥४३॥
नवमे धर्मलाभः स्याद्दशमे मानसेप्सितम् ।
एकादशे जयो नित्यं द्वादशे मृत्युमादिशेत् ॥४४॥

हिन्दी- पहला चंद्रमा स्थितिकारक, दूसरा धन-लाभकारक, तीसरा कल्याण तथा स्वास्थ्यदायक, चौथा कलहकारक, पाँचवाँ ज्ञानप्रद, छठा धन-धान्यकारक, सातवाँ राजसम्मान, आठवाँ प्राणनाशक, नवाँ धर्मवर्धक, दसवां इक्छित पीएचएल-दायक, ग्यारहवां नीति जयप्रद और बारहवां मृत्युकारक होता है ।

अथ द्वादशप्रथमचन्द्रापवादः-
अभिषेके निषेकेsन्नप्राशने व्रतबन्धने ।
गृहप्रवेशे यात्रायां चन्द्रो द्वदशगः शुभः ॥४५॥
जन्मनत्रगश्चन्द्रः प्रशस्तः सर्वकर्मसु ।
क्षौर भैषज्यवादयाध्वकर्तनेषु विवर्जयेत् ॥४६॥

हिन्दी- राज्याभिषेक, गर्भाधान, अन्नप्राशन, व्रतबन्ध, गृहप्रवेश और यात्रा मे द्वादश चन्द्र शुभ होता है । जन्म नक्षत्र का चंद्रमा क्षौकर्म, प्रथम औषध सेवन, संगीतशिक्षा, यात्रा और नख, वृक्ष आदि छेदन कार्यो को छोड़कर शेष सभी कार्यो मे शुभ होता है ।

प्रकारान्तरेण अपवादः
शुक्लपक्षे द्वितीयस्तु पञ्चमो नवमः शुभः ।
कृष्णपक्षे विजानियात् ताराशुद्धिर्बलीयसी ॥
शुक्लपक्षे तथा चन्द्रे शुद्धिरित्यभीधीयते ।४७॥

हिन्दी- शुक्लपक्ष मे दूसरा, पाँचवाँ और नवाँ चंद्रमा शुभ होता है । कृशपक्ष मे तारा की शुद्धि बलवान होती है और शुक्लपक्ष मे चंद्रमा की शुद्धि ही बलवान होती है ।

अशुभचन्द्रादौ शान्तिप्रकारः
चन्द्रे च शङ्खं लवणं तथर्क्षे तिथौ तथा कित्तर्तितण्डुलांश्च ।
धान्यं च दद्यात्किल ऋक्षवारे देयास्तिला एवमनिष्टलग्ने ॥ ४८॥

हिन्दी- अशुभ चंद्रमा मे शंख, अशुभ नक्षत्र मे नमक, अशुभ तिथि मे पूर्वोक्त विधान के अनुसार चावल, अशुभ नक्षत्र और वार मे धान्य तथा अशुभ लग्न मे तिलों का दान करके कार्य करें ।

सिद्धियोगाः
शुक्रे नन्दा बुधे भद्रा शनौ रिक्ता कुजे जया ।
गुरौ पूर्णा च विख्याताः सिद्धियोगाः प्रकीर्तिताः ॥४९॥

हिन्दी- शुक्रवार को नन्दा, बुधवार को भद्रा, शनिवार को रिक्ता, मंगल को जया और गुरुवार को पूर्णा तिथियाँ हो तो सिद्धियोग होता है ।

अमृतयोगाः
बुधे नन्दा च मन्दे च कुजे भद्र जय गुरौ ।
पूर्णा रवौ शशाङ्के च भृगौ रिक्ताsमृतं भवेत् ॥५०॥

हिन्दी- बुध और शनिवार को नन्दा तिथि, मंगल को भद्रा गुरुवार को जया, सूरी तथा चंद्रवार को पूर्णा और शुक्रवार को रिक्ता तिथि हो तो अमृतयोग होता है ।

