Shree Naval Kishori

बृहस्पति द्वारा भगवान शिव की स्तुति

ईश ! आप परम सूक्ष्म, ज्योतिर्मय, अनंत, ओंकारमात्र से अभिव्यक्त होनेवाले, प्रकृति से परे, चित्स्वरूप, आनंदमय और पूर्णरूप हैं । मुमुक्षु पुरुष आपका स्वरूप ऐसा ही बतलाते हैं । भगवन ! जिनके ह्रदय में एक भी कामना नहीं हैं अथवा जो सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त कर चुके हैं, वे भी पंचमहायज्ञोंद्वारा आपकी आराधना करते हैं और उसके फलस्वरूप आपके दिव्य धाम अथवा दिव्य स्वरूप में, जो संसार-सागर से परे हैं, प्रवेश कर जाते हैं । शम्भो ! वे निष्काम अथवा आप्तकाम पुरुष समत्वबुद्धि के द्वारा सब प्राणियों में आपका दर्शन करके क्षुधा-पिपासा, शोक-मोह और जरा-मृत्युरूप छ: ऊर्मियों के प्राप्त होनेपर शांतभाव से रहते, ज्ञान के द्वारा कर्मफलों को त्याग देते और ध्यान के द्वारा आप में प्रवेश कर जाते हैं । मुझमें न जाति के धर्म हैं न वेद-शास्त्र का ज्ञान हिन् । न ध्यान का अभ्यास है और न मैं समाधि ही लगाता हूँ । केवल शांतचित्त भगवान शिव को, जो रूद्र, शिव और सोम आदि नामों से पुकारे जाते हैं, भक्ति के साथ प्रणाम करता हौं । भगवन ! आपके चरणों में भक्ति रखने से मुर्ख मनुष्य भी आपके मोक्षमय स्वरूप को प्राप्त कर लेता हैं । ज्ञान, यज्ञ, तप, ध्यान तथा बड़े-बड़े फल देनेवाले होम आदि कर्मों का सर्वोत्तम फल यही है कि भगवान सोमनाथ में निरंतर भक्ति बनी रहे । जगदाधार शिव ! सब जीवों के लिये सदा देखे और सुने हुए प्रिय फल की, स्वर्ग की तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये आपकी यह भक्ति ही सीढी हैं । धीर पुरुष आपके चरणों की प्राप्तिरूपी फल के लिये दूसरी किसी सीढी को नहीं बतलाते । दयालो ! इसलिये आपके प्रति मेरी भक्ति बनी रहे । आपके श्रीविग्रह की सेवा का सौभाग्य प्राप्त होता रहे । दूसरा कोई उपाय नहीं है । ईश्वर ! यद्यपि हमलोग पापी हैं, तथापि आप अपनी महिमा की ओर देखकर हमपर कृपा कीजिये । आप स्थूल, सूक्ष्म, अनादि, नित्य, पिता, माता, असत और सत्स्वरूप अं – श्रुतियों और पुरानों ने इसप्रकार जिनका स्तवन किया है, उन परमेश्वर सोमनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ ।