Shree Naval Kishori

इंद्र द्वारा देवी पार्वतीकी स्तुति

‘लोकेश्वरि ! यह सम्पूर्ण जगत नष्ट होना चाहता है । तुम इसकी रक्षा करो । लोकमाता उमा ! तुम सबको शरण देनेवाली, उत्तम ऐश्वर्य से युक्त, परम कल्याणमयी तथा सम्पूर्ण जगत की प्रतिष्ठा हो । वरदायिनी ! तुम्हारी जय हो । तुम भोग, समाधि, परम मुक्ति, स्वाहा, स्वधा, स्वस्ति, आनादि सिद्धि, वाणी, बुद्धि तथा अजर-अमर हो । मेरी आज्ञा के अनुसार तीनों लोकों में विद्या आदि रूप से तुम रक्षा करती हो । तुमने ही प्रकृतिरूप से इस विचित्र त्रिलोकी की सृष्टि की है ।’ शंकरजी के यों कहनेपर उनकी प्राणवल्लभा भगवती उमा उनका आलिंगन करके प्रेमालाप करने लगी और थककर भगवान् के आधे शरीर में लग गयीं तथा अपने हाथ की अँगुलियों से पसीने का जल पोछकर फेंका । उस जलसे पहले धर्म का प्रादुर्भाव हुआ । उसके बाद लक्ष्मी प्रकट हुई । फिर दान, उत्तम वृष्टि, सत्त्व, सरोवर, धान्य, पुष्प, फल, शस्त्र, शास्त्र, गृहोपयोगी अस्त्र, तीर्थ, वन तथा चराचर जगत का आविर्भाव हुआ । देवी ! यह सब पापरहित सृष्टि थी । भगवती उमा ! तुम्हारे प्रभाव से संसार में प्रचुर सुख की वृद्धि हुई । सदा सब और मगंलमय कृत्य शोभा पाने लगे । जगदम्ब ! तुम सम्पूर्ण जगत की स्वामिनी हो और हम भय से डरे हुए हैं । अत: तुम हमारी रक्षा करो । कोई तर्क करते-करते मोहित हो जाते हैं और कोई उसीमें लीन रहते हैं । परन्तु हम तो शिव और शक्ति के सुंदर अद्वैत रूप को सर्वदा नमस्कार करते हैं ।