वारनक्षत्रयोगोत्थोsमृतयोगः
आदित्यहस्ता सुरपूज्यपूषा बुधानुराधा शनिरोहिणी च ।
सोमे च सौम्यं कुजरेवति च शुक्राश्विनी चामृतयोगमाहुः ॥५१॥

हिन्दी- रविवार को हस्त नक्षत्र, गुरुवार को रेवती, बुधवार को अनुराधा, शनि को रोहिणी, बुध को मृगशिरा, मंगल को रेवती और शुक्रवार को अश्विनी नक्षत्र-ये ७ अमृतयोग होते है ।

शुभयोगाः
मूलं रवौ पुष्यकरोत्तराणां योगो मृगाङ्कश्रवणाश्र्च सोमे ।
कृशानुपुष्योत्तरभानि भौमे बुधेsनुराधा वरुणः कृशानुः ॥५२॥
बृहस्पतौ पुष्यपुनर्वसु च भगाsश्र्विनी च श्रवनं च शुक्रे ।
शनैश्चरे स्वातिपितामहौ च योगाः किलैते शुभदयिनिः स्युः ॥५३॥

हिन्दी- रविवार को मूल, पुष्य, हस्त और तीनों उत्तरा, चंद्रवार को रोहिणी, मृगशिरा और श्रवण, मंगलवार को कृतिका, पुष्य और तीनों उत्तरा, बुधवार को अनुराधा, शतभिषा और कृतिका, गुरुवार को पुष्य, पुनर्वसु शुक्रवार को पूर्वफाल्गुनी, आसविनी और श्रवण, शनिवार को स्वाति तथा रोहिणी-ये योग निश्चय करके शुभ होते है ।

अशुभयोगाः
जन्मताराsष्टमे चन्द्रे संक्रान्तौ सुर्यगे विधौ ।
भद्रागण्डान्तरिक्तासु षष्ठयां नेव व्रजेत् क्वचित् ॥५४॥
द्वादश्यामपि चाष्टम्यां न गच्छेत् प्रस्तिथोsपि सन् ।
जन्ममासे न गन्तव्यं राज्ञा विजयमच्छता ॥५५॥

हिन्दी- जन्म तारा, आठवाँ चंद्रमा और सूरी की संक्रान्ति के समय ग्रहण काल मे भद्रा तिथि, त्रिविधगण्डान्त ( तिथिगण्डान्त, नक्षत्रगण्डान्त, लग्नगण्डान्त ), रिक्ता, षष्ठी इनमे यात्रा नहीं करना चाहिए । द्वादशी और अष्टमी तिथि मे प्रस्थान रखने पर भी यात्रा न करे । विजय का इकचूक राजा अपने जन्ममास मे भी यात्रा न करे ।

मृत्युयोगाः
नन्दा सूर्ये कुजे चैव भद्रा भार्गवचन्द्रयोः ।
बुधे जया गुरौ रिक्ता शनौ पूर्णा च मृत्युदा ॥५६॥

हिन्दी- रवि, मंगलवार को नन्दा तिथियाँ, शुक्र और सोमवार को भद्रातिथियाँ, बुध को जया तिथियाँ,गुरुवार को रिक्ता तिथियाँ और शनिवार को पूर्णा तिथियाँ मृत्युकारक होती है ।

वारदिक्शुलम्
शनौ चन्द्रे त्यजेत् पूर्वां दक्षिणस्यां दिशं गुरौ ।
सूर्ये शुक्रे पश्चिमाशां बुधे भौमे तथोतराम् ॥५७॥
प्राच्यां शनौ वह्निदिशन्न शीतगौ गुरौ तु याम्यं च बुधे च नैर्ऋतिम् ।
रवौ प्रतीच्यां भृगुजे न वायवे गच्छेदूदीच्यां न च मङ्गले बुधे ॥५८॥

