आपस्तम्ब मुनि द्वारा भगवान् शिव की स्तुति
जो काष्टोंमें अग्नि, फूलों में सुगंध, बीजों में वृक्ष आदि, पत्थरों में सुवर्ण तथा सम्पूर्ण भूतों में आत्मारूप से छिपे रहते हैं , उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिन्होंने खेल-खेल में ही इस विश्व की रचना की, जो तीनों लोकों के भरण-पोषण करनेवाले तथा उसके रचयिता हैं , सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप हैं और जो सत-असत से प्रे हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिनका स्मरण करने से देहधारी जीव को दरिद्रता के महान अभिशाप और रोग आदि स्पर्श नहीं करते तथा जिनकी शरण में गये हुए मनुष्य अपनी अभीष्ट वस्तुको प्राप्त कर लेते हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिन्होंने पहले तीनों वेदों में वर्णित धर्म का साक्षात्कार करके उसमे ब्रह्मा आदि देवताओं को नियुक्त किया और इसप्रकार जिन्होंने दो शरीर धारण किये, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । नमस्कार, मंत्रोच्चारणपूर्वक हवन किया हुआ हविष्य तथा श्रद्धापूर्वक किया हुआ पूजन- ये सब जिनको प्राप्त होते हैं तथा सम्पूर्ण देवता जिनकी दी हुई हविको ग्रहण करते हैं, उन भगवान् सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिनसे बढकर अत्यंत सूक्ष्म भी कोई नहीं हैं तथा जिनसे बढकर महान-से-महान वस्तु भी दूसरी नहीं हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिनकी आज्ञा से यह विचित्र, अचिन्त्य, नाना प्रकार का और महान विश्व एक ही कार्य में संलग्न हो निरंतर परिचालित रहता हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जिनमें ऐश्वर्य, सबका आधिपत्य, कर्तव्य, दातृत्व, महत्त्व, प्रीति, यश और सौख्य – ये अनादि धर्म हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ । जो सदा शरण लेने योग्य, सबके पूजनीय, शरणागत के प्रिय, नित्य कल्यानमय तथा सर्वस्वरुप हैं, उन भगवान सोमनाथ की मैं शरण लेता हूँ ।