लीलावती अंकगणित - अध्याय 01 परिभाषा
मंगलाचरण
प्रीतिं भक्त-जनस्य यस् जनयते विघ्नं विनिघ्नन् स्मृतः तं वृन्दारक-वृन्द-वन्दित-पदं नत्वा मतङ्गाननम् ।
पाटीं सत्-गणितस्य वच्मि चतुर-प्रीति-प्रदां प्रस्फुटां संक्षिप्ताक्षर-कोमलामल-पदैः लालित्य-लीलावतीम् ॥ ०१ ॥
गणेश जी को नमन करते हुए, जो भक्तों को प्रसन्नता देने वाले हैं, विघ्नों का नाश करते हैं, जिनके चरणों को देवता भी वंदना करते हैं और जिनका मुख हाथी जैसा है — मैं उन “मतंगानन” (गणपति) को प्रणाम करता हूँ।
इसके बाद मैं एक गणितीय ग्रंथ कहता हूँ, जो:
- गुणवानों को प्रिय है,
- स्पष्ट और सुंदर शब्दों में है,
- संक्षिप्त, कोमल, निर्मल पदों से युक्त है,
- और जिसका नाम है: “लीलावती“।
तत्रादौ मुद्राणां परिभाषा- प्राचीन भारतीय मुद्रा-प्रणाली (Currency System)
वराटकानाम् दशक-द्वयम् यत् सा काकिणी ताः च पणस् चतस्रः ।
ते षोडश द्रम्मसि ह अवगम्य स्द्रम्मैः तथा षोडशभिः च निष्कः ॥०२॥
अर्थ:- बीस कौड़ी की एक काकिणी और चार काकिणी का एक पण एवं सोलह पणों का एक द्रम्म होता हैं । इस शास्त्र में सोलह द्रम्मों का एक निष्क समझना चाहिये।
- 20 कौड़ी = 1 काकिणी
- 4 काकिणी = 1 पण (पण = एक प्राचीन भारतीय मुद्रा)
- 16 पण = 1 द्रम्म (द्रम्म = एक अधिक मूल्य की मुद्रा)
- 16 द्रम्म = 1 निष्क (निष्क = उच्च मूल्य की मुद्रा, कभी-कभी सोने की इकाई मानी जाती थी)
भारपरिमाणम् - भारमापन (Weight Measurement)
तुल्या यवाभ्यां कथिता अत्र गुञ्जा वल्लस्त्रि-गुञ्जा-धरणं च ते अष्टौ ।
गद्याणकस् तद् द्वयम् इन्द्र-१४-तुल्यैः वल्लैस् तथा एकस् घटकस् प्रदिष्टस् ॥०३॥
अर्थ:- दों यवों के समान एक गुञ्जा, तीन गुञ्जा का एक वल्ल, आठ वल्लों का एक धरण, दो धरण का एक गद्याणक और 14 वल्ल का एक घटक होता है ।०३।
- 2 यव (जौ) = 1 गुंजा
- 3 गुंजा = 1 वल्ली (वल्लि = मापन की इकाई)
- 8 वल्ली = 1 धरण
- 2 धरण = 1 गद्याणक
- 14 वल्ली = 1 घटक
माषादिमानम् - सुवर्ण भार मापन की श्रेणी
दश-अर्ध-गुञ्जम् प्रवदन्ति माषं माषाह्वयैः षोडशभिः च कर्षम् ।
कर्षैः चतुर्भिः च पलं तुला-ज्ञाः कर्षं सुवर्णस्य सुवर्ण-संज्ञम् ॥०४॥
अर्थ:- तोलना जानने वाले विशेषज्ञ पाँच गुञ्जा का एक माष, सोलह माष का एक कर्ष और चार कर्ष का एक पल कहते है सोने का कर्ष सुवर्ण संज्ञक है ।०४।
- 5 गुञ्जा = माष
- 16 माष = 1 कर्ष
- 4 कर्ष = 1 पलं
- 1 कर्ष को ही सुवर्ण (gold unit) के रूप में जाना जाता हैं
अन्गुलादिमानम् लंबाई मापन (Length Measurement System)
यवोदरैः अङ्गुलम् अष्टसङ्ख्यैः हस्तसङ्गुलैः षट्-गुणितैः चतुर्भिः ।
हस्तैः चतुर्भिः भवति इह दण्डः क्रोशः सहस्र-द्वितयेन तेषाम् ॥०५ ॥
अर्थ:- आठ यवोदर का एक अंगुल, चौबीस अंगुल का एक हांथ, चार हाथ का एक दण्ड और दो हज़ार दण्ड का एक कोश होता है ।०५।
- 8 यव (जौ के दाने) = 1 अङ्गुल (अंगुली की चौड़ाई के बराबर माप)
- 24 अंगुल = 1 हस्त
- 4 हस्त (हाथ) = 1 दण्ड
- 2000 दण्ड = 1 क्रोश
योजनादिमानम्- दूरी, लंबाई और क्षेत्रमापन (Area Measurement)