हिन्दी- शनि और चंद्रवार को पूरब दिशा मे, गुरुवार को दक्षिण दिशा मे, रवि और शुक्रवार को पश्चिम दिशा मे तथा बुध और मंगलवार को यततार दिशा मे यात्रा न करे ।
शनिवार को पूर्व दिशा मे, सोमवार को अग्निकोण मे, गुरुवार को दक्षिण दिशा मे, बुधवार को नैऋत्यकोण मे, रविवार को पश्चिम दिशा मे, शुक्रवार को वायुकोण मे, मंगलवार को उत्तर मे और बुधवार को ईशान कोण मे यात्रा न करे । इन दिशाओ मे उक्त वारो को दिशाशुल होता है, अतः इन वारो मे इन दिशाओ की यात्रा अशुभ होती है ।

नक्षत्रदिक्शूलम्
ज्येष्ठां न व्रजदैन्द्रीं प्राग्भद्रे न च दक्षिणाम् ।
नोतरां पूर्वफल्गुन्यां रोहिण्यां न च पश्चिमाम् ॥५९॥
अश्विन्यां दक्षिणां नैव व्रजेद्धस्ते न चोतराम् ।
तथा नैन्द्रीं व्रजेन्मुले पुष्ये चैव न पश्चिमाम् ॥६०॥

हिन्दी- ज्येष्ठा नक्षत्र मे पूरब दिशा की, पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र मे दक्षिण दिशा की, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्तर की, रोहिणी नक्षत्र मे पश्चिम की, अश्विनी नक्षत्र मे दकचीन दिशा की, हस्त नक्षत्र मे उत्तर की, रोहिणी नक्षत्र मे पश्चिम की, अश्विनी नक्षत्र मे दक्षिण दिशा की, हस्त नक्षत्र मे उत्तर की, मूल नक्षत्र मे पूरब दिशा की और पुष्य नक्षत्र मे पश्चिम दिशा की यात्रा न करे । ये नक्षत्र दिशाशुल कहे जाते है ।

यात्रायां सर्वसिद्ध्करनक्षत्राणि
सर्वदिग्गमने शस्तः पुष्याश्विश्रवणो मृगः ।
सर्वसिद्धिकरः पुष्यो विद्यायां च गुरुर्यथा ॥६१॥

हिन्दी- जैसे पुष्य, अश्विनी, श्रवण और मृगशिरा नक्षत्र सभी दिशाओं की यतयात्रा मे शुभ होते है । उसी प्रकार पुष्य नक्षत्र और शनिवार और गुरुवार विद्यारंभ मे सिद्धिदायक होते है ।

यात्रायां शुभलग्नानि
लग्ने कन्या मन्मथश्र्च मकरश्र्च तुलाधरः ।
यात्रा चन्द्रबले कार्या शकुनस्च विचारयेत् ॥६२॥

हिन्दी- कन्या, मिथुन, मकर और तुला लग्न यात्रा मे शुभ होते है । चंद्रमा के बली रहने पर यात्रा करे और शकुनों का भी विचार करे ।

अङ्कविचारः
तिथिर्वारन्च नक्षत्रमेकी कृत्य त्रिधा पुनः ।
द्वि-त्रि-चतुर्भिर्गुणितं रस-सप्ताष्टभाजितम् ॥६३॥

हिन्दी- तिथि-वार-नक्षत्र की संख्या जोड़कर क्रमशः २, ३, ४ से गुणा कर तीन स्थानो मे रखे, इनमे क्रम से ६, ७, ८ का भाग देना चाहिए । शून्य शेष आने पर अशुभ और अंक शेष रहने पर शुभ होता है । जैसा की अगले पड़ी मे निर्देश किया गया है ।

तस्य फलम्
आदिशून्ये भवेद्धानिर्मध्यशून्ये दरिद्रता ।
अन्त्यशून्ये भवेन्मृत्युः सर्वाङ्के विजयी भवेत् ॥६४॥

हिन्दी- आदिशून्य मे हानि, मध्यशून्य मे दरिद्रता और अंतिम शून्य मे मृत्यु होती है और यदि सभी जगह अंक प्रपट हो तो विजय की प्राप्ति होती है ।

वाहनानि
तिथिर्वारन्च नक्षत्रं नामाक्षरसमन्वितम् ।
नवभिश्र्च हरेद्भागं शेष वाहनमुच्येत ॥६५॥

हिन्दी- तिथि, वार और नक्षत्रो की संखई को अपने नाम के अक्षरो की संखई मे जोड़कर ९ का भाग देने से शेष अंको को केआरएम से वाहन समझे । नीचे वाहनों के नाम दिये गये है ।

वाहननामनि
गर्दभस्तुरगो हस्ती मेषजम्बुकसिन्हकाः ।
काकहंसमयूराश्च नवैते वाहनाः स्मृताः ॥६६॥

हिन्दी- शेषांकों के क्रम से वाहनों के नाम समझे । यथा-१॰ गधा, २॰ घोडा, ३॰ हाथी, ४॰ भेड़ा, ५॰ सियार, ६॰ सिंह, ७॰ कौआ, ८॰ हंस और ९॰ मोर ।

एतेषां फलानि
गर्दभो गन्जनं याति तुरगो विजयावहः ।
हस्तिना सुखसंपतिः मेषो मिष्ठान्नभोजनम् ॥६७॥
जम्बुको हरति ह्यायुः काकश्र्च कलहप्रदः ।
सिंहः शत्रुविनाशाय सिद्धिर्हंसमयुरयोः ॥६८॥

हिन्दी- गदाह ग्लानि, घोडा विजय, हाथी सुख-संपत्ति, भेड़ा मधुर भोजन, सियार आयुनाश, कौआ कलह, सिह शत्रुनाश और हंश तथा मोर सिद्धिप्रद होते है ।

आनन्दादियोगाः
आनन्दः कालदण्डश्र्च धुम्राख्योsथप्रजापतिः ।
सौम्यो ध्वाङ्क्षो ध्वजश्चैव श्रीवत्सो वज्रमुद्गरौ ॥६९॥
क्षत्रं मित्रं मानसं च पद्माख्यो लुम्बकस्तथा ।
उत्पातमृत्युकालश्च सिद्धिश्र्चाsथ शुभोsमृतः ॥७०॥
मुशलं गदमातन्गौ राक्षसश्च चरस्थिरः ।
प्रवर्द्ध्माना विज्ञेया योगा नामसदृक्फलाः ॥७१॥

हिन्दी- आनन्द-कलदण्ड-धूम्र-प्रजापति-सौम्य-धध्वाङ्क्ष-ध्वज-श्रीवत्स-वज्र-मुद्गर-छ्त्र-मित्र-मानस-पद्म-लंबुक-उत्पात-मृत्यु-काल-( काण )-सिद्धि-शुभ-अमृत-मुशल-गड-मातंग-राक्षश-चर-स्थिर-( सुस्थिर )-प्रवर्धमान-ये २८ योग अपने-अपने नाम के अनुशार फलदायक होते है ।

एतेषां गणनाविधिः
सूर्येsश्विभात्तुहिनगौ खलु सौम्यधिश्णयात्
सर्पाच्च भूमितनये शशिजे च हस्तात् ।
मैत्रात् गुरौ भृगुसुते किल वैश्वदेवा-
च्छायासुते वरुणभात् क्रमशः स्युरेते ॥७२॥

हिन्दी- रविवार को अश्विनी से, सोमवार को मृगशिरा से, मंगलवार को आश्लेषा से, बुधवार को हस्त से, गुरुवार को अनुराधा से, शुक्रवार को उत्तराषाढ़ा से, शनिवार को शतभिषा से आनन्दादि योगों की गणना करे ।

वर्गाणां शत्रु-मित्र-समाः
यो यस्य पञ्चमस्थाने स वैरी तस्य प्रोच्यते ।
उदासीनस्तृतीये स्याच्चतुर्थे मित्रमुच्यते ॥७३॥

हिन्दी- जो वर्ग जसे पांचवें स्थान मे होता हा, वह उसका शतु होता है, तीसरा उदासीन अर्थात सम और चौथा मित्र होत है ।

तस्य फलम्
स्ववर्गे परमा प्रीतिर्मित्रे प्रीतिश्च शाश्वती ।
उदासीने प्रीतिरल्पा शत्रुवर्गे मृतिर्भवेत् ॥६४॥
मेषमुषकयोः सम्पद् गजमार्जारयोः स्थिति ।
श्वाने मेषे च मृत्युः स्यात्पीडा स्यात् सिंहनागयोः ॥७५॥

हिन्दी- अपने वर्ग के साथ अत्यंत प्रेम, मित्रवर्ग के साथ स्थायी प्रेम, संवर्ग के साथ सामान्य प्रेम और शत्रुवर्ग के साथ मृत्युदायक कष्ट होता है ।
मेष-मूषक वर्ग मे संपत्तिलाभ और बिड़ालवर्ग मे स्थिर वास, श्वान ( कुता ) और मेष ( भेड़ा ) वर्ग मे मृत्यु तथा सिंह और नाग वर्ग मे काष्ट होता है । इसका विचार विवाह आदि मे होता है ।

वर्गशर-संख्या
पक्षी वसु शर पंच मंजार, षटकेशरी श्वान शर चार ।
अहि शर सात इन्दु शर एक गज शर तीनि वेवि शर मेष ॥७६॥

हिन्दी- गरुड के ८, बिड़ाल के ५, सिंह के ६, श्वान के ४, सर्प के ८, मूषक का १, हाथी के ३ और मेष के २ शर होते है ।

वर्गविचारः
अवर्गो गरुडो ज्ञेयो बिडालः स्यात् कवर्गकः ।
चवर्गः सिंह्नामा च टवर्गः कुक्कुरः स्मृतः ॥७७॥
सर्पाख्यः स्यात् तवर्गोsपि पवर्गो मूषको मतः।
यवर्गो गजनमाख्यस्तथा मेषः शवर्गकः ॥७८॥
हिन्दी- इसका अर्थ चक्र द्वारा समझे ।

वर्णाः अ इ उ
ऋ लृ क ख ग
घ ङ च छ ज
झ ञ ट ठ ड
ढ ण त थ द
ध न प फ ब
भ म य र
ल व श ष
स ह
शराः ८ ५ ४ ८ १ ३ २
वर्गाः गरुड बिडाल सिंह श्वान सर्प मूषक हाथी मेष

ग्रामवासेदशाविचारः
अवर्गादिशरैः संख्याग्रामनामदिशामयम् ।
नागैर्भागं समाहृत्य शेषं दिनदशा भवेत् ॥७९॥

हिन्दी- गाँव ( या शहर ) का नाम, अपना नाम, दिशा की संख्या और अवर्ग आदि शर संख्याओं का योग कर उसमे ७ का भाग देकर जो शेष बचे तदनुसार दिन-दशा होती है ।

दशाफलम्
शुभानां च दशा शस्ता चान्येषां न शुभा स्मृता ।
एवं विचार्य वक्तव्यं फलं दैवज्ञकोविदैः ॥८०॥

हिन्दी- शुभ ग्रहो की दशा शुभ और अशुभ ग्रहो की दशा अशुभ होती है, ज्योतिर्विदोंको इस प्रकार विचार कर फल कहना चाहिए ।

काकिणीविचारः
स्ववर्गं द्विगुणीकृत्य परवर्गेण योजयेत् ।
अष्टभिश्च हरेद् भागं योऽधिकः सोsर्थदो भवेत् ॥८१॥