स्यात् योजनं क्रोश-चतुष्टयेन तथा कराणां दशकेन वंशः ।
निवर्तनं विंशति-वंश-संख्यैः क्षेत्रं चतुर्भिः च भुजैः निबद्धम् ॥०६ ॥
अर्थ:- चार कोश क एक योजन, दस हाथ क एक वंश और बीस वंश के तुल्य चार भुजाओं से निबद्ध क्षेत्र एक निवर्तन होता है ।०६।
- 4 क्रोश = 1 योजन
- 10 कर = 1 वंश
- 20 वंश = 1 निवर्तन (भूमि मापन की इकाई)
घनहस्तादिमानम्- आयतन (Volumetric) मापन प्रणाली
हस्तोन्मितैः विस्तृति-दैर्घ्य-पिण्डैः स्यात् द्वादशाश्रं घन-हस्त-संज्ञम् ।
धान्यादिके यत् घन-हस्त-मानं शास्त्रोदिता मागध-खारिका सा ॥७॥
अर्थ:- एक हाथ चौड़ा, लम्बा और मोटा बारह कोण वाला गढ़ा घनहस्त संज्ञक है। धान्यादिके तौलने में जो घनहस्त की तौल है वह मगध देश में व्यवहृत शास्त्रोक्त खारी है ।०७।
- हस्त से मापे गए (लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई) त्रिविमीय पिंड (घन) को
- जब 12 बार गुणा किया जाए (द्वादशाश्रं = 12 अंशों वाला या 12 घनात्मक भागों वाला),
- तो उसे कहते हैं “घन–हस्त“।
- धान्य (अनाज) जैसे पदार्थों को नापने में जो घन–हस्त माप प्रयोग किया जाता है,
- वह “मागध–खारिका“ नाम से जाना जाता है — जैसा शास्त्रों में वर्णित है।
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
यह आयतन गणना (Length × Breadth × Height) की वही मूल विधि है, जो आज भी आधुनिक गणित और भौतिकी में प्रयोग होती है — बस नाम और मापन इकाइयाँ बदल गई हैं।
द्रोणादिमानम्- आयतन मापन (Volume Measurement)
द्रोणस् तु खार्याः खलु षोडशांशः ।
स्यात् आढकस् द्रोण-चतुर्थ-भागः ॥
प्रस्थस् चतुर्थांशः इह आढकस्य ।
प्रस्थाङ्घ्रि-साद्यैः कुडवः प्रदिष्टः ॥८॥
अर्थ:- यहाँ खारी के सोलहवें भाग को द्रोण, द्रोण के के चौथे भाग को आढ़क, आढ़क के चौथे भाग को प्रस्थ और प्रस्थ के चौथे भाग को प्राचीनाचार्यों ने कुड़व कहा है ।०८।
- 1 खारी = 16 द्रोण (द्रोण, खारी का 1/16 भाग होता है)
- 1 द्रोण = 4 आढ़क
- 1 आढ़क = 4 प्रस्थ
- 1 प्रस्थ = 4 कुडव
✨ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
अनुपातिक संरचना (Ratio System):
यह श्लोक दर्शाता है कि प्राचीन भारतीय मापन पद्धति बाइनरी या क्वाड्रेटिक स्केलिंग (1/4, 1/16 आदि) पर आधारित थी, जो आज की SI यूनिट्स में उपसर्गों (kilo, centi, milli) की तरह ही काम करती थी।
यवनप्रचारितमानम्-
पादोन-गद्याणक-तुल्य-टङ्कैस् द्वि-सप्त-तुल्यैस् कथितसत्र सेरस् ।
मणाभिधानम् ख-युगैस्च सेरैस् धान्यादि-तौल्येषु तुरुष्क-संज्ञा ॥९॥
अर्थ:- बहत्तर पौन गद्याणक तुल्य टंक का एक सेर और चालीस सेर का एक मन होता है। यह अन्न आदि तौलने में यवनों की बनाई संज्ञा है।
- 1 पादोन = 1 गद्याणक (गद्याणक का माप पाद के समान होता है)
- 1 गद्याणक = 1 टंका
- 1 टंका = 14 सेर
- 1 सेर = धन्य (अनाज) माप के अनुसार
कालादिपरीभाषा-
शेषा कालादि-परिभाषा लोकतस्प्रसिद्धा ज्ञेया ॥१०॥
अर्थ:- शेष काल आदि की परिभाषायें लोक में प्रसिद्ध है अतः उन्हें लोकव्यवहार से समझना चाहिए।१०।
। इति परिभाषा ।