हिन्दी- अपने वर्ग की संख्या को दुगना करके दूसरे की वर्गसंख्या मे जोड़कर ८ का भाग देने से जो अधिक हो, वह डीएचएन देने वाला होता है ।

प्रकारान्तरेन काकिणीविचारः
अक्षरं द्विगुणीकृत्य मात्रां कृत्वा चतुर्गुणाम् ।
ग्रामनाम्नोरङ्कमेकीकृत्य सप्तविभाजितम् ॥८२॥
शून्यैकचतुरे हानिस्त्रिपञ्चसु तु मध्यमम् ।
द्विषष्ठयोश्च सम्पतिर्भवतीति न संशयः ॥८३॥

हिन्दी- ग्राम और अपने नाम के अक्षरो को दूना करे और मात्राओ को चौगुना कर सबका योग कर उसमे ७ का भाग देने से यदि शून्य या चार शेष रहे तो हानि, तीन, पाँच शेष रहे तो माध्यम, दो, छ शेष रहे तो निःसन्देह संपत्ति प्राप्त होती है ।

राहुविचारः
मार्गे पौषे तथा माघे पूर्वस्यां राहुसंस्थितिः ।
फल्गुने च तथा चैत्रे वैशाखे दक्षिणे भवेत् ॥८४॥
ज्येष्ठे मासि तथाssषाढे श्रावणेsपि च पश्चिमे ।
भद्रे तथाssश्विने मासि कार्तिके चोतरे भवेत् ॥८५॥

हिन्दी- मार्गशीर्ष, पौष, माघ मास मे पूर्व दिशा मे; फाल्गुन, चैत्र, वैशाख मे दक्षिण दिशा मे: ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण मास मे पश्चिम दिशा मे और भद्रपद, आश्विन ( कुआर ), कार्तिक मास मे राहू ( काल ) का निवास उत्तर दिशा मे होता है । उपयुक्त मासो का क्रम सौरमान से लिया जाता है ।

वास्तुचक्रम्
सूर्याक्रन्तात् त्यजेत् सप्त ततश्चैकादशं शुभम् ।
शेषं नन्दर्क्षकं दुष्टं वास्तुचक्रे विचारयेत् ॥८६॥

हिन्दी- सूर्य के नक्षत्र से ७ नक्षत्रो को छोड़कर इसके आगे ११ नक्षत्र शुभ होते है और इसके बाद के बाद के ९ नक्षत्र दुष्ट अर्थात अशुभ होते है । इंका विचार वास्तुचक्र मे अवश्य करना चाहिए ।

बीजबन्धनयोगाः
हस्तद्वयाच्युतयुगेsदितितोयनाथे ।
मैत्रे गुरौ कमलजोतत्रचन्द्रपौष्णे ॥
रिक्तां विहाय भृगुजेज्यबुधे च कुर्याद् ।
बीजस्य बन्धनविधिं स्थिरभे गृह्स्थः ॥८७॥
मार्गे माघे फाल्गुने च धान्यानां बिज्बन्धम् ।
कर्तव्यं पर्वषष्ठीं च भद्रांत्यक्त्वा च सुरभिः ॥८८॥

हिन्दी- हस्त, चित्रा, श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु, पूर्वाषाढ़ा, अनुराधा, पुष्य, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपदा, मृगशिरा और रेवती-इन नक्षत्रो मे, रिक्ता ४।९।१४ से रहित तिथियों मे, बुधे, गुरु, शुक्र, वारों मे स्थिर लग्नों २।५।८।११ मे गृहस्थियों के लिए बीजबंधन शुभ होती है ।
मार्गशीर्ष ( अगहन ), माघ, फाल्गुन मासो मे, पर्वडीनो ( कृष्णपक्ष की ८।१४।३० तथा पुर्णिमा, संक्रान्ति ), षष्ठी तिथि और भद्रा तिथियों ( २।७।१२ ) को छोड़कर शेष तिथियों मे बीजबंधन करना चाहिए